गिरती हुई दीवार है , ठोकर मत लगाना ( तरकश ) डा लोक सेतिया
सुना था समझदार लोग बहुत ही खतरनाक होते हैं। अपनी साहूलियत के लिए सच को झूठ साबित कर सकते हैं और झूठ को सच भी। इतिहास भरा पड़ा है , जिन पढ़े लिखे लोगों ने ग्रंथ लिखे , उन्होंने खुद को सुरक्षित रखने को हर बात के दोहरे मापदंड भी निसंकोच घोषित कर डाले। साथ में ये भी लिख डाला कि इस सब पर सवाल उठाना पाप है नास्तिकता है। हम धर्म भीरू लोग सोचना तक नहीं चाहते कि क्या जो जो हमें पढ़ाया और समझाया जाता है जा रहा है वो सही भी है या नहीं। आज का बुद्धिजीवी समाज भी वही सब दोहरा रहा है। ये सब शायद मुझे ध्यान नहीं आता अगर मैं आज की एक नई नई चली राजनीति की बातों को गौर से नहीं देखता। अभी तक देखते रहे हैं कि जो नेता चुनाव में सत्ता धारी लोगों की कमियां बता कर सत्ता पाते थे उनको लगता था कि अब हमें वो सब नहीं दोहराना है बल्कि अपना ध्यान जनता की समस्याएं दूर करने और अपनी नीतियां लागू करने पर देना चाहिये। जो लोग बदले की भावना से राजनीति करते रहे हैं वो कभी सफल नहीं हुए। दिल्ली में जब से आम आदमी पार्टी की सरकार बनी है तब से उनका पूरा ध्यान ही नकारात्मक कार्यों पर ही रहता है। नई बात इस सरकार के दो ऐसे नये कदम हैं जिनको उसके नेता बड़े ही गर्व से महान घोषित कर रहे हैं। पहला काम पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का अवैध कालोनियों को अस्थाई प्रमाणपत्र देना। यहां एक बात को जान लेना ज़रूरी है कि चुनाव में प्रलोभन देना भले अनुचित हो फिर भी सरकार को काम बंद करने को नहीं कहा जा सकता है। महीनों तक सरकार और प्रशासन हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठ सकती। हां अगर कोई सत्ता का दुरूपयोग करके चुनाव जीतता है तो आप अदालत जा सकते हैं। शायद यहां ये याद करना भी ज़रूरी है कि देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी तक इसके लिए कटघरे में खड़ी हो चुकी है किसी समय। आम आदमी पार्टी के नेताओं से पूछा जाना चाहिये कि जिन अवैध कालोनियों को अस्थाई प्रमाणपत्र दिये गये क्या उनका अस्तित्व नहीं था , अगर वे वहां थी और ये प्रमाणपत्र उनको इसलिये दिया गया ताकि कल उनके होने पर ही कोई सवाल नहीं खड़ा करे। कोई उस जगह को अधिकृत नहीं कर सके , गरीबों का घर छीना न जा सके। अब चाहे तब सरकार ने ऐसा लोगों को खुश कर वोट पाने को ही किया हो तब भी ये जन विरोधी काम तो कदापि नहीं था। और क्या आप उन अवैध कालोनियों का अस्तित्व नकार सकते हैं। सच तो ये है कि ये खुद जानते हैं कि जो वो करने जा रहे हैं वो फज़ूल की अदालती जंग है जिसका हासिल कुछ भी नहीं होना। बस ये कर आम आदमी पार्टी दिखाना चाहती है कि वो पिछली सरकार के गलत कामों का हिसाब कर रही है , जबकि जहां खुद उसने भ्रष्टाचार की जाँच करनी है उससे बच रही है। क्योंकि जिसकी बैसाखी थाम कर आप चल रहे हो उसको ठोकर लगायेंगे तो उससे पहले खुद गिर जायेंगे। और वास्तव में यही तो कर रहे है ये तथाकथित आम आदमी पार्टी के लोग , नैतिक तौर पर ये रसातल में जाते जा रहे हैं। दूसरी बात जो वो कर रहे हैं वो है दिल्ली में लोकपाल कानून विधानसभा में लाने की। आम आदमी पार्टी न किसी नियम को मानती है न प्रक्रिया का ही पालन करती है , बार बार मनमानी कर कोई सत्ता धारी सरकार खुद अराजकता को बड़ा रही है। लेकिन इतना तो उनको भी मालूम है कि संविधानिक प्रक्रिया का पालन किये बिना अगर वे कोई विधेयक पारित भी करते हैं और कोई उसको अदालत में चुनौती नहीं भी देता और वो लागू भी हो जाता है तब भी अगर किसी पर भी ऐसा लोकपाल करवाई करेगा तब पहला सवाल उसके खुद के औचित्य पर खड़ा होगा। अवैध कालोनियों की तरह का एक प्रमाणपत्र आपके लोकपाल को हासिल हो सकता है। सच तो ये है कि ये सचाई भी जानते हैं आम आदमी पार्टी वाले , मगर ये सोचते हैं कि इस सब की नौबत आने से पहले उनको लोकसभा चुनाव में इन कदमों का लाभ मिल चुका होगा। दूसरे शब्दों में जिस बात का दोषी पूर्व मुख्यमंत्री को मानते है वही बात खुद भी कर रहे हैं। इन आम आदमी के पैरोकारों से कोई तो पूछेगा कि आपको अब खास लोग क्यों प्रिय लगने लगे हैं , जाने माने लोग , कल तक के सरकारी अधिकारी क्या यही आम आदमी की पहचान बनेंगे कल। कोई अपने वजूद को ऐसे ही मिटाता हो तो किसी अन्य को ज़रूरत ही क्यों होगी कुछ भी करने की। गिरती हुई दीवार की तरह है , इसको कोई ठोकर न लगाना।