अप्रैल 02, 2023

पढ़ाई किसी काम न आई ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया

   पढ़ाई किसी काम न आई  ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया 

किताबी पढ़ाई वक़्त पर नहीं काम आई , अनपढ़ सबको समझाते  हैं दुनिया की मत करो भलाई , हमको कभी नहीं समझ आई ज़माने भर की चतुराई । ढाई आखर प्रेम के पढ़ कर पंडित होना आसान नहीं है सब को चाहिए दूध मलाई पढ़े लिखो को छाछ भी मिल जाए यही बहुत है , ठंडी मीठी बर्फ मलाई सत्ता के हिस्से में आई सरकार ने  खूब खाई मौज मनाई । प्यार किया हमने सबसे समझदारी नहीं रास आई सबने हमको नादान बताया उनकी होशियारी नहीं हम समझे भाई । ज़िंदगी भर मुहब्बत को ईबादत माना नफरत करनी कभी न भाई मत पूछो कितना पढ़े हम कोई डिग्री नहीं कमाई ।  

कोई हमसे पूछे तो बताएं क्या , इश्क़ छुपता नहीं छुपाने से निगाहों की ज़माने से , हो गया प्यार का जुर्म कैसे ज़िंदगी की खूबसूरत ख़ता है , हम भी करते थे मुकर जाएं क्या । ज़ुबां पर ताले लगे हैं राज़ भरी महफ़िल को सुनाएं क्या , सिलसिले ख़त्म हुए क्योंकर मेरे रकीब ये वाकया दोनों भूल जाएं क्या । दोस्तों से निभाना नहीं आसां दुश्मनों को अपने घर बुलाएं क्या । याद करते हैं भूले बिसरे गीतों को कुछ अल्फ़ाज़ छूट जाते हैं गाते गाते सुर की जगह बस तबला हार्मोनियम बजाएं क्या । कितनी तस्वीरें गुलाबी खत कितने क्या लिखा क्या पढ़ा क्या समझा उनकी ज़ुल्फ़ों को रुख से हटाएं क्या । बात कल की है पहली अप्रैल की महफ़िल में ज़िक्र चला किसी और पढ़ाई की डिग्री का हम ने छेड़ दी बात प्रेम की पढ़ाई की जिस को सब ने भुला दिया है और यूं ही चलते चलते तपती गर्म हवाओं का मौसम बदल कर बसंत का सुहाना मौसम हो गया । याद पिया की आये मोरा मन घबराए बाली उम्र की चाहत का यही होता है । शादी विवाह का गठबंधन होने पर सामाजिक प्रमाणपत्र जैसा सबूत मिलता है और आप आवारा से घर परिवार वाले पति - पत्नी बन जाते हैं कहलाते हैं । हर साल वर्षगांठ मनाते हैं दुनिया भर के रस्मो-रिवाज़ निभाते हैं ख़ुशी हो या ग़म साथ साथ निभाते हैं । कभी कभी पास रहकर दूर होते हैं कभी दूर होकर भी साजन सजनी को करीब पाते हैं । राजनेताओं की अपनी अलग परंपराएं  होती हैं उनके रिश्ते सत्ता की सौदेबाज़ी कहलाते हैं बनते कम बिगड़ते अधिक जाते हैं बस कोई नहीं समझा कयामत पर कयामत ढाते हैं उनकी बात का कोई भरोसा नहीं वफ़ा नहीं बेवफ़ाई का चलन चलते हैं और इसी पर इतराते हैं । 
 
