जुलाई 24, 2022

माली की नज़र में प्यार नहीं ( फूल चमन में कैसा खिला ) डॉ लोक सेतिया

माली की नज़र में प्यार नहीं ( फूल चमन में कैसा खिला ) डॉ लोक सेतिया 

कल किसी की पोस्ट पढ़कर न जाने कितनी बातें अंतर्मन में उभरती रहीं । कुछ अजीब बात या किसी की सिमित दायरे की समझ की बात है । लिखा था जो माता पिता अपनी संतान के परीक्षा में बढ़िया प्रदर्शन पर गौरव और ख़ुशी जताते हुए पोस्ट लिखते हैं उनको पढ़कर कम अंक पाने वाले बच्चे हीनभावना का शिकार हो जाते हैं । ये समझने का सही ढंग नहीं है लेकिन उनकी बात को अनदेखा नहीं कर सही पक्ष सामने रखना ज़रूरी है । विस्तार से इसकी चर्चा करते हैं । माता पिता भाई बहन दादा दादी एवं दोस्त रिश्तेदार पीठ थपथपाते हैं तो बढ़ावा देते हैं और महनत करने सफलता अर्जित करने को । समस्या उनको लेकर है जिनकी आदत होती है अपनी संतान की तुलना अन्य किसी से कर उस में हीनभावना पैदा करने की । उनको अपने बच्चे को समझना चाहिए और उसकी प्रतिभा को जानकार उनको जिस कार्य में रूचि है उसी क्षेत्र में शिक्षा अथवा कार्य करने को प्रोत्साहन देना चाहिए । जब अपने ही परिवार के सदस्य किसी से तिरस्कारपूर्ण व्यवहार करते हैं तब ठीक वैसा होता है जैसे कोई छोटा सा पौधा किसी बंजर ज़मीन पर उग आया हो जहां बाड़ बनकर खेत की रखवाली वाला बागबां उस को मसलता कुचलता है । कोई नहीं जानता ऐसा अनचाहा पौधा कैसे खुद को बचाए रखता है हर दिन कोई पैरों तले कुचलता है कोई जानवर खा जाता है लेकिन वो फिर फिर उगता रहता है । अनचाहा बनकर जीना कितनी बार मरना होता है । 
 
जीवन में सब किसी की मर्ज़ी से नहीं होता है और खुश होकर जीने का आनंद लेना चाहते हैं तो जो मिलना संभव नहीं उसकी चिंता छोड़ कर जो हासिल है उसकी कीमत और अहमियत समझनी चाहिए । अजीब बात है जिस से मनचहा सभी कुछ पाना चाहते हैं उसी को गरियाते लताड़ते रहते हैं । नफ़रत तिरिस्कार ज़हर की तरह होते हैं जीवन को फलने फूलने नहीं देते हैं । प्यार भरे शब्द अपनेपन का व्यवहार नई ऊर्जा नए साहस का संचार करते हैं । आप धन वैभव ताकत भौतिक सुविधाओं से आपसी रिश्तों में मिठास और भरोसा नहीं जगा सकते हैं साधन मिलने से वास्तविक संतोष और खुशी नहीं मिलती है । कस्तूरी मृग की तरह भीतर के एहसास को समझे बगैर हम मृगतृष्णा के पीछे भागते भागते बिना जिए मर जाते हैं । शायद हमारी अनावश्यक कामनाओं अधिक और सब कुछ आसानी से पाने की आरज़ू ने भीतर के अमृतकलश के प्यार को सुखा दिया है । सब चाहते हैं उनको प्यार अपनापन मिले मगर खुद बांटते नहीं प्यार दुनिया में , हर किसी से टकराव अहंकार नीचा दिखाने की भावना ने आपसी सद्भाव और पारस्परिक मेल मिलाप को बर्बाद कर दिया है । संबंध औपचरिकता निभाने को सोशल मीडिया फेसबुक व्हाट्सएप्प पर बधाई शुभकानाएं अभिवादन तक रह गए हैं । दोस्ती रिश्ते नाते जब कारोबारी नज़र से दिखाई देते , बनते-बिगड़ते हैं तब उनका हासिल कुछ भी नहीं रहता है । ढाई आखर प्यार वाले पढ़ना पढ़ाना छोड़ दिया है । चमकती हर चीज़ सोना नहीं होती है । अनमोल हीरे की परख नहीं पत्थर को जाने क्या समझने लगे हैं समंदर किनारे सीपियां मिलती हैं मोती गहराई में जाकर तलाश करने पड़ते हैं । नाम शोहरत पाने और अपने को सबसे बड़ा या ऊंचा साबित करने की कोशिश ने छोटा बना दिया है नैतिक गिरने को ऊपर उठना नहीं कहते हैं । अपने किरदार को सच के दर्पण  में देखना कठिन है दुनिया पर उंगली उठाना सब जानते हैं ।
 
 

कोई टिप्पणी नहीं: