बिना आत्मा ज़िंदा लोग ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया
शोध का विषय है कितने लोग हैं जिनकी अंतरात्मा जिनका विवेक उनको उचित अनुचित कर्मों को करते हुए देखता नहीं रोकता टोकता नहीं उनको किसी पर ज़ुल्म ढाते रत्ती भर भी अपराधबोध होता नहीं है । सत्ता के लिए पैसे के लिए अपने स्वार्थ के लिए अहंकार के लिए ऐसे लोग अमानवीय अनैतिक कर्म करते रहते हैं । ये तमाम लोग खुद को धार्मिक ईमानदार और समझदार मानते हैं जबकि जानते हैं कोई ईश्वर उनके आचरण को उचित नहीं समझ सकता है । धार्मिक आडंबर से अन्य लोगों को धोखा दे सकते हैं ईश्वर को नहीं लेकिन अपने मोह माया के जाल में फंसे ये लोग खुद को भी छलते हैं और अपनी आत्मा को दफ़्न कर किसी बेजान शरीर की तरह जीवन व्यतीत करते हैं । राजनेताओं प्रशासनिक अधिकारियों धनवान व्यापारी वर्ग से बड़े बड़े नाम शोहरत वाले अदाकारों फ़िल्मकारों तमाम अख़बार टीवी चैनेल के संपादकों पत्रकारों को जैसा नहीं करना चाहिए करते रहने पर कोई संकोच नहीं होता है । सफलता हासिल करने को ऊंचाई पर चढ़ने को मालूम नहीं कब आत्मा को मार कर किसी गहरी खाई में फैंक देते हैं । जब भी उनकी मृत्यु होती है श्रद्धांजलि सभा में उनकी आत्मा की शांति और सद्गति की प्रार्थना करने वालों में भी बहुत लोग आत्मा विहीन होते हैं खुद उनकी आत्मा भटक रही होती है दुनिया के मायाजाल में । शोक सभाओं में शोक व्यक्त करने वाले कितने लोग नहीं जानते शोक का अर्थ क्या है । अपने दैनिक कार्यों में ऐसे लोग जानते समझते हुए भी कितने ही लोगों को दुःख देते हैं उनको तड़पाते हैं सही कार्य विवेक पूर्ण निर्णय नहीं करते बल्कि गलत कार्य अनुचित पक्ष को अपनाते हैं ।
आपने सुना होगा ज़ालिम शासक और अन्याय करने वाले कायदे कानून का विरोध किया गया था हमारे बड़े महान आदर्शवादी गांधी भगत सिंह जैसे नायकों ने , हम उनकी समाधियां बनाते हैं उन पर फूल चढ़ाते हैं लेकिन अपने सामने वही सब करने वाले लोगों को ज़ालिम कहने से घबराते हैं । हम कायर बनकर किसी ज़ालिम का अन्याय सहते हैं भीतर घुट घुट कर जीते हैं मुर्दा बनकर रहते हैं ।
https://blog.loksetia.com/2024/11/post-1921.html
24 नवंबर 2024 को लिखी पोस्ट , नकली होशियारी झूठी यारी ( खरी-खरी ) डॉ लोक सेतिया पर मैंने सावधान किया था इसकी यारी दोगली तलवार साबित हो सकती है । कभी कभी लगता है कि जो लोग जाने कब से बगैर आत्मा ज़िंदा हैं उनको ऐसी कोई झूठी नकली होशियारी मिल गई तभी ज़मीर को मार कर भी उनको जीना संभव हुआ होगा । कोई पुरानी कथा है कि कोई दुनिया को अपने अधीन करने को जिस इक दैत्य का निर्माण करता हैं आखिर उसी का शिकार खुद होता है । सरकार भी कभी अपने ही बिछाए हुए जाल में खुद फंसेगी उसी तरह । आदमी कुदरती न्याय से बच नहीं सकता है चाहे कोई जिस भी कारण अनुचित कर्म करता है किसी दिन उसको परिणाम भुगतना पड़ेगा ये सभी धर्म कहते हैं और हमने देखा भी है भलाई का सिला भलाई मिलता है और किसी से बुरा करने का नतीजा भी बुरा ही मिलता है ।
धार्मिक कथा इस तरह है : -
कोई अपना घोडा बेचने बाज़ार में जाता है , इक खरीदार घोड़ा देख कर कीमत पूछता है , बेचने वाला कहता है मुझे आज पैसों की बड़ी ज़रूरत है इसलिए सस्ते में बेच रहा हूं पांच सौ में अशर्फियां मोल है । खरीदार कहता है मुझे घोड़े की सवारी कर परखना पड़ेगा । परख कर वो कहता है कि आपका घोड़ा तो अधिक कीमत का है छह सौ अशर्फियां कीमत होनी चाहिए , बेचने वाला कहता है आपको उचित लगता है तो दे दो , तब खरीदार पूछता है आपको मालूम है इसकी कीमत क्या है । बेचने वाला कहता है घोड़ा तो आठ सौ कीमत का है लेकिन मुझे अपनी बेटी की शादी करनी है और मुझे पांच सौ की ज़रूरत अभी तुरंत है । खरीदार कहता है कि मैं आपका घोड़ा पूरी कीमत में आठ सौ चुका कर खरीदता हूं । तब बेचने वाला सवाल करता है कि मुझे इस बात का कारण बताएं कि जब आपको खुद मैं पांच सौ में बेचने को तैयार था फिर आपने महंगा क्यों खरीदा मुझसे । खरीदार बताता है कि मेरे धर्म में समझाया गया है कि कभी किसी की मज़बूरी मत खरीदना अन्यथा कभी कोई तुम्हारी मज़बूरी खरीदेगा बाद में । ये सबक पढ़ते सभी हैं समझते नहीं हैं अधिकांश लोग ।
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