सितंबर 15, 2024

जो तुमको हो पसंद ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

                 जो तुमको हो पसंद ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया  

मायके जाने से ठीक पहले श्रीमती जी ने घोषणा कर दी कि भविष्य में घर का गृहमंत्रालय का पद ही नहीं प्रधानमंत्री का पद भी उनके पास रहेगा । उनको प्रशासन चलाने में राष्ट्रपति की कोई आवश्यकता कभी स्वीकार नहीं थी इसलिए उस व्यवस्था को पहले ही अस्वीकृत कर दिया था । मुमकिन है ये योजना उन्होंने पहले से विचारधीन रखी हो और जैसे ही हमने उनको शादी के बाद जो तुमको हो पसंद गीत सुनाया था वो इरादा पक्का बन गया हो । लेकिन उनको कोई जल्दी नहीं थी कुछ समय मुझे अपने पति को निर्णय लेने देना इक रणनीति थी । धीरे धीरे उनके फैसले प्रभावी होने लगे थे बाद में मुझे जानकारी दी जाने लगी जिसे मैंने समझा की मुझे बोझ से राहत देने का प्रयास किया जा रहा है । ठीक उसी समय जनरल परवेज़ मुशर्रफ ने सत्ता अपने हाथ ले कर संविधान को दरकिनार कर तानाशाही घोषित की थी । लेकिन श्रीमती जी ने कभी भी अपनी प्रणाली को तानाशाही नहीं माना , उनका मत है कि वो सही हैं उनका हर फैसला उचित होता है कोई तानशाही नहीं उनको सत्ता का कोई मोह नहीं है । पत्नियां कभी गलत नहीं होती हैं पति हमेशा नासमझ और नादान होते हैं महिला संगठन हमेशा इस पर पूर्णतया सहमत होते हैं । हमारे घर में अघोषित तानशाही का मुखौटा अब उतर गया है पति परमेश्वर का भ्रम पहले ही टूट चुका था । हमने कभी किसी पड़ोसी को अपने घरेलू लोकतंत्र में दख़ल देने की अनुमति नहीं दी है जैसे अमेरिका जैसे देश मानवाधिकार की बात के बहाने आपस में देशों में लड़ाई और शांतिवार्ता साथ साथ चलवाने की कोशिश करते हैं । 
 
महिला मुक्ति मोर्चा को इस की सूचना जाने कैसे मिल गई जबकि हमने निर्धारित किया था कि पत्नी के मायके और ससुराल अर्थात मेरे परिवार को इसकी जानकारी नहीं होने देंगें दोनों ही । महिला संगठन आगामी बैठक हमारे निवास पर आयोजित करने वाले हैं श्रीमती जी बता रही थी फोन पर ।  इतना तो हम भी जानते थे कि ये इक दिन होना ही है मगर इतनी जल्दी अचानक होना हैरान कर रहा था । आखिर मायके से लौटते ही हम महिला संघठन की बैठक के आयोजक और प्रयोजक बन चुके थे । सभी महिलाओं ने सर्वसम्मति से श्रीमती जी का नाम अध्यक्ष पद के लिए प्रस्तावित किया और थोड़ा नानुकर नखरे कर आग्रह स्वीकार कर लिया गया । संसद में महिला आरक्षण की संभावना बढ़ गई लगती है , हमको अपना भविष्य साफ दिखाई देने लगा है । हमारा सवभाव समझौतावादी रहा है कोई भी उपाय हमको खोये हुए अधिकार दिलवा नहीं सकता है । कुछ और समझते हों या नहीं इतना जानते हैं कि घर को संसद या विधानसभा जैसा नहीं बनने देना है क्योंकि तब सत्ता की खींचातानी में देश की तरह घर तहस नहस होना परिणीति होगा । जिस बात को यूं ही उनको खुश करने को कह दिया था ' जो तुमको हो पसंद वही बात कहेंगे , तुम दिन को अगर रात कहो रात कहेंगे ' श्रीमती जी ने उसे दिल की आरज़ू बनाकर सच साबित कर दिया है । अब यही करना हमारी नियति बन गया है । 
 
 
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