हुनर है अपना सभी नाज़ उठा लेते हैं ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया
हुनर है अपना सभी नाज़ उठा लेते हैं
कहीं भी कोई मिले दोस्त बना लेते हैं ।
हसीन वादी में हमसफ़र मिले कोई गर
तो रेगिस्तान में फूल खिला लेते हैं ।
उठा दुआ के लिए हाथ नहीं कुछ मांगा
नसीब बिगड़ा हुआ खुद ही बना लेते हैं ।
जिन्हें अकेले में जीने का सलीका आता
वो लोग ख़्वाबों की दुनिया को सजा लेते हैं ।
कभी हमारी वफ़ा को भी परखना इक दिन
रस्म मुहब्बत की हर एक निभा लेते हैं ।
कहीं किसी से मिलें मिल के मुस्कुराते हैं
ये अश्क़ अपने ज़माने से छुपा लेते हैं ।
कभी भी बेदर्द मत तुम बन जाना ' तनहा '
यकीन करते हैं तुम से जो दवा लेते हैं ।
1 टिप्पणी:
शानदार ग़ज़ल है सर
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