उड़ने की चाह में इरादे बदल जाते हैं ( ग़ज़ल )
डॉ लोक सेतिया "तनहा"
उड़ने की चाह में इरादे बदल जाते हैं
पांव चलते हुए अचानक फिसल जाते हैं ।
अब मुहब्बत कहां , तिजारत सभी करते हैं
अब तो क़िरदार रोज़ सारे बदल जाते हैं ।
ढूंढती हर शमां नहीं मिलते वो परवाने
आग़ में प्यार की जलाते हैं जल जाते हैं ।
आस्मां पे नहीं ज़मीं पर नज़र रखते हैं
राह फ़िसलन भरी कदम खुद संभल जाते हैं ।
फिर उसी मोड़ पर मुलाकात नहीं हो उनसे
हम झुका कर नज़र उधर से निकल जाते हैं ।
दब गई राख में चिंगारी बनी जब शोला
तेज़ आंधी चले महल तक भी जल जाते हैं ।
अब वहां कुछ नहीं न शीशा न साकी फिर भी
देख कर मयक़दे को "तनहा" मचल जाते हैं ।
1 टिप्पणी:
अति उत्तम लेख Free Song Lyrics
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