स्कूल कॉलेज की शिक्षा पढ़ कर मिलती है जो डिग्री उसकी हालत मत पूछो जाने कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं और समझ सच में कुछ भी नहीं आता बल्कि ऊंची शिक्षा बड़े पद पर नौकरी मिलते ही बंदा किसी बेजान मशीन की तरह बन जाता है । आधुनिक शिक्षा ने अच्छे आदर्श मानवीय मूल्यों की किताब को बेकार घोषित कर सिर्फ भौतिकवाद की पढ़ाई को सफलता का मापदंड बना कर पेश कर दिया है और सफलता का अर्थ धन दौलत सुख साधन ऐशो आराम भरा जीवन जीने का इक सुनहरा ख़्वाब जिस का टूटना तय होता है कुर्सी से उतरते ही आदमी आकाश से ज़मींन नहीं नीचे पाताललोक पहुंच जाता है । जिस अधिकारी का पालतू कुत्ता मरा तो शहर शामिल था उसकी मय्यत पर खुद परलोक सिधारा तो कोई शोक जताने नहीं आया श्मशानघाट तक । जाने कितनी स्मृतियां ईनाम पुरुस्कार के प्रतीक बंद अलमारी में धूल चाटती कुछ किताबों के साथ ख़ामोशी से संवेदना व्यक्त करते रहे संवेदना के खो जाने का कितने सालों से चुपचाप साथ साथ । 
अजीब लोग हैं किसी की शिक्षा की डिग्री देखने की ज़िद करते हैं और लाजवाब फैसला है अदालत इस जुर्म पर जुर्माना लगाती है । देखने दिखाने से क्या होगा पढ़ कर क्या सीखा बिना पढ़े क्या जाना इक उम्र में इन सभी की ज़रूरत नहीं रहती है चलिए आपको दो छोटी छोटी कहानियां सुनाते हैं ।  
 

                                 कुनबा डूबा क्यों ( लोक कथा ) 

गणित के अध्यापक जी अपने परिवार को संग लेकर कहीं जा रहे थे , रास्ते में इक नदी आई तो मास्टरजी ने अपने हाथ पकड़ी इक छड़ी  जिस पर निशान लगे थे लंबाई गहराई नापने को उसे पकड़ नदी को इक किनारे से बीच के और हिस्सों से दूसरे किनारे तक की गहराई को नाप लिया और उन सब का औसत निकाला जो चार फुट निकला । अर्थात नदी में पानी कहीं एक कहीं दो कहीं पांच फुट था उनका औसत चार फुट निकाला गया । उस के बाद परिवार के छोटे बच्चों से पत्नी का खुद का कद मापा गया और सब के कद की ऊंचाई का औसत निकाला गया जो नदी के पानी की गहराई से अधिक था । मास्टरजी को अपनी शिक्षा पर यकीन था की जब परिवार के कद की औसत ऊंचाई नदी की औसत गहराई से बढ़कर है तो नदी में चलते हुए पार जाना सुरक्षित है । अध्यापक आगे आगे चले और सब को पीछे पीछे चलने की हिदायत दे दी । मास्टरजी जब नदी पार पहुंचे तो पीछे सब सदस्य डूब चुके थे । मास्टरजी ने फिर से हिसाब लगाया और सोचने लगे औसत ज्यों का त्यों तो कुनबा डूबा क्यों ।  

                             सबसे बड़ा झूठ ( लोक कथा ) 

स्कूल के बच्चे मैदान में खेल रहे थे अध्यापक उधर से गुज़र रहे थे , पूछा बताओ बच्चो क्या खेल खेल रहे हो । बच्चों ने बताया मास्टरजी हमने ये कुत्ते का पिल्ला इक शर्त पर रखा है , हम सब झूठ बोलने की प्रतियोगिता कर रहें हैं । हम में से जो भी सबसे बड़ा झूठ बोलेगा ये कुत्ते का पिल्ला उसी का हो जाएगा । सुनते ही मास्टरजी बोले जब मैं तुम्हारी उम्र का था तो मुझे मालूम ही नहीं था झूठ क्या होता है और कैसे बोलते हैं । अध्यापक की बात सुनते ही सभी बच्चे बोल उठे , मास्टरजी आप विजयी हुए । ये कुत्ते का पिल्ला आपका है ले जाईये ।  आजकल सब कहते हैं हमने कभी झूठ नहीं बोला झूठ क्या है कैसा होता नहीं नहीं जानते अब क्या करें हर किसी को कुत्ते का पिल्ला कौन दे बस आगे कुछ मत पूछना भौंकने वाले भौंकते हैं काटते नहीं क्योंकि हड्डी मिल जाती है दुम हिलाते रहते हैं टीवी बंद करो समाचार नहीं इश्तिहार हैं सभी जानकर अनजान हैं।


 

1 टिप्पणी:

Sanjaytanha ने कहा…

बढ़िया👌👍

पुरानी तो पड़ी कूड़े में होंगी
नई कुछ डिग्रियाँ बनवा रहा हूँ।😊