मार्च 15, 2025

POST : 1952 लीद करना , बांटना , तोलना ( व्यंग्य- कथा ) डॉ लोक सेतिया

  लीद करना , बांटना , तोलना ( व्यंग्य- कथा ) डॉ लोक सेतिया 

आधुनिक समय की सरकार सत्ताधारी राजनेता प्रशासनिक अधिकारी वर्ग से न्याय व्यवस्था तथाकथित समाजिक संस्थाएं  क्या कर रही हैं इस पर शोध किया जाये तो संक्षेप में नतीजा यही निकलेगा । आपको कोई भी मंत्री विधायक संसद आमने सामने नहीं मिलते हैं प्रधानमंत्री से सभी मुख्यमंत्री तक ने कुछ ऐप्स और साइट्स बनवा रखी हैं जनता को झूठा दिलासा देने को । इंसान की भावनाओं की दुःख दर्द की समझ जब शासक वर्ग अधिकारी वर्ग को नहीं होती तो ये मशीनी व्यवस्था क्या जाने ज़िंदगी और मौत कोई खिलौने नहीं वास्तविकता हैं । जनता इस तथाकथित लोकतांत्रिक व्यस्था से न्याय मांगते मांगते मर जाती है , इनसे मिलती है सिर्फ और सिर्फ लीद ।  मुझे जनहित और भ्र्ष्टाचारी व्यवस्था पर लिखते पचास वर्ष बीत गए और जाने कब मौत आकर मुझे इस सब से छुटकारा दिलवाएगी , मुझे मरने का खौफ़ नहीं जयप्रकाश नारायण जी की राह पर चलने वाला उनका प्रशंसक हूं मैं । आधुनिक युग की सरकारें कहती और प्रचार प्रसार विज्ञापन करती हैं व्यवस्था को ठीक करने का लेकिन जनता को इनसे हमेशा लीद ही मिलती है खैरात की तरह । बस और कुछ भी नहीं कहना इतना बहुत है जिनको समझ आये मतलब क्या है । आगे आपको कुछ कहनियां बतानी हैं लीद को लेकर । 
 
 
एक बार इक राजा अपने घोड़ों के अस्तबल में खड़ा होता है , इक साधु उधर से गुज़रता है और भिक्षा मांगता है , राजा वहां से ज़मीन से लीद उठाता है और साधु के पात्र में डाल देता है । साधु कहता है आपको दान दी हुई लीद हज़ारों लाखों गुणा मिलेगी खाने को , ऐसा बोल कर साधु नगर से बाहर चला जाता है कुटिया में वापस । उसे रोज़ केवल किसी से एक बार ही भिक्षा मांगनी होती है जो भी मिलता है उसी से गुज़ारा चलाता है । राजा अपनी पत्नी को बताता है उसने ऐसा किया तो पत्नी समझाती है अपने राजगुरु से इस विषय की चर्चा अकेले बैठ करनी उचित होगी । राजगुरु सुनकर परेशान हो जाते हैं और तुरंत जाकर उस साधु से क्षमा याचना करने को कहते हैं ।  राजा अपने रथ पर सवार होकर साधु की कुटिया पहुंचता है , क्या देखता है कि बाहर लीद ही लीद का ढेर लगा होता है किसी पहाड़ जैसा । राजा माफ़ करने की याचना करता है और सवाल करता है इतनी लीद क्यों एकत्र हुई है आपकी कुटिया के सामने । साधु बताता है कि जब भी कोई दान देता है तो दान दी हुई चीज़ जो भी इसी तरह बढ़ती रहती है और दान देने वाले को मिलती है लाखों गुणा बढ़कर । आपको ये सारी लीद खानी पड़ेगी किसी दिन ये विधाता का नियम है इस को बदला नहीं जा सकता ।  विनती करने पर साधु उपाय बताता है कि अगर लोग आपको भला बुरा कह कर आपकी बुराई करें तो आपके बदले ये लीद उनको मिलेगी और ये ढेर कम होता जाएगा । 

भ्र्ष्टाचार भी लीद खाना होता है और समाज में अनगिनत लोग इसी तरह अनुचित ढंग से धन एकत्र कर गंदगी अपने भीतर भरते हैं । शाही लिबास और बनावट से खुद को सजाया जा सकता है लेकिन भीतरी सोच नहीं बदलती है । किसी शासक का करीबी सरकारी कार्यों में भ्र्ष्टाचार किया करता था , राजा उसको दंडित करना तो क्या हटा भी नहीं सकता था कुछ गोपनीय सूचनाओं का सार्वजनिक होने का खतरा था । जब राजा को पता चला लोग उस के कारण शासन की बदनामी करते हैं तो उसका तबादला घोड़ों की देखभाल करने को अस्तबल का कार्यभार सौंप दिया था । राजा ने समझा जितना भी घूसखोर हो उस जगह नहीं मिलेगा कोई भी अवसर । लेकिन ऐसे लोग तरीके खोज लिया करते हैं जो उस ने भी ढूंढ लिया । सुबह गोदाम से घोड़ों को चने तराज़ू पर तोलकर देखभाल करने वाले कर्मचारी को दिए , शाम को वहां की लीद उठाकर तराज़ू पर तोलने बैठा । कर्मचारी हैरान हो गया तो उस से कहा कि जितने चने खिलाने को आपको दिए थे लीद का वज़न उस से बहुत कम है , तुम चने घोड़ों को नहीं खिलाते खुद घर ले जाते हो , ऐसे उसने डराकर कर्मचारी को कुछ हिस्सा खुद खाने कुछ उसको देने पर सहमत कर लिया था । आधुनिक व्यवस्था बिल्कुल उसी तर्ज़ पर चल कर उस जगह भी संभावना खोज लेती है जहां लगता है कि कुछ नहीं रिश्वतखोरी को । इस कलयुगी कथा का ये अध्याय यहीं ख़त्म करते हैं । 

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