सितंबर 05, 2023

आगे-आगे देखिए होता है क्या ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

     आगे-आगे देखिए होता है क्या ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया  

असली बात धंधे की है बाकी पढ़ाई लिखाई सब बेकार की सरखपाई है आज शिक्षक दिवस है आपको वही सीखना है जिस में पलक झपकते ही 615 करोड़ का निवेश 31000 करोड़ का कारोबार कर सके । हमने कर दिखाया है चंद्रयान 3 से झंडा फहराया है दुनिया का सर चकराया है । इक स्याने ने सोचा है समझ कर गणित लगाया है सुना है युगों पहले सूरज को किसी ने निगला था अंधियारा छाया था उसने सबकी विनती सुन कर सूरज को छोड़ दिया था दुनिया को मिटने से बचाया था । उसकी तलाश है इक उसी की आस है फिर से दिखलाना है दोहराना है और सूरज को अपना बंदी बनाकर विश्वगुरु से सबसे बड़ी ताकत बन कर अपना सिक्का चलाना है ।  दुनिया सोना चांदी पट्रोल हवाई जहाज़ बेचे हमको तो सूरज की धूप और उजाला बेचना है और हर घड़ी मुनाफ़ा बनाना है दुनिया के सभी देशों को अपने घर बुलाना है ज़िंदगी क्या है छांव क्या धूप क्या करिश्मा दिखलाना है । बेचना आता है जिस को वो सब बेच सकता है यहां तो राजनेता पत्रकार ज़मीर बेच कर मालामाल होते जाते हैं । बिकने को हर कोई तैयार है कीमत मिलने का बस इंतज़ार है । इक कहानी है सूरज भी चांद को अपने से नीचा समझता था और उस से कहता तुम्हारे होने नहीं होने से कुछ फर्क नहीं पड़ता है । किसी नगरी वालों का अनुरोध सुनकर दिन रात दिखाई देने लगा मगर कुछ ही दिन में लोग बेहाल हो गए और चांद से विनती की उनकी परेशानी दूर कर रात को फिर से उगने लगा तभी जीवन संभव हो पाया । 
 
कोई खुद को सूरज जैसा अहंकार लिए कभी नहीं अस्त होने की ज़िद करने लगा है । दुनिया को अपनी गर्मी अपनी तपिश से झुलसाने का भय दिखला खुद को सबसे महत्वपूर्ण घोषित करने को खुद ही राख होने लगा है । सपनों की ज़िंदगी जीते जीते मदहोश होने लगा है अपने ही को देख कर दृष्टि खोने लगा है । धरती पर छाई घनी काली अंधियारी रात है सूरज नहीं मानता उसके लिए रात भी दिन है रात की क्या औकात है । धरती से उसका दूर का नाता है उसको जलाना आता है बादलों से छिप कर रहना नहीं भाता है । इक आग है जिस में नहीं पानी है सूरज को नहीं याद नानी की कहानी है जो भी करीब आता है बाद में पछताता है । सूरज का अपना निज़ाम है जिस किसी को गले लगाता है उसका निशां तक नहीं नज़र आता है । धरती वालों की अजब माया है धरती को नहीं संवारा चांद से दिल लगाया है ये सारी सच में इक झूठी मोह माया है इन सुनहरे ख्वाबों ख्यालों ने बड़ा सितम ढाया है । ये धूप है लगती है साया है दुष्यंत कुमार कभी ये राज़ कोई नहीं समझा है क्या झूठ की नगरी है क्या खोया क्या पाया है । 
 

 

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