नवंबर 21, 2019

POST : 1224 उड़ने की चाह में इरादे बदल जाते हैं ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

       उड़ने की चाह में इरादे बदल जाते हैं ( ग़ज़ल ) 

                       डॉ  लोक सेतिया "तनहा"

उड़ने की चाह में इरादे बदल जाते हैं 
पांव चलते हुए अचानक फिसल जाते हैं । 

अब मुहब्बत कहां , तिजारत सभी करते हैं 
अब तो क़िरदार रोज़ सारे बदल जाते हैं । 

ढूंढती हर शमां नहीं मिलते वो परवाने 
आग़ में प्यार की जलाते हैं जल जाते हैं । 

आस्मां पे नहीं ज़मीं पर नज़र रखते हैं 
राह फ़िसलन भरी कदम खुद संभल जाते हैं । 

फिर उसी मोड़ पर मुलाकात नहीं हो उनसे 
हम झुका कर नज़र उधर से निकल जाते हैं । 

दब गई राख में चिंगारी बनी जब शोला 
तेज़ आंधी चले महल तक भी जल जाते हैं । 

अब वहां कुछ नहीं न शीशा न साकी फिर भी 
देख कर मयक़दे को "तनहा" मचल जाते हैं । 
 

 
 


 

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

अति उत्तम लेख Free Song Lyrics