अगस्त 08, 2024

दर्द ए दिल की दवा करते हैं ( हास्य - कविता ) डॉ लोक सेतिया

 दर्द ए दिल की दवा करते हैं  ( हास्य  - कविता ) डॉ लोक सेतिया

शायद नहीं यकीनन हम असली कम नकली अधिक बन गए हैं  
सोशल मीडिया से टीवी शो , सिनेमा या किसी सभा में जाकर ,
 
भावनाएं जागती हैं , हम अश्क़ बहाते हैं संग नाचते झूमते गाते हैं 
जगह वातावरण बदलते ही भूलकर , फिर पहले जैसे बन जाते हैं ।
 

दोस्ती प्यार रिश्तों का हर दिन कोई बाज़ार सजाते हैं बनाते हैं 
कीमत मिलती है , बिकते हैं मोल चुका कर खरीद कर ले आते हैं ,
 
भरोसा अजीब है कहते हैं करते हैं बार बार मगर उसे आज़माते हैं
जहां कोई किसी साथ मिल के ख्वाबों की दुनिया अपनी बसाते हैं ।  

 
क्यों कहते हैं कि शीशा हो या दिल हो आखिर टूट ही जाता है ,
दिल कोई खिलौना तो नहीं जो इक टूट जाए तो दूसरा ले आए 
 
दिल अपने पास रहता तो हर कोई संभाल कर रखता हमेशा ही 
इश्क़ में दिल कब किस पर फ़िदा हो जाता है बस में नहीं रहता । 
 
 
दिल चीज़ ही ऐसी है जैसे , कोई बेटी इक दिन पराए घर जाना है 
मुहब्बत का यही अफ़साना , दिल से दिल का नाता इक बनाना है ,
 
कहते हैं जिसे प्यार कोई समझा है न कभी जाना , किस पे आना है 
दिल की बस्ती में बर्बाद लोग रहते हैं जिनका नहीं कोई  ठिकाना है ।  
 

कितने पुल बनते ही टूटने को हैं फिर से बनवाए जाते हैं , बीच धारे 
कितनी भी लंबी दूरी हो कितना तेज़ बहाव गहरा पानी बीच बहता हो  ,
 
टूटे बंधन जोड़े जाते हैं इधर से उधर से सभी फिर मिल जाते किनारे 
पहले से चौड़े और मज़बूत दरिया पर पुलों से नाते निभाए ही जाते हैं । 
 

दिल किस ने किसका तोड़ा , ये अजब पहेली इक गेंदा इक चमेली है 
दिल का ऐतबार मत करना कभी प्यार मत करना कहती अलबेली है ,
 
ये खेल है लेकिन बन जाता है तमाशा कोई भी देता नहीं तब दिलासा  
आशा सुनहरे सपने बिखर जाते हैं बचती है सिर्फ हताशा और निराशा । 
 

दुनिया बदल गई है आदमी में दिल ही नहीं है मिलता सीने में सभी के 
किस्से हुए पुराने आशिक़ महबूबा साथ मरते सच्ची उनकी आशिक़ी के ,
 
इक बाज़ार बन गया सच भी कल्पना का सोशल मीडिया पर भी जहां 
झूठा है आसमान भी फरेब का जहां अकेला हर आशिक़ का है कारवां । 
 
 
टूटे हुए दिल का अंबार लगा है बाज़ार में इक ऐसा इक संसार बना है 
नाकाम मुहब्बत वालों की महफ़िल खूब जमती है जश्न हो जैसे कोई ,
 
पुरानी इक दिन तस्वीर बदलती है अपनी सबकी तकदीर बदलती है 
रांझा मजनू लैला सोहनी महीवाल बदलते हैं जूलियट हीर बदलती है ।  
 

बेवफ़ाई भी कभी कभी ज़रूरी होती है बिछुड़ना कोई  मज़बूरी होती है 
हर प्रेम कहानी लाजवाब लगती है , दास्तां अगर आधी अधूरी होती है ,
 
उसने बदला अपना रास्ता क्या हुआ हम भी नई इक और राह करते हैं
खुद तबाह नहीं होते किसी की चाहत में , दर्द ए दिल की दवा करते हैं । 
 

 साहित्य दुनिया | क़लक़ मेरठी का मशहूर शेर.. तू है हरजाई तो अपना भी यही तौर  सही तू नहीं और सही और नहीं और सही | Instagram