अगस्त 03, 2020

तुम्हारी याद जब आई ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

    तुम्हारी याद जब आई ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा" 

तुम्हारी याद जब आई 
भरी महफ़िल में तन्हाई । 

बहारें  खो  गईं    जैसे 
जिधर देखा खिज़ा छाई । 

मुहब्बत किस तरह करते 
कहां पर्वत कहां खाई । 

समझते दोस्त दुनिया को 
यहां ठोकर बहुत पाई ।

कोई दौलत ज़माने की
नहीं हमको कभी भाई ।

क़यामत की सियासत है
उधर जाना इधर लाई ।

हमारा कौन अब "तनहा"
हुआ करती थी बस माई । 





1 टिप्पणी:

Sanjaytanha ने कहा…

मुहब्बत किस..👌👌कयामत की सियासत...क्या कहने