तुम्हारी याद जब आई ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
तुम्हारी याद जब आई
भरी महफ़िल में तन्हाई ।
बहारें खो गईं जैसे
जिधर देखा खिज़ा छाई ।
मुहब्बत किस तरह करते
कहां पर्वत कहां खाई ।
समझते दोस्त दुनिया को
यहां ठोकर बहुत पाई ।
कोई दौलत ज़माने की
नहीं हमको कभी भाई ।
क़यामत की सियासत है
उधर जाना इधर लाई ।
हमारा कौन अब "तनहा"
हुआ करती थी बस माई ।
कोई दौलत ज़माने की
नहीं हमको कभी भाई ।
क़यामत की सियासत है
उधर जाना इधर लाई ।
हमारा कौन अब "तनहा"
हुआ करती थी बस माई ।
1 टिप्पणी:
मुहब्बत किस..👌👌कयामत की सियासत...क्या कहने
एक टिप्पणी भेजें