मधुर सुर न जाने कहां खो गया है ( ग़ज़ल )
डॉ लोक सेतिया "तनहा"
मधुर सुर न जाने कहां खो गया हैयही शोर क्यों हर तरफ हो गया है।
बता दो हमें तुम उसे क्या हुआ है
ग़ज़लकार किस नींद में सो गया है।
घुटन सी हवा में यहां लग रही है
यहां रात कोई बहुत रो गया है।
नहीं कर सका दोस्ती को वो रुसवा
मगर दाग़ अपने सभी धो गया है।
करेंगे सभी याद उसको हमेशा
नहीं आएगा फिर अभी जो गया है।
कहां से था आया सभी को पता है
नहीं जानते पर किधर को गया है।
मिले शूल "तनहा " उसे ज़िंदगी से
यहां फूल सारे वही बो गया है।
1 टिप्पणी:
मिले शूल "तनहा " उसे ज़िंदगी से ,यहां फूल सारे वही बो गया है । ये सबसे अच्छा लगा , वाह !
एक टिप्पणी भेजें