मार्च 18, 2025

POST : 1954 तेरी सूरत से किसी की नहीं मिलती सूरत ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

 तेरी सूरत से किसी की नहीं मिलती सूरत ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया 

इमाम बख़्श नासिख़ जी की ग़ज़ल है , शाहंशाह गुनगुनाते रहते हैं किसी ज्योतिष विशेषज्ञ ने पत्री देख उनके पूर्व जन्म की घटना बताई थी । आपकी प्रेमिका को तब किसी राजा ने छीन लिया था और आप वियोग में तड़प तड़प कर मर गए थे । शहंशाह को सपने में जो सुंदरी दिखाई देती है वही उनकी इस जन्म में पहली प्रेमिका है तलाश करोगे तो किसी दिन मिल ही जाएगी । शहनशाह ने चित्रकार से बिल्कुल वैसी तस्वीर बनवा ली और हमेशा सीने से लगाए रहते हैं । 
 
अभी इक किताब में पढ़ा है आपको आईने में खुद अपना अक्स दिखाई देता है और आपकी सोच में कोई खुद जैसा छाया रहता है । संत असली हमेशा पहले हुए बड़े संतों की छवि मन में लिए रहते थे , कहते हैं जिसका जो भी गुरु होता है आंखें बंद कर उस के दर्शन कर लेते हैं । लेकिन ये बात हम सभी की होती है लोग हमेशा उसी की चर्चा करते हैं जैसी सोच उनकी भीतरी अंर्तमन की होती है , जाकी रही भावना जैसी । ज़ालिम कभी किसी रहमदिल की बात नहीं करते उनको जिस जैसा बनना है उसी की चर्चा करते हैं , प्यासा पानी की भूखा रोटी की चिंता करता है जबकि बहुत अधिक खाने पीने वाला भीतर का सब उगलता है यानी उलटी करता है । आजकल ये विष-वमन रोग बहुत बढ़ता जा रहा है ।
 
शासक लोग कभी सामने अपनी वास्तविक शक़्ल को नहीं दिखलाते हैं बहुत कोशिश कर कितने तौर तरीके आज़माते हैं असलियत छुपाने और बनावट दिखाने की खातिर । लेकिन वो भजन है ना तोरा मन दर्पण कहलाये भले बुरे सारे कर्मों को देखे और दिखाये , मन से कोई बात छुपे ना मन के नयन हज़ार । मन की बात कोई सार्वजनिक नहीं करता जो लगता है करते हैं उनकी परेशानी और है , मन में झांकते हैं तो लगता है कोई पहले का शासक ख़्वाबों - ख़्यालों में छाया हुआ है । उसके बातें उसके कारनामे करते भी हैं साथ चाहते हैं लोग उन जैसा नहीं समझने लगें । मन का चोर क्या नहीं करवाता है कभी कभी तो खुद अपनी ही नज़र में ख़लनायक की छवि उभरती दिखाई देती है । 


जनाब कोई पच्चीस साल से सीने में इक तस्वीर लिए फिरते थे , धुंधली सी यादें जैसे कोई पिछले जन्म की बातें महसूस करता है आपको पुनर्जन्म पर विश्वास नहीं हो तो नहीं समझोगे । करीब आधी उम्र तक पचास का होने से पहले कुछ नहीं करते थे मांग कर गुज़र बसर किया करते थे , सपने देखते थे इक दिन शाहंशाह बन कर शासन करने का । वही किरदार मन को भाता था जिसे दुनिया कभी याद करना नहीं चाहती लेकिन जो इतिहास से कभी भुलाया नहीं जा सकता है तानाशाह शासक हमेशा याद रहते हैं अच्छे न्याय करने वालों को लोग अक़्सर भुला देते हैं । उनकी चाहत है सदियों तक उनको इक मिसाल की तरह दुनिया याद करती रहे , बदनाम होंगे तो भी नाम तो होगा । नीरज जी भी कहते हैं ,  इतने बदनाम हुए हम तो इस ज़माने में , लगेगीं आपको सदियां हमें भुलाने में । न पीने का सलीका न पिलाने का शऊर  , ऐसे भी लोग चले आये हैं मयखाने में । जनता भी कमाल करती है किस किस को ख़ुदा बना कर आखिर पछताती है , कोई शायर कहता है , तो इस तलाश का अंजाम भी वही निकला , मैं देवता जिसे समझा था आदमी निकला । मैं रफ़्ता रफ़्ता हुआ क़त्ल जिस के हाथों से ,   .................      वो क़ातिल मैं आप ही निकला । शायर कौन था , आधा शेर याद है पूरा क्या था याद नहीं है ।
 
बादशाहों की कितनी प्रेम कहानियां होती हैं कितनी निशानियां होती हैं , आधुनिक शासक भी चाहते हैं उनका नाम अमर रहे , आये दिन कहीं कुछ करते बनवाते हैं शिलालेख पर अपना नाम अंकित करवाते हैं ।  इधर तो पुराने शिलालेख हटवा तुड़वा खुद उसे नाम बदल अपने नाम करते हैं । कुछ बनाने में ज़माना लगता है मिटाने में क्षण भर बहुत है आधुनिक युग का विकास यही है तोड़ना तोड़कर कुछ का कुछ बनाना । शायद खुद किसी जन्म में जो जो बनाया उसे ढहाकर आधुनिक नाम से फिर से बनाना जैसा कोई मिट्टी से खिलौने बनाता है तोड़ता रहता है लुत्फ़ उठाता है । कोई बादशाह अपनी रानी को छोड़ किसी पिछले जन्म की माशूका की तस्वीर बनवाता है किसी चित्रकार से अपनी मन में बसी हुई महबूबा की छवि हूबहू और दुनिया भर में उसी को ढूंढता फिरता है , मिलती ही नहीं उसकी सूरत से किसी की भी सूरत ।  पिछले जन्म की प्रेमिका कहां हो । 

Know how your deeds were in the last life जानिए, पिछले जन्‍म में कैसे थे  आपके कर्म

1 टिप्पणी:

Sanjaytanha ने कहा…

सही बात...जाकी रही भावना...तानाशाह याद रहे...बढ़िया व्यंग्य आलेख👌