हैवानियत शर्मसार नहीं ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया
समझते हैं अभी भी दुनिया उन्हीं से है जिनको नहीं खबर आना जाना किधर से है। ये लोग जो खुद को भगवान समझते हैं इंसान को भी नहीं इंसान समझते हैं। लगता है इन्हें बड़ा काम किया है इस हाल में जो अपना काम किया है। क्या हवाओं ने कहा हमने चलना नहीं छोड़ा कोरोना के डर से किसी भी अनहोनी से घबरा के ये उनका फ़र्ज़ कुदरत का तरीका है कोई नहीं किसी पर एहसान किया है। सुनते थे जब नज़र आता है कयामत का नज़ारा मिट जाता है अपने होने नहीं होने का अहंकार सारा तब किया करते हैं गुनाहों से तौबा भीतर कोई ज़मीर जगाता है तब ऐसी घड़ी में इंसान बदल जाता है। पर देख कर हैरान हैं बंदे भी खुदा भी अभी भी गलत रास्ते पर कुछ लोग चल रहे हैं बड़े ऊंचे मीनार ज़मींदोज़ सामने पड़े हैं उनकी फ़ितरत है अभी भी अकड़ रहे हैं। अपने ईमान का सौदा हर रोज़ कर रहे हैं कहने को तो ज़िंदा हैं समझो तो मर गए हैं। रिश्वत बेईमानी अपने फ़र्ज़ को नहीं निभाना शराफ़त का लफ़्ज़ सीखा पढ़ा है न है जाना। उनको नहीं मालूम है दिन चार जीना चलना है रहेगा यहीं सब ठौर ठिकाना। इंसान हैं इंसानियत से पहचान नहीं है नहीं जानता बिना बात ही बदनाम नहीं है। काम आएगी ये पाप की दौलत न हराम की कमाई जब ऊपर वाले के घर होगी रसाई। अब तो इंसान बनकर दिखाओ अपने हक़ ईमान की रोज़ी रोटी कमाओ किसी को नहीं लूटो न किसी को सताओ जो गलत काम करते उनके हौंसले न बढ़ाओ शासक हो अफ़्सर हो पुलिस हो या हाकिम चाहे मुंसिफ थोड़ा तो ख़ौफ़ उस खुदा का खाओ। कितने गुनाह किये हैं हिसाब लगाओ अपने दिल पर हाथ रखकर सच सच बताओ भगवान की लाठी की कोई आवाज़ नहीं होती है मुमकिन है बाद में बहुत पछताओ। आदमी बनकर आदमी के साथ बात करो बस कुछ भी नहीं हस्ती तुम्हारी मत इतराओ।
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