सितंबर 02, 2023

करीब होकर भी दूरियां ( कहानी ) डॉ लोक सेतिया

      करीब होकर भी दूरियां ( कहानी ) डॉ लोक सेतिया 

कहानी शीर्षक देने से ये कहानी नहीं बन सकती है ये बताना लाज़मी है कि ये किसी की कहानी नहीं लेकिन हम सभी की ज़िंदगी की हक़ीक़त ज़रूर है । कविता ग़ज़ल या व्यंग्य निबंध कुछ भी इस विषय को पूर्णतया समझा नहीं सकता और उपन्यास बन नहीं सकता इसलिए यही विकल्प बचता है कहानी कह दिया जाए । मगर इस को कहानी बनाना चाहता नहीं क्योंकि तब कितने किरदार बनाने पड़ते हैं और पाठक उन सभी किरदारों में वास्तविक संदेश को अनदेखा कर सकते हैं । आप इस को चर्चा समझ सकते हैं और बिना किसी को मुजरिम ठहराए विमर्श कर सकते हैं कौन सही कौन गलत है इस का निर्णय करना व्यर्थ है । कुछ गलतियां अपनी कुछ सामने वाले साथी की हो सकती हैं मगर समझना इस बात को है कि परिवार में दोस्ती में प्यार में कैसे मधुरता बनाई और कायम की जा सकती है ताकि अनावश्यक टकराव की नौबत ही नहीं आये । 
 
अधिकांश लोग चाहते हैं जिनसे प्यार का रिश्ता है भाई बहन पिता माता अथवा पति - पत्नी का उनको बदल सकें और जैसा हम चाहते हैं उस तरह से आचरण करना सिखला सकें । यही सबसे बड़ी समस्या है किसी को प्यार करते हैं तो उसको आज़ादी से क्यों नहीं जीने देना चाहते हैं । बेशक अपनों की भलाई को देख किसी बात पर मार्गदर्शन किया जाना उचित है लेकिन समझाने के बाद क्या सही है क्या नहीं ये निर्णय तो उस पर छोड़ना होगा अन्यथा विवश करना किसी को कैद में गुलामी के पिंजरे में रखना प्यार नहीं खुदगर्ज़ी होगी ।  कोई वास्तव में किसी को चाहता है तो ऐसा कभी नहीं कर सकता है जिस से उस को ख़ुशी नहीं दर्द और तकलीफ़ मिले जिस से प्यार करने का दम भरते हैं । ख़ासकर पति - पत्नी दो अलग अलग परिवेश से बड़े होते हैं और बचपन से दोनों की अपनी अपनी समझ पसंद विकसित होती है , लेकिन ऐसा होता है कि दोनों में कोई स्वीकार नहीं करता कि दूसरा उसकी बात को नहीं माने जबकि खुद वो उसकी भावनाओं की कदर नहीं करता है । सामान्यतय: हम अनचाहे मन से स्वीकार कर लेते हैं और किसी भी तरह रिश्ता निभाते रहते हैं । लेकिन ऐसा जीवन कभी कोई वास्तविक ख़ुशी नहीं दे सकता है और मन के भीतर इक असंतोष दबाए रहते हैं । सही नाते में इक दूसरे को समझना भी ज़रूरी है और आपस में इक दूजे की भावनाओं का आदर करना भी । मतभेद होने पर स्वस्थ संवाद किया जा सकता है मगर उस के बाद उचित अनुचित का निर्णय अपना अपना होना चाहिए और इतना ही नहीं हमें अपने पति पत्नी प्रेमी प्रेमिका दोस्त पर विश्वास करना चाहिए कि वो कुछ भी ऐसा नहीं करेगा जिस से आपको ठेस पहुंचे और यही आपको भी समझना ज़रूरी है ।
 
अजीब बात है इधर हम कहने को बेहद करीब होते हैं पर असल में हम में दूरियां बढ़ती जाती हैं । कैसी विडंबना है कभी फासले हुआ करते थे मिलना जुलना कठिन होता था तब भी दिलों में चाहत रहती थी और आज जब आने जाने के साधन अच्छे हैं हम आपस में मिलने की चाहत नहीं रखते बल्कि समय पैसा होने पर कोई जगह ढूंढते हैं सैर करने को कुछ दिन ख़ुशी से बिताने को । घूमना फिरना बुरी आदत नहीं है लेकिन जब अपने दोस्तों परिजनों से मिलने को छोड़ अनजान अजनबी जगहों पर जाते हैं तो कुछ दिन की ख़ुशी मिलती है लेकिन अगर अपने मित्रों संबंधियों से मिलने जाते तो इक स्थाई ख़ुशी हमेशा हमको भी उनको मिलती । सोचा ही नहीं था कभी चिट्ठी का इंतज़ार किया करते थे फिर फोन पर हालचाल पूछते थे और अब हर किसी के पास स्मार्ट फोन है तब भी बिना मतलब कोई किसी से बात करना नहीं चाहता है । फेसबुक वहट्सएप्प ने तो ऐसा कमाल कर दिया है कि गैर से रिश्ते बनाते हैं और अपनों से फासले बढ़ाते हैं । किस किस को किसी ने क्यों ब्लॉक किया है ये किसी पहेली से कम नहीं , कारण कुछ और हैं और कहते हैं उनकी सोच हमारी सोच से नहीं मिलती या फिर फुर्सत नहीं का बहाना है जबकि दिन भर व्यर्थ की बातों में समय बर्बाद किया करते हैं । इधर ज़िंदगी भर किसी से मिलते नहीं लेकिन मौत होने पर शोक-सभा में अवश्य जाते हैं इक तस्वीर पर फूल चढ़ाने जिस को मुमकिन है हमेशा कांटे ही मिलते रहे हों जीवन भर । 
 

 
 
    

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