दिसंबर 20, 2018

ठहरा हुआ समाज , भटके हुए मार्गदर्शक ( विडंबना ) डॉ लोक सेतिया

ठहरा हुआ समाज , भटके हुए मार्गदर्शक ( विडंबना ) डॉ लोक सेतिया 

     दुनिया बदल चुकी है मगर हम अभी भी उसी जगह खड़े हैं सदियों से। आज भी सुबह टीवी अख़बार पर कोई बारह राशियों का राशिफल बताता है अर्थात एक नाम की राशि वाले सभी का समय एक जैसा रहेगा। कोई थोड़ा चालाकी करता है और बताता है भाग्य के साथ अगर आप खुद भी संभल जाओ तो बुरे से बच सकते हैं और अच्छे को और बेहतर बना सकते हैं। भगवान से आज भी हम प्यार और भरोसा नहीं करते बल्कि उस से डरते हैं घबराते हैं। आज भी टीवी वाले नागिन के महिला बनने की कहानी परोसते हैं विष कन्या की कहानी बनाते हैं और हमें दिशा दिखाने की जगह भटकाने का काम करते हैं। धर्म आज भी समझने और अच्छाई बुराई परखने की बात नहीं कहता और केवल धर्म के ठेकेदारों का कारोबार बढ़ाने की बात करता है। गिनती नहीं है कितने मंदिर मस्जिद गुरूद्वारे हैं जिनको लेकर कहते हैं वहां जाकर मांगने से सब मिलता है मगर हर दिन लाखों लोग ऐसी जगहों पर जाते हैं सब मिला कर करोड़ों लोग कितना वक़्त और पैसा इस पर खर्च करते हैं फिर भी शायद ही उनकी कामना पूरी होती है और दूसरी तरफ धनवान लोग पूजा अर्चना भी आडंबर रचाने की तरह किया करते हैं और किसी अंधविश्वास की परवाह नहीं करते फिर भी उनके सब काम होते रहते हैं। विवाह तक कुंडली मिलाने के बावजूद असल में सफल नहीं होते और या संबंध विछेद की बात होने लगती है या किसी तरह से समझौता कर नर्क की तरह ज़िंदगी बिताने को तैयार हो जाते हैं। जिस जल के छिड़कने से इंसान की हर वस्तु शुद्ध हो जाती है उस से किसी महिला की पावनता कायम नहीं हो पाती भले उसका कोई दोष नहीं हो और उसके साथ किसी वहशी ने कदाचार किया हो। पुरुष की पावनता का कोई सवाल नहीं उठता है कुदरत ने पुरुष और नारी को जैसा बनाया है उस को समझे बिना और वास्तविक पावनता मन की आचरण की विचारों की होती है इसे समझे बिना कुल्टा शब्द उपयोग किया जाता है। जिन धार्मिक किताबों को लोग पूजते हैं उन्हीं से सबक लेते तो पता चलता वास्तविकता कुछ और है। मगर हम इसकी चर्चा से घबराते हैं और सवाल करने से बवाल खड़ा हो जाता है। तर्क वितर्क की बात करना छोड़ दिया है। वास्तव में हमारा धर्म आवरण की तरह है जो लिबास पहना हुआ है उसे धर्म समझते हैं लिबास के भीतर जो है वास्तव में उस इंसान उसकी अंतरात्मा की कोई बात नहीं करता है। कर्मकांड को धर्म मान लिया है ताकि वास्तविक धर्म की कठिन राह पर चलने से बच सकें। कोई विचार नहीं करता कि जब हर तरफ सभी धर्म की मानने की बात करते हैं तो पाप अपराध और अधिक बढ़ते कैसे जा रहे हैं। उस धर्म का क्या फायदा जो सच की भलाई की सच्चाई की राह से दूर करता जा रहा है जिसका मतलब है समझने और समझाने में कोई खोट है। कोई है जो आपको आपकी साहूलियत का धर्म देने का व्यौपार कर रहा है और बदले में अपने हित साधने का कार्य कर रहा है। 
 
                         कौन लोग हैं जो हम सभी को आधुनिक समाज नहीं बनने देना चाहते हैं क्योंकि जिस दिन हम निडर होकर सच का साथ देने और झूठ का विरोध करने लगे उनका शासन बचेगा नहीं। ठीक समझे हैं आप इस में राजनीति कारोबार और धर्म गुरुओं से लेकर मीडिया टीवी चैनल अख़बार ही नहीं तमाम लिखने वाले भी किसी न किसी सीमा तक शामिल हैं कोई आपको सोचने की आज़ादी नहीं देना चाहता है। उन का स्वार्थ आपको अधिकतर लोगों को कूप मंडूक बनाये रखना ही है। शिक्षा आपको विवेकशील नहीं बनाती है तो उस शिक्षा से हासिल क्या हुआ इंसान को बेजान सामान बनाने वाली शिक्षा अपने कर्तव्य से भाग रही है। वर्ना इतना पढ़ लिख कर उच्च पद पाने के बाद भी कोई अंधविश्वास के चंगुल में कैद कैसे रह सकता है। कोई चिंतक कोई समाज सुधारक सामने नहीं दिखाई देता है कोई ज्ञान की रौशनी दिखलाने वाला नहीं है और जो अंधेरों का कारोबार करते हैं दावा करते हैं उजाला लाने का। किस जगह ठहरा हुआ है समाज जिस जगह सैंकड़ों साल पहले था और कब तलक आगे नहीं बढ़ेगा उस सब को छोड़कर ।

 

 


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