शायरी हमने की , आशिक़ी हमने की ( ग़ज़ल ) लोक सेतिया "तनहा "
शायरी हमने की , आशिक़ी हमने की
इस तरह उम्र भर , बंदगी हमने की।
हर सफर पर नये दोस्त बनते रहे
जो जहां पर मिला दोस्ती हमने की।
ज़ख्म भी दर्द भी हर किसी से मिले
पर न घबरा कभी ख़ुदकुशी हमने की।
मैं खिलौना सभी मुझसे खेला किए
आप अपने से भी दिल्लगी हमने की।
सी लिए लब सदा कुछ नहीं कह सके
बोलने की नहीं , भूल भी हमने की।
हम सितारे , ज़मीं पर बिछाते गए
चांदनी कह रही , बेरुखी हमने की।
की वफ़ा फिर भी खुद बेवफ़ा बन गया
भूल हर बार "तनहा" वही हमने की।
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