सितंबर 18, 2024

याद मां की नहीं , मसालों की ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

    याद मां की नहीं , मसालों की ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया 

बड़े बुज़ुर्ग हमेशा पते की बात कहते हैं हमने अपने बाल कोई धूप में सफेद नहीं किए अनुभव हमेशा सही साबित होता है । आजकल उम्र से पहले ही बाल सफ़ेद होने लगते हैं और कुछ लोग ख़िज़ाब लगाकर भी बालों को रंग कर उम्र छिपाना चाहते हैं लेकिन उम्र बिता कर खट्टे मीठे अनुभव प्राप्त करने की बात बिल्कुल अलग होती है । युवा पीढ़ी को पहले जो बातें फज़ूल लगती हैं बाद में खुद समझ आती हैं अनुभव से तब भूलसुधार संभव नहीं होता । हमने भी अपने बच्चों को हिदायत दी कि हमसे गलती हुई बाप की नहीं समझी तुम वो मत करना क्योंकि हमने नहीं चाहते हुए भी उनकी कही बात पर अमल किया तो सही साबित हुई आजकल तो मनमानी करने की आदत ने लिहाज़ करना छोड़ दिया है जो बाद में पछतावे का कारण बन सकता है । हमारे बाप दादा कहते थे नोट तुड़वाया तो गया बेटा बिहाया तो पराया हुआ खरी बात थी नोट खर्च होते पता नहीं चलता हज़ार से पांच सौ नहीं बीस पचास बनता जाता है । बेटा कितना सयाना हो शादी के बाद पत्नी के पल्लू से बंधकर अच्छा पति साबित होने की कोशिश में सभी पुराने दोस्त रिश्तेदार उसे आम और ससुराल के नाते खास लगने लगते हैं । हर दामाद ससुराल में कुछ दिन तक खुद को बादशाह जैसा महसूस करता है तब आसमान में ज़मीन का महत्व नहीं मालूम होता है । कुछ लोगों को बाप तब तक ज़रूरी लगता है जब तक खुद कमाई नहीं करने लगते हैं । नौकरी आदि में गॉडफ़ादर मिल जाये तो पिता की कोई आवश्यकता नहीं रहती है । दफ़्तर में बॉस और दुकानदारी कारोबार में ग्राहक बाप से अधिक प्रिय और आदरणीय होते हैं । राजनीति में होता था ज़रूरत पड़ती तब गधे को बाप बनाना जबकि बचपन में जो बालक शरारती होते हैं बाप को झूठ बोलकर पैसे लेते किताब खरीदनी है मगर उस से मौज मस्ती कर समझते बाप को उल्लू बनाया है । बाप आखिर बाप होता है औलाद की वास्तविकता समझ जाता है कुछ देर से ही सही । 
 
मगर मां की बात उसकी याद बिल्कुल अलग होती है , मां याद आती है जब भी कोई मुश्किल पेश आती है और कभी घर से दूर अकेलापन महसूस होता है तब आंखे भर आती हैं स्नेहपूर्ण अनुभूति से । कहते हैं शादी के बाद मां और पत्नी में संतुलन बनाना सबसे कठिन कार्य होता है । सास भी बहु भी अच्छी होती है लेकिन दोनों ही बेटे और पति पर अपना विशेषाधिकार खोना नहीं चाहती हैं आपसी अनबन का यही कारण होता है ।पंजाबी में लोकगीत कुछ ऐसे हैं ' लाई लग नूं है मां ने विगाड़िया ' अर्थात बातों में आ जाता है मेरा भोला पति जिसे उसकी मां ने बिगाड़ दिया है । अजीब बात है बिगड़ा हुआ कोई है लेकिन बहु कहती है ' वे मैं सस कुटणी इक निम दा घोटणा लियाईं ' लेकिन ये हंसी मज़ाक में कहना आसान है करना बिल्कुल नहीं । पत्नी और मां दोनों अपनी अपनी जगह हैं ज़रूरत पड़ने पर याद उनकी आती है नई नवेली दुल्हन शर्माती है कुछ साल बाद कितने नुस्खे आज़माती है मां के पल्लू से पति को छुड़ाती है तब चैन पाती है । 
 
