अक्टूबर 04, 2016

POST : 528 उनका साहित्य , मेरी बातें ( सवाल कठिन है ) डॉ लोक सेतिया

      उनका साहित्य , मेरी बातें ( सवाल कठिन है ) डॉ लोक सेतिया

    कोई ऐसी बात तो नहीं की जो अनुचित कही जा सके , फिर भी मुझे अच्छी नहीं लगी उनकी बात , शायद मुझे उनसे आपेक्षा नहीं थी कि वो भी उसी तरह की ही बात करेंगे जैसी सभी दुनिया वाले करते हैं । बहुत नाम सुनता रहा हूं उनका , बहुत बड़े साहित्यकार हैं । मैंने उनसे साहित्य पर ही बात करने को संपर्क किया था , ये उनको भी मालूम भी था , फिर भी किसलिये वो साहित्य की बातों से इत्तर और ही बातें करना चाहते थे । मैं कहता रहा उनकी रचनाओं की बात और वो अनसुना करते रहे मेरे हर सवाल को , और मुझे से पूछते रहे मेरी ज़मीन जायदाद और आमदनी की बात । मेरे लिये जिन बातों का कोई महत्व नहीं था , उनको वही ज़रूरी लगती थीं । सच मैं नहीं समझ पाया उनकी बातों का मतलब । उम्र भर मिलता रहा हूं ऐसे लोगों से जो मुझे छोटा साबित करने को बिना पूछे मुझे बताया करते थे कि उनकी आमदनी कितनी अधिक है , क्या क्या बना लिया उन्होंने पैसा कमा कमा कर । फिर कहते आप खूब हैं जो कितनी कम आय में गुज़र बसर कर के भी खुश रहते हैं । उनको मेरी थोड़ी आमदनी से मतलब नहीं था , उस के बावजूद खुश रहने से परेशानी थी । मुझे पता है अधिकतर लोग एक ख़ुशी हासिल करते हैं ऐसी बातें कर के । शायद कहीं न कहीं वो हीन भावना के शिकार होते हैं और जिनको समझते हैं हमसे छोटे हैं उनसे ये बातें करते हैं अपनी हीन भावना को दूर करने को । लेकिन आज तक न वो अपनी हीन भावना मिटा पाये न ही मुझे हीन भावना का शिकार ही कर पाये हैं । उल्टा मुझे यही लगता है कि ये सब धन दौलत पाकर भी उनको वो ख़ुशी नहीं मिली है जो मेरे पास है बिना धन दौलत के । तभी मैं कभी दुनिया वालों से कोई मुकाबला करना चाहता ही नहीं । मुझे उनके मापदंड समझ ही नहीं आये  , खुद अपने बनाये मापदंडों से अपने को बड़ा साबित करने की कोशिश ही करते रहते हैं । मैं जो हूं जैसा हूं उसी को स्वीकार कर चैन से रहता हूं , आदमी को कितनी ज़मीन चाहिये , दो गज़ , उस कहानी को कभी भूला नहीं। कोई कह सकता है मैं तरक्की करना ही नहीं चाहता , मुझे परवाह नहीं उनकी बातों की , किसी की बातों से मैं जो नहीं करना है वो नहीं कर सकता दुनिया की दौड़ में तरक्की हासिल करने को ।

             आज मुझे इक लेखक एक साहित्यकार से वही बातें सुन समझ नहीं आया क्या चाहते हैं वो । क्या उनको मुझ से साहित्य की बात करना इसलिये पसंद नहीं था क्योंकि मुझे वो छोटा समझते हैं लेखन में । बेशक मैंने आज तक इक पुस्तक भी नहीं छपवाई है तो क्या इसी से मेरा आंकलन करते हैं । मुझे न लेखक कहलाना है न साहित्यकार कहलाने को लिखता हूं , मगर फिर भी नियमित लिखता रहता हूं अपने देश समाज की वास्तविकता को । क्या ये महत्वपूर्ण नहीं हो सकता । अब केवल उनकी और मेरी बात को छोड़ सभी की बात करते हैं।  लेखक हैं लिखते हैं , कविता कहानी , लगता है सभी के दुःख-दर्द को महसूस करते हैं , सारे जहां का दर्द हमारे जिगर में है । मगर जब अपने आस पास लोगों को परेशान देखते हैं तब हमारे अंदर का दर्द कहां छुप जाता है , तब औरों की परेशानी या दुःख क्यों हमें परेशान नहीं करती और हम संवेदना रहित और पाषाण हृदय बन जाते हैं । ये देख कर मैं सोचता हूं जो कविता जो कहानी हमने लिखी , अगर वो खुद हम में संवेदना मानवीय दुःख दर्द के प्रति नहीं जागृत कर पाई तो क्या उसको सफल मान सकते हैं । सैकड़ों किताबें लिख कर भी क्या होगा , कोई क्या सोचता है कभी । साहित्य का ध्येय क्या है । 

 

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