दिसंबर 21, 2018

हम भारत के लोग पदमुक्त करते हैं आपको ( कटाक्ष ) डॉ लोक सेतिया

हम भारत के लोग पदमुक्त करते हैं आपको ( कटाक्ष )डॉ लोक सेतिया 

     आपको याद नहीं रहा कि अपने जनता से वादे किये थे जो निभाने चाहे ही नहीं। आपका इरादा देश को सुंदर बनाने का था ही नहीं। आपको सब की चिंता नहीं थी केवल अपने निष्ठावान लोगों को देश में तमाम पदों पर स्थापित करना था ताकि उनको अपने मतलब को उपयोग ही नहीं दुरूपयोग भी कर सको। आपने सत्ता मिलते ही केवल मनमानी करनी की ठानी थी और ऐसा करते हुए आपको लाज भी नहीं आई कभी भी। अपने देश को अच्छे भविष्य की उम्मीद दिखाने की जगह अतीत की मनघडंत बातों में उलझा कर पहले के तमाम नेताओं को बुरा बताकर समझा कि ऐसा करने से आपकी छवि अच्छी बन जाएगी जबकि वास्तव में कुछ भी अच्छा किया किसी को सामने नज़र आया तक नहीं। ऐसा तो कोई नहीं चाहता था जब आपको अवसर मिला तो जो कहते रहे नहीं हुआ या किया जाना चाहिए था उस को वास्तव में कर के दिखलाना चाहिए था। लेकिन अपने सब जो करना नहीं चाहिए था किया और जो करने को वादे किये थे उनको भूल गये हैं। 
 
      मगर आपको याद रखना था