आखिर इक कंपनी ने इस समस्या का समाधान समझाया है उस कंपनी के मसाले मां के प्यार का विकल्प बन सकते हैं । दुल्हन निश्चिंत है उसकी गाड़ी की डिक्की में किसी कंपनी के कितने ही मसाले के डिब्बे भरे हुए साथ ले जाएगी उनसे बना खाना खिलाएगी तो उनकी सुगंध मां के हाथ के खाये खाने का स्वाद भुलाएगी । मां की महक डिब्बों में भर कर बेची जाएगी । मां के हाथ का स्वाद झूठा कंपनी के मसालों का सच्चा उनकी सुगंध डाइनिंग टेबल की तरफ खींच लाएगी फोन पर मां से बात बंद करवाएगी । इक दूसरी कंपनी मां जैसा अचार खिला रही है मिलावट से बचाने को खुद को शुद्ध कहलाने का प्रमाणपत्र मिला दिखला रही है । भला कोई मां ऐसा प्रमाण जुटा पाएगी कंपनियों के उत्पाद लोकप्रिय हो रहे हैं मां खाली जगह बनती जा रही है । काश कोई कंपनी उनको भी अपनाये जिनकी मां ही नहीं होती है उनकी ज़िम्मेदारी कोई सरकार भी कंधों पर नहीं ढोती है किस्मत उनकी खराब होती है । 
 
शराब और सिगरेट वाले तन्हाई और दोस्तों की महफ़िल का रंग जमाने वाले साथी हैं विज्ञापन समझाते हैं । कभी भी कुछ लोग इनसे ही प्यार करते हैं ज़िंदगी तबाह कर भी उनको अपना बनाते हैं बिना इनके नहीं जी पाते इनसे ही मौत को गले लगाते हैं । बीमा कंपनियां प्रचार करती हैं बुरे समय वही अच्छा व्यवहार करती हैं जबकि उनकी सच्चाई कुछ और है हमेशा आपके साथ होने का खोखला शोर है बहुत कठिन है उनकी भुगतान राशि मिलने का कोई ओर है न ही कोई छोर है । छलिया है चितचोर है किसी का नहीं उन पर चलता ज़ोर है आपका बही खाता उनका घटा जोड़ है अजब मोड़ तरोड़ है । मौत के बाद साथ निभाने का वादा जब भी कोई करता है झूठ है आखिर मुकरता है कौन संग संग मरता है । कंपनियां भाई बहन का प्यार का भी कोई विकल्प ढूंढ लाएंगी रक्षाबंधन से लेकर सब ऑनलाइन उपलब्ध करवाएंगी दिल बहलाएंगी उलझनें नहीं सुलझ पाएंगी ।मुसीबत तब आएगी जब पत्नी का भी कोई विकल्प कोई कंपनी बाज़ार में ले आएगी । नल के पानी और बोतल बंद मिनरल वाटर में किस की जीत होगी ख़ामख़याली समझ रहे हो पर कब क्या हो भरोसा नहीं है । जिस तरह कंपनी बताती है पुरे चौदह मसाले हैं सही मात्रा में उसी तरह पत्नी भी सर्वगुण सम्पन्न को लेकर उनकी भविष्यवाणी हंगामा खड़ा कर सकती है । वही बाज़ार जो सास को छोड़ बहू साथ खड़ा है कल उसका क्या हाल करेगा नहीं जानती कोई महिला भी कितनी अनुभवी हो बेशक ।  
 
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1 टिप्पणी:

Sanjaytanha ने कहा…

बहुत सलीके से रिश्ते नातों अनुभव की बात करता लेख बखूबी आज के दौर के विज्ञापनों की ऒर जाता है और उनकी खबर लेता है