सितंबर 26, 2023

ख़ुद अपनी आवारगी का चर्चा ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया

   ख़ुद अपनी आवारगी का चर्चा ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया  

टीवी पर प्रसारित हर शो में ये दिखाई देता है जिसे देखो महिला पुरुष को सिर्फ एक ही संबंध की नज़र से देखता है । खुले-आम सार्वजनिक मंच पर लोग अपनी जवानी में किसी के लिए आकर्षित होने का इज़हार करते हैं । टीवी सीरियल सिनेमा और कॉमेडी शो वालों को तो बेशर्मी मनोरंजन लगती है और घटिया चुटकुले हंसने हंसाने का माध्यम कोई साफ सुथरी कॉमेडी जो हुआ करती थी उनको नहीं आती है । जब इक अधेड़ उम्र की महिला या पुरुष टीवी पर अपने पति या पत्नी की उपस्थिति में किसी अभिनेता या फ़िल्मी नायिका को लेकर अपनी धड़कन बढ़ने की ख्वाबों की और जाने क्या क्या महसूस करने की बात बताते हैं तब सोचता हूं कभी वही घर में किसी अन्य जान पहचान वाले को लेकर अपनी भावनाएं बतलाए तो अंजाम क्या होगा । जिस समाज में बिना बात शक की निगाह से देखते हैं आसपास सभी को अपने परिजन की ऐसी आशिक़ी पर मुमकिन है मामला बढ़ते बढ़ते अदालत की चौखट तक पहुंच जाए । 
 
हमने अपने बचपन से युवावस्था तक ये नहीं देखा था बल्कि सुनते थे समझते थे कि जो भी इक दूजे को चाहते हैं उसको लेकर सार्वजनिक तो क्या किसी से भी बात करना अपने प्यार की रुसवाई मानते थे । तब अपने मन की बात होंटों पर नहीं आती थी । लेकिन जो वास्तव में होता था वो बड़ा ही पावन और बहुत शानदार रिश्ता नाता हुआ करता था , किसी को भाई किसी को बहन किसी को मौसी चाची नानी ऐसे कितने बंधनों से अपना समझते ही नहीं थे मानते भी थे और निभाते भी थे जीवन भर । आजकल टीवी सीरियल फिल्मों ने हिंसा और शारीरिक आकर्षण और जिस्मानी संबंध को मनोरंजन के नाम पर दर्शकों को बेहद गलत संदेश देना शुरू कर समाज का बेड़ा गर्क किया है ये निर्माता निर्देशक फ़िल्मकार बीमार मानसिकता के शिकार लोग हैं । अब तो अधिकांश लोगों का मोहभंग होने लगा है लेकिन सार्थक सिनेमा बनाने वाले गुरुदत्त जैसे लोग कहां हैं अभिनेता ओम प्रकाश और अन्य कितने हास्य कलाकार अपनी अभिनय क्षमता और अपनी कल्पनाशीलता से दर्शकों को लोट पोट कर देते थे । ये माध्यम जितना आधुनिक हुआ है उतना ही इसकी ऊंचाई घटते घटते रसातल तक इनको ले आई है । पहाड़ पर खड़े हैं लेकिन और भी बौने लगते हैं ये बड़े कद वाले ऊंचे लोग । 
 
हमने कोशिश की चुप चाप ऐसे लोगों की असलियत पता करने की तो पाया अधिकतर ऐसे महिला पुरुष अपने बचपन से जवानी तक ही नहीं बुढ़ापे तक भी सब से छुपकर बहुत कुछ बार बार करते हैं लेकिन सब के सामने बड़े ही आदर्शवादी बने रहते हैं । निदा फ़ाज़ली जी की इक ग़ज़ल मशहूर है चलो पढ़ते हैं :- 
 
मन बै-रागी तन अनुरागी कदम कदम दुश्वारी है 
जीवन जीना सहल न जानो बहुत बड़ी फ़नकारी है ।   
 
औरों जैसे हो कर भी हम बा-इज्ज़त हैं बस्ती में  
कुछ लोगों का सीधा-पन है कुछ अपनी अय्यारी है । 
 
जब जब मौसम झूमा हम ने कपड़े फाड़े शोर किया 
हर मौसम शाइस्ता रहना कोरी दुनिया-दारी है । 
 
ऐब नहीं इस में कोई लाल-परी ना फूल-कली 
ये मत पूछो वो अच्छा है या अच्छी नदारी है । 
 
जो चेहरा देखा वो तोड़ा नगर नगर वीरान किए 
पहले औरों से ना-खुश थे अब खुद से बे-ज़ारी है ।  
 

 

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