मार्च 26, 2025

POST : 1957 मंदिर साक्षात दर्शन - उपदेश वाला ( हास - परिहास ) डॉ लोक सेतिया

 मंदिर  साक्षात दर्शन - उपदेश वाला ( हास - परिहास ) डॉ लोक सेतिया 

कुछ साल पहले हरियाणा के शहर फतेहाबाद में ऐसा मंदिर ढूंढने पर मिल गया था किसी नासमझ ने कभी बनवाया था झूठ के देवता का पहला मंदिर । वहां आंखें बंद कर श्रद्धापूर्वक विनती करने से देवता खुद दर्शन देते हैं और उपदेश भी देते हैं । मनोकामनाएं पूर्ण हुई जितने राजनेता उनकी शरण में आये चुनाव लड़ने से पहले कोई चढ़ावा कोई आडंबर नहीं होता बस झूठ की जयजयकार करनी होती है । आखिर इक दिन कोई टेलीविज़न का पत्रकार राजधानी से आया देखने परखने तो खुली आंख से कुछ नहीं नज़र आया बस इक घना अंधकार छाया हुआ था बिल्कुल उसके चैनल की शैली जैसा । तभी सामने पढ़ा वत्स आंखें बंद करोगे तो सब दिखाई देगा , और जब उसने आंखों पर पट्टी बांधी तो उसको रौशनी ही रौशनी चारों तरफ नज़र आने लगी और मधुर स्वर सुनाई देने लगा । हैरान होकर बोला पत्रकार क्या ये कोई जादू है तिलिस्म की दुनिया है । जवाब मिला नहीं यही वास्तविक दुनिया है आप जो देखते हैं दिखलाते हैं सब नकली दुनिया है आप खुद कलयुग का इक अवतार हैं खुद अपनी जान के दुश्मन हैं दुश्मनों के ख़ास यार हैं , यानी कि चलता फिरता कोई इश्तिहार हैं । पत्रकार समझ गया जिसकी तलाश थी हमेशा से वो दर मिल गया है , विनती की क्या आप हमारे देश की राजधानी में चलकर सभी को दर्शन दे कर उनका जीवन सफल नहीं कर सकते । 

झूठ के देवता की आवाज़ आई मैं तो हर शहर में हूं आपको कठिनाई नहीं होगी जाओ जाकर किसी भी सरकारी कार्यालय में सचिवालय में मंत्रालय के दफ़्तर में मुझसे वार्तालाप कर सकते हो । बंद आंखों से आपको सच दिखाई देगा , शासक जो कहते हैं की जगह आपको जैसा करते हैं सुनाई देगा समझ आएगा । घबराना मत जब आप वास्तविकता देखोगे तो आपको शासक अधिकारी जो दावे करते हैं धर्म इंसानियत और मानवता के लोककल्याण के आपको ज़ालिम तानाशाह दिखाई देंगे । दीवारों से फर्श तक आपको खून के छींटे नज़र आएंगे कितनी रूहों की आहें और चीखें सुनाई देंगी , बड़े बड़े पदों पर न्यायधीश बने हुए लोग आपको बेरहम और स्वार्थी मिलेंगे । आपको समझ आएगा कि कभी भी रहमदिल शासकों ने खुद को महिमामंडित नहीं किया था , हमेशा लुटेरे और ज़ालिम शासकों ने खुद को महान कहलवाने को ऐसा किया था । जनता तो हमेशा उनको क़ातिल समझती थी भले वो खुद को कितना दयालु और मसीहा घोषित करते रहे थे । 

आखिर वापस लौटकर उस पत्रकार ने देश की राजधानी के सचिवालय और सभी विभागों के दफ्तरों में जा कर बंद आंखें कर झूठ के देवता को याद किया तो सामने सब साफ़ साफ़ दिखाई दिया । खून ही खून फैला हुआ था सभी लोगों के दामन मैले थे भ्र्ष्टाचार की गंदगी की बदबू उनसे हवाओं को प्रदूषित कर रही थी । आखिर पत्रकार घबरा गया और कहने लगा कभी कोई रहमदिल शासक हुआ होगा उसके बारे बताएं थोड़ा सुकून मिलेगा शायद , रहीम और गंगभाट का संवाद बताया देवता ने कुछ ऐसा हुआ था । 

 

रहीम और गंगभाट संवाद : - 


इक दोहा इक कवि का सवाल करता है और इक दूसरा दोहा उस सवाल का जवाब देता है । पहला दोहा गंगभाट नाम के कवि का जो रहीम जी जो इक नवाब थे और हर आने वाले ज़रूरतमंद की मदद किया करते थे से उन्होंने पूछा था :-
 
' सीखियो कहां नवाब जू ऐसी देनी दैन
  ज्यों ज्यों कर ऊंचों करें त्यों त्यों नीचो नैन '।
 
अर्थात नवाब जी ऐसा क्यों है आपने ये तरीका कहां से सीखा है कि जब जब आप किसी को कुछ सहायता देने को हाथ ऊपर करते हैं आपकी आंखें झुकी हुई रहती हैं । 
 
रहीम जी ने जवाब दिया था अपने दोहे में :-
 
 ' देनहार कोउ और है देत रहत दिन रैन
  लोग भरम मो पे करें या ते नीचे नैन ' ।
 
आपको इस बारे कितनी बार बताया गया है आज आपको आखिर में किसी शायर की ग़ज़ल सुनाते हैं । 
 

बंद आंखों का तमाशा हो गया , खुद से मैं बिछुड़ा तो तन्हा हो गया । 

मौसमों की उंगलियों के लम्स से , दाग़ दिल का और गहरा हो गया । 

एक सूरत ये भी महरूमी की है , मैंने दिल से जो भी चाहा हो गया । 

देखता है हर कोई मुंह फेरकर , मैं न जाने किसका चेहरा हो गया । 

दोस्ती दुनिया से कर ली हमने तो , कांच के टुकड़ों पे चलना हो गया । 

( शायर का नाम पता नहीं है ढूंढने पर भी मिला नहीं मुझे । ) 

 
 
 
 तेरी मोहब्बत के तिलिस्म में गिरफ्तार हो गए, दिल के हर जज़्बे से बेक़रार हो  गए। "संतोष"चाँदनी रातों में तेरी यादें सजती हैं, ख़्वाबों में ...

1 टिप्पणी:

Sanjaytanha ने कहा…

बढ़िया लेख... झूठ का देवता सब जगह है सरकारी कार्यलयों में