देशभक्ति तमाशा बन गई ( तरकश ) डा लोक सेतिया
कुछ लोग गहन विचार-विमर्श कर रहे हैं। देशभक्ति की बात हो रही है। कोई सवाल उछालता है , ये क्या चीज़ है , सुना है बड़े काम आती है आजकल। एक नवयुवक बताता है मनोजकुमार की फिल्म का गीत गाना देशभक्ति का काम है , मेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरे मोती। जो जितना ऊंचे स्वर में गाता है वो उतना ही महान देश भक्त समझा जाता है। वैसे और भी गीत हैं , कुछ सरकारी विज्ञापन भी हैं , मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने हमारा एवं कम-आन इंडिया , दिखा दो। ये भी देशप्रेम को प्रदर्शित करने का ही काम करते हैं। क्रिकेट का खेल देखते हुए तिरंगा लहराना और अपने चेहरे या वस्त्रों को तिरंगे के रंगों में रंगना भी देशप्रेम का प्रमाण है। छबीस जनवरी या पंद्रह अगस्त को दूरदर्शन का सीधा प्रसारण देखते हुए गप शप करना हो , चाहे छुट्टी का मज़ा लेते हुए पिकनिक मनाना ये भी देशभक्ति का ही अंग हैं। देशभक्ति ही वो सलोगन है जो प्रतियोगिता में जीत दिलवा सकता है। ये वो फार्मूला है जो हमेशा हिट रहता है , सौंदर्य प्रतियोगिता में भाग लेने वाली सुंदरियां तक अपने जवाबों में इसकी मिलावट करके अच्छे अंक बटोर सकती हैं। इसलिये वे देश से अनपढ़ता और गरीबी को मिटाने के उदेश्य की बात करती हैं। मगर जब प्रतियोगिता में जीत जाती हैं तब इन सब को भूल कर बड़ी बड़ी कंपनियों के विज्ञापन करने और चमक दमक वाले कार्यक्रम करती हैं देशभक्ति समझ कर। देशभक्ति वो विषय है जिसपर कुछ खास दिनों में लिखता है लेखक , छापते हैं अखबार वाले और पत्रिका वाले। अध्यापक को भी ये विषय पढ़ाना होता है छात्रों को ताकि परीक्षा में अच्छे अंक मिल सकें। इस सबक को समझना ज़रूरी है न ही समझाना ही। रटने का सबक है , तोते की तरह हम सब रटते रहते हैं। कुछ अन्य लोगों के लिये ये एक रंगारंग कार्यक्रम की जैसी है वे देशभक्ति के नाम पर कितने ही आयोजन आयोजित किया करते हैं। कभी किसी दौड़ का नाम , कभी मानव श्रृंखला बनाकर प्रदर्शित की जाती है देशभक्ति। पहले कभी देशभक्ति के मुशायरे और कवि सम्मलेन भी आयोजित किये जाते थे मगर आजकल उनका चलन बाकी नहीं रह गया। अब देशभक्ति पर पॉप संगीत के कार्यक्रम सफल होते हैं। आई लव माई इंडिया गाते हुए नाचना इस युग की वास्तविक देशभक्ति समझी जाती है। इस नज़र से देखो तो युवा पीढ़ी देशभक्ति से भरी पड़ी है।
इन दिनों कई तरह की देशभक्ति दिखाई देती है। आधे घंटे का सीरियल जिसमें दो कमर्शियल ब्रेक हों , और तीन घंटे की फिल्म भी जिसको कई कंपनियां मिल कर प्रयोजित करें। टीवी के हर चैनेल में देशभक्ति का तड़का ज़रूरी है , उदेश्य भले पैसा बनाना ही हो , बात देश प्रेम की ही करनी होती है। सब चैनेल अपने को बाकी से बड़ा देशभक्त साबित करने का प्रयास करते हैं। इन टीवी सीरियल और फिल्मों के नाम और विज्ञापन लुभावने तो होते हैं मगर देखने पर इनका प्रभाव दूसरा ही नज़र आता है। दर्शक सोचते हैं कि देशभक्ति कोई समझदारी का काम नहीं है। बस एक बेवकूफी है , पागलपन है। क्या मिला देशभक्तों को जान गवांने से , क्या काम आई उनकी कुर्बानी। न देश को कुछ मिला न जनता को। बस मुट्ठी भर लोगों ने सब की आज़ादी को , लोकतंत्र को ढाल बना अपनी कैद में कर लिया। आजकल ज़रा दूसरी तरह की देशभक्ति होती है , आंदोलन होते हैं , दंगा फसाद करवाते हैं , तोड़ फोड़ की जाती है। जनता को मूर्ख बना सत्ता हासिल करने को समझौते किये जाते हैं। चुनाव जीत सरकार बनाते ही सब भूल कर वही दुहराते हैं जिसका विरोध किया था। शासक बन ऐश करते हैं , झंडा फहराते हैं ,सलामी लेते हैं , देशभक्त कहलाते हैं। अफ्सर लोगों के लिये देशभक्ति ऐसा ब्यान है जिसे कभी भी किसी भी अवसर पर दिया जा सकता है। जनता के धन से खुद हर सुख सुविधा का उपयोग करते हुए गरीबों की हालत से दुखी होने की बातें करना और गरीबी मिटाने को कागज़ी योजनायें बना उनको कभी सफल नहीं होने देना , देश के विकास के झूठे आंकड़े बनाना देशभक्ति है। सत्ताधारी नेता की चाटुकारिता , मंत्री के आदेश पर हर अनुचित कार्य करना , पद का दुरूपयोग करना भी देशभक्ति है।
नेताओं के लिये देशभक्ति ऐसा नशा है जिसको अपने भाषणों द्वारा जनता को पिला मदहोश कर उससे मनचाहा वरदान पा सकते हैं। देश को लूट कर खाने वाले नेता डंके की चोट पर देश के लिये अपना सर्वस्व न्यौछावर करने का दावा करते हैं। चुनाव करीब आते ही नेताओं पर देशभक्ति का ज्वर चढ़ जाता है। हर नेता नई रौशनी लाना चाहता है , सत्ता मिलते ही फिर अंधेरों का सौदागर बन जाता है। एक बार कुर्सी मिल जाये तो हर नेता उसे अपनी बपौती समझने लगता है। देशभक्ति इनके लिये कारोबार है , कभी गल्ती से देशभक्ति के नाम पर कोई जेलयात्रा कर आया हो तो वो ही नहीं उसका परिवार भी मुआवज़ा पाने का हकदार बन जाता है। कुछ लोगों की देशभक्ति जनता पर चढ़ा हुआ ऐसा कर्ज़ है जिसका भुगतान करते करते उसकी कमर टूट चुकी है , तब भी वो चुकता नहीं हो रहा , कुछ लोगों के वारिसों को उसका ब्याज ही मिला है , असल बाकी है।
आज़ादी मिले 75 साल होने को हैं आज़ादी की आयु की चर्चा होने लगी है , वर्षगांठ मनाते मनाते पचीसवीं पचासवीं से पिहचतरवीं तक संख्या पहुंच गई है । गुलामी सैंकड़ों साल की रही है आज़ादी को सौ वर्ष होने को अभी 25 साल और कौन इंतज़ार करता । कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक , वास्तव में आज़ादी के अर्थ तक बदले गए हैं । आज़ादी खो गई है या कहीं गुम है , अभी पिछले दिनों इक पुरानी फिल्म " मैं आज़ाद हूं " दोबारा देखी टीवी पर । अमिताभ बच्चन जी का किरदार लाजवाब है इक अखबारी कॉलम लिखने वाले का काल्पनिक किरदार जनता से सरकार तक शोहरत हासिल कर लेता है । ऐसे में इक बेबस भूखे गरीब को लालच देकर नकली आज़ाद बन कर सबको दिखलाना पड़ता है । टीवी पर अमिताभ बच्चन जी कौन बनेगा करोड़पति शो का संसाचल करते हैं कितने सालों से , विज्ञापन टीवी पर दिखलाया जा रहा है आज़ादी की पिहचतरवीं वर्षगांठ मनाने को लेकर । फिल्म में आज़ाद ख़ुदकुशी कर मर जाता है , उसको मारने की कोशिशें करने वाले उसको ख़ुदकुशी नहीं करने देना चाहते बल्कि क़त्ल करने की कोशिश करते करते बचाने की ज़रूरत महसूस करते हैं । अमिताभ बच्चन को अपनी असफल रही कमाल की फिल्म की याद कभी न कभी आती होगी , 7 अगस्त को शो की शुरुआत करते हुए किरदार की कड़वी याद आए तो उनका तमाशा सिर्फ तमाशा बन जाएगा । ये देश आजकल तमाशाओं के भरोसे चल रहा है । देशभक्ति का खेल तमाशा इस दौर का सबसे अधिक बढ़िया कारोबार बन गया है । कौन खिलाड़ी है कौन तमाशा दिखलाता है और तमाशाई कौन है सवाल सबसे बड़ी उलझन है। कीमत बढ़ कर सात करोड़ पचास लाख हो गई है करोड़पति बनाते बनाते लोग कंगाली में आटा गीला होने की चिंता करते हैं।
1 टिप्पणी:
बहुत शानदार लेख सर👌👍
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