मेरी निगाह में है ( हास- परिहास ) डॉ लोक सेतिया
किसी पर नज़र रखते हैं पल पल की खबर रखते हैं किसी के लिए छुपे हुए सीसीटीवी कैमरे से या अन्य तरीके से जांच करते हैं ये देखने को कि भरोसे को तोड़ तो नहीं रहा , भरोसा कौन किसी का करता है भगवान पर भी भरोसा नहीं आजकल । बस कोई कोई किसी की प्यार भरी निगाह में होता है अन्यथा हर रिश्ता नाता दोस्ती संबंध सिर्फ इक समझौता है । कोई घर के कोने कोने की खबर से वाक़िफ़ है किसी को गांव गली शहर का सब हाल मालूम है लेकिन ये जो सरकार है इसका ग़ज़ब कारोबार है कुछ भी छिपा नहीं रहता फिर भी ख़ाक़ हो जाएंगे हम उसको खबर होने तक । सरकार बेरहम नहीं होती बस उसको रहम नहीं आता बेबस गरीब लोगों पर उसकी पलकें बिछी रहती हैं कुछ ख़ास लोगों की खातिर जिनका ख्याल उसे रात दिन करना ही है । जनता हमेशा सरकार की होती है पर सरकार चाहे भी तो जनता की हो ही नहीं सकती क्योंकि वो पहले दिल किसी को दे चुकी होती है । सरकार सभी से नज़रें नहीं मिलाती सरकार कभी अपनी नज़रें नहीं झुकाती उनकी नज़रें चार नहीं बेशुमार होती हैं जिनकी गिरफ़्त में अपनी सरकार होती है । न्याय-व्यवस्था पुलिस प्रशासन सभी आंखों वाले अंधे लोग हैं जिनको खुद कुछ दिखाई देता ही नहीं लेकिन शासक राजनेता उच्च अधिकारी का निर्देश मिलते जो नहीं होता वो भी नज़र आने लगता है । सत्ता इक ऐसा चश्मा है जिस में झूठ सत्य से बेहतर स्पष्ट और शानदार दिखता है सच सामने करीब से गुज़र जाता है पता नहीं चल पाता है ।
हर नज़र जिनकी तरफ है उनकी नज़र किनकी तरफ है कठिन है समझना आखिर तिरछी नज़र होती है हुस्न वालों की कनखियों से देखते हैं कौन कौन उनको तांक झांक रहा है माजरा सीबीआई और ई डी का है । वो कुछ अलग बात है कि कभी कभी कहते हैं तेरी आंखों के सिवा दुनिया में रखा क्या है । राजनीति के इशारे भी क्या कमाल करते हैं दूर से करते हैं इशारा करीब आएं तो धमाल करते हैं शतरंज की नई चाल चलते हैं । ये अंधों की नगरी है गूंगे बहरों ने महफ़िल सजाई है दूल्हा कौन है नहीं मालूम इक दुल्हन बरात लाई है । हर चीज़ अपनी हुआ करती थी दुनिया हुई अब तो पराई है । शनिदेव की वक्रदृष्टि की तरह राजनेताओं की गिद्धदृष्टि लोकतंत्र पर हमेशा पड़ती रहती है , जनता के अधिकारों उनकी विरोध की आवाज़ को कुचलने को हमेशा सत्ताधारी शासक प्रशासक तैयार रहते हैं । संवैधानिक संस्थाओं को अपाहिज बना दिया है उनकी बढ़ती आकांक्षाओं ने मनचाहा भविष्य पाने को ईमानदारी और नियुक्त पद की गरिमा को दांव पर लगा सेवानिवृत हो कर अथवा बड़ा ओहदा हासिल करने को कुछ भी करने को तत्पर रहते हैं । इंसाफ की देवी की आंखों पर बंधी पट्टी निष्पक्षता की नहीं सुवधानुसार समझने खामोश रहने से किसी सीमा तक जाने को तैयार हैं जिस का कोई उपचार नहीं ऐसे बीमार हैं । यूं आंखों पर गीत कितने लिखे फ़िल्में तक बनी हैं लेकिन आंखों आंखों में जो बात हुआ करती थी आजकल नहीं होती है अब आंख से अंधे लोग दुनिया भर को मंज़िल का रास्ता बताने लगे हैं सभी उनकी बस्ती में जाने लगे हैं देखने वाले पट्टी अपनी आंखों पर बंधवाने लगे हैं , हम आपको पुरानी ग़ज़ल सुनाने लगे हैं ।
हैं उधर सारे लोग भी जा रहे ( ग़ज़ल )
डॉ लोक सेतिया "तनहा"
हैं उधर सारे लोग भी जा रहेरास्ता अंधे सब को दिखा रहे ।
सुन रहे बहरे ध्यान से देख लो
गीत सारे गूंगे जब गा रहे ।
सबको है उनपे ही एतबार भी
रात को दिन जो लोग बता रहे ।
लोग भूखे हैं बेबस हैं मगर
दांव सत्ता वाले हैं चला रहे ।
घर बनाने के वादे कर रहे
झोपड़ी उनकी भी हैं हटा रहे ।
हक़ दिलाने की बात को भूलकर
लाठियां हम पर आज चला रहे ।
बेवफाई की खुद जो मिसाल हैं
हम को हैं वो "तनहा" समझा रहे ।
1 टिप्पणी:
सही कहा जनता हमेशा...पर सरकार कभी जनता की नही हो सकती
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