सितंबर 10, 2023

इंडिया को भारत बनाएं ऐसे ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

        इंडिया को भारत बनाएं ऐसे ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया  

  ये मौसम कितना सुहाना है किसी से प्यार जतलाना है , आई लव यू लिखा था मिटाना है , मुझको तुम से प्यार है कहलवाना है । बड़ा खूबसूरत इक गाना है ना-ना-ना-ना बोलना छुड़वाना है बस हामी भरवाना है । क ख़ ग घ याद रखना है ए बी सी डी को भूल जाना है ये किस्सा नया है सदियों पुराना है । जिसको याद रखना था उसी को भूल जाना है बिगड़ी हुई तकदीर को इस तरह से बनाना है नहीं कोई भी हम जैसा ज़माने को दिखाना है । क़र्ज़ लेकर घी पियो का सबक फिर दोहराना है अभी तो जीना है कल का क्या इक दिन सबको मर जाना है । उधार मिलता है जितना ले लो चुकाएगा कोई जिस को इतिहास बनाना है ये सब कागज़ के खेल हैं खिलाड़ी हम खेल हमारा दुनिया को खिलाना है । 
 
  हिंदी पढ़ना लिखना ज़रूरी है  , यही सबसे बड़ी मज़बूरी है । कॉलेज विश्वविद्यालय नहीं गुरुकुल बनाएंगे , संस्कृत भाषा अपनाएंगे हिंदी को तब भी बोलते हुए घबराएंगे । शहर महानगर विदेशी आचरण सबकी बारी आएगी बकरे की मां आखिर कब तक खैर मनाएगी । अपनी पुरानी विरासत वेश भूषा खेत खलियान पुराने गांव और सीधे सच्चे भोले भाले लोग यही पहचान होगी भारतवासी हैं और जो भी आधुनिकता की बात करेगा इक पाप या अपराध करेगा । हमको फिर वापस जाना है अपना सब कुछ बहुत पुराना बनाना है जो सच है सामने समझना ये इक अफ़साना है । हमने असंभव को संभव कर दिखाना है सदियों का लिखा इतिहास मिटाना है सागर का सारा का सारा पानी वापस नदियों को लौटना है । सरकारी बही खाते में रुपया पैसा नहीं कौड़ी अशर्फी दमड़ी धेला पाई का चलन चलाना है डॉलर वॉलर पाउंड को उनकी औकात दिखाना है मॉम डैड अंकल आंटी पर प्रतिबंध लगाना है माता पिता चाचा ताऊ दादा नाना दादी नानी बच्चों से कहलाना है । ये चुनावी खेल की राजनीति जिस ने हमको बर्बाद किया इस लोकतंत्र की लाश को दफ़नाना और जलाना है । जनता जनता है राजा राजा है किस बात को फिर शर्माना है हम शासक हैं शानो शौकत है बादशाही का लुत्फ़ उठाना है जो मनमर्ज़ी करने का ऐलान कितना पुराना है । हमने बनाने ताजमहल अपनी मुहब्बत वाले और जिन हाथों ने बनाया उनको तलवार से कटवाना है मुहब्बत और जंग में सब जायज़ है क्या क्या नहीं दिखलाना है । सभी झूठे हैं चालाक है चोरी करना चाहते हैं मगर अदालत में सभी को निर्दोष ईमानदार का सर्टिफिकेट लाकर सबको उल्लू बनाना है । देशभक्ति का कारोबार करना सीखना और सिखाना है सबको खुद सभी चाहिए नहीं समाज को कुछ भी लौटाना है ।
 
जो भी होगा अच्छा होगा ज़ुल्म सहना चुप रहना है ये कच्ची मिट्टी की दीवार ही तो है बारिश में जिस को ढहना है । निराश होने की ज़रूरत नहीं है आपको उम्मीद कुछ रहती है होता जो है कभी सोचा नहीं था क्या होना था क्या होने की बात है यही उजाला है यही काली अंधियारी रात है भारत के सामने इंडिया की क्या औकात है । अभी तलक  सब तरफ इंडिया का मचा हुआ शोर था भूल जाओ कैसा अजब दौर था आने वाली इक सुहानी भौर है बिजली कड़क रही है चमक रही है बड़ा शोर है । भारत क्या है इंडिया किसे कहते हैं बस ऐसे सवालों ने देश को बढ़ने नहीं दिया है हम जो चाहते थे नहीं बन सके और जो थे हमको वो रहने नहीं दिया । कुछ लोगों को मंज़ूर ही नहीं लोग चैन से ज़िंदा रहें । प्राण जाए पर वचन न जाए इक पुरानी फिल्म है आशा भोंसले जी की आवाज़ में इक गीत है , चैन से हमको कभी अपने जीने न दिया । चांद के रथ पर रात की दुल्हन जब जब आएगी , याद हमारी आपके दिल को तड़पा जाएगी  , इक पल हंसना कभी दिल की लगी ने न दिया । प्यार से जलते ज़ख्मों से जो दिल में  उजाला है अब तो बिछड़ के और भी ज़्यादा बढ़ने वाला है
आपने जो भी दिया वो तो किसी ने न दिया ज़हर भी चाहा अगर पीना तो पीने न दिया । शहंशाहों की चाहत का हासिल यही होता है उनके पसंदीदा डायलॉग हुआ करते हैं जीने भी नहीं देंगे मरने भी नहीं देंगे । चलो बहुत कुछ बदलने वाले थे बदला भी मगर हासिल कुछ भी नहीं हुआ तो अब नाम ही बदलते हैं इंग्लिश से हिंदी की तरफ कदम बढ़ाते हैं इस हिंदी दिवस पर यही आज़माते हैं ।     

शायर सुदर्शन फ़ाख़िर कहते हैं :-

कुछ तो दुनिया की इनायात ने दिल तोड़ दिया

और कुछ तल्ख़ी-ए-हालात ने दिल तोड़ दिया

हम तो समझे थे के बरसात में बरसेगी शराब

आई बरसात तो बरसात ने दिल तोड़ दिया

दिल तो रोता रहे ओर आँख से आँसू न बहे

इश्क़ की ऐसी रिवायात ने दिल तोड़ दिया

वो मिरे हैं मुझे मिल जाएँगे आ जाएँगे

ऐसे बेकार ख़यालात ने दिल तोड़ दिया

आप को प्यार है मुझ से कि नहीं है मुझ से

जाने क्यूँ ऐसे सवालात ने दिल तोड़ दिया


 


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