जुलाई 14, 2022

अल्फ़ाज़ किस को पेश करें ( मुश्किल बड़ी है ) डॉ लोक सेतिया

   अल्फ़ाज़ किस को पेश करें ( मुश्किल बड़ी है ) डॉ लोक सेतिया 

अल्फ़ाज़ एहसास से भरे होते हैं खोखले शब्द निरर्थक होते हैं जिनका कोई मसलब नहीं होता है । मेरी किताबें मुझे जान से अधिक प्यारी हैं ज़िंदगी भर की महनत का नतीजा है । कभी कभी महसूस हुआ है कोई ख़फ़ा ख़फ़ा सा है बात कोई नहीं उसको लगता है मैंने अपनी किताब उसको भेंट नहीं की । उसे पढ़ने में कोई रूचि नहीं है मैं जानता हूं उसको ये फज़ूल की बात लगती है उसको फुर्सत ही नहीं जाने कितने काम हैं उसके लिए ज़रूरी पैसे का कारोबार सबसे महत्वपूर्ण है । धार्मिक सामजिक संस्थाओं से जुड़ना नाम शोहरत सबसे जान पहचान बढ़ाना उसको विचारधारा की नहीं शान ओ शौकत की बात लगती है । जाने कितनी किताबें उसने अलमारी जैसे शोकेस में सजा रखी हैं दिखाने को कभी खोल कर पढ़ी नहीं लेकिन सब जानता है का भाव हमेशा रहता है । जिनको लेकर मुझे लगता है साहित्य से अनुराग है किताबों से लगाव है उनको किताब भेंट की है मगर जब किसी के बारे पता है उनको किताब पढ़ना समय की बर्बादी लगता है उनको किताब देना किताब का निरादर करना लगता है ।
 
सालों पहले किसी के पास इक लेखक की पुस्तक देखी थी और पूछा कैसी लगी आपको , सुनकर हैरान हुआ था उनका दोस्त है उपहार में नहीं बाकायदा कीमत लेकर दे गया है । सौ रूपये निकालो मांग कर किताब थमा गया है उन्होंने उनकी किताब मुझे दे दी थी ऐसा कह कर कि उनके लिए ये किसी काम की नहीं रद्दी की टोकरी में फैंकनी होगी किसी दिन । लोग मुझे जानते हैं खरी खरी बात पसंद हैं इसलिए बतला देते हैं । इक बार उनकी रद्दी की टोकरी से शहर के सबसे बड़े अधिकारी की काव्य रचनाएं उठा लाया था उनके बताने पर कि उन का कर्मचारी प्रेस-नोट के साथ दे गया है । इक शिक्षक जो निजि विद्यालय चलाते हैं राजनेता भी समझे जाते हैं मिलने आये अपने दल की चुनावी पत्रिका भेंट करने मुझे सच पता चला खुद उन्होंने पढ़ा नहीं था उस में क्या लिखा है । मैंने पढ़ कर ब्लॉग पर लिखा था खूबसूरत कवर और बढ़िया कागज़ अच्छी छपाई है मगर झूठ का पुलिंदा है तथ्य और वास्तविकता से कोई नाता नहीं क्या चुनावी घोषणापत्र ऐसे होते हैं जिसको पढ़ना किसी काम का नहीं कभी निभाए नहीं जाते जो उन वादों की बात होती है । खैर उन्होंने बताया उनको सिर्फ वही किताबें पढ़ना पसंद है जो आर्थिक फायदे की होती हैं , उनको स्कूल की पढ़ाई की किताबें भी पढ़ने की फुर्सत नहीं मिलती है बच्चों को शिक्षा देने को अध्यापक नियुक्त कर रखे हैं वेतन पर। 
 
ख़ास नाम वाले लोग नेता लोग अधिकारी और उच्च पद पर आसीन लोग सभाओं में मुख्य अतिथि बनकर भाषण देते हैं साहित्य को लेकर समझ नहीं रखते कभी । जाने माने लेखकों की शानदार बातें रटी हुई दोहराते हैं बिना सोचे भी कि उनका विषय से कोई संबंध है भी या नहीं । लेकिन इस बात को जान कर भी कई लिखने वाले उनको अपनी किताब भेंट करते हुए फोटो लेकर सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हैं । कई बार कोई लेखक किसी बड़े साहित्यकार होने का रुतबा पाये व्यक्ति को किताब भेंट कर देता है जिस की रचनाएं कितनी गहराई लिए हों वो खोलते तक नहीं सोचते हैं नवोदित रचनाकार की लिखी कहां उच्च स्तर की होंगी । वास्तव में खुद को बुलंदी पर पाने वाले अन्य को छोटा देखते हैं जैसे पहाड़ पर खड़ा आदमी नीचे के लोगों को कीड़े मकोड़े जैसा देखता है जबकि नीचे से खुद और बौना लगता है पहाड़ पर खड़ा हुआ । शोहरत की बुलंदी हमेशा कायम नहीं रहती है । 
 
आधुनिक लोग पढ़ाई लिखाई समझने ज्ञान पाने को नहीं नौकरी पैसा आमदनी और जीवन में भौतिक सुख सुविधाओं को हासिल करने को करते हैं ।  उच्च आदर्श और नैतिकता सच्चाई अच्छाई जैसे मापदंड रहे नहीं हैं और धन दौलत से आदर सम्मान को आंका जाता है । वास्तव में अच्छे साहित्य की ज़रूरत आज पहले से अधिक है भटके हुए समाज को राह दिखलाने को अंधकार मिटाने रौशनी लाने को । समस्या गंभीर है हमारे गांव में कहावत है आप बैल को तालाब पर ले जा सकते हैं मगर प्यास नहीं है तो पानी नहीं पिला सकते हैं , छी-छी कहते रहने से बैल पानी नहीं पीता है । पाठक में पढ़ने की प्यास नहीं तो किताब पास होने से कोई फायदा नहीं है । विडंबना है लोग जिन महान पुस्तकों ग्रंथों की उपदेशों की बातें करते हैं उनकी पूजा अर्चना करते हैं अध्यन नहीं करते , उपहार में बांटते हैं ऐसी किताबों को । संविधान की रट लगाने वाले संविधान को पढ़ते समझते नहीं अनुपालन क्या करेंगे । शिक्षित समाज सभ्य तभी हो सकता है जब उसको शब्दों का अर्थ भी मालूम हो । अपने अल्फ़ाज़ व्यर्थ बर्बाद नहीं करें सोच समझ कर पेश करें। गागर में सागर भरने की तरह संक्षेप में इतना कहा है ।

1 टिप्पणी:

Sanjaytanha ने कहा…

किताबों को लेकर लोगों में नीरसता पर वार करता बढ़िया आलेख 👌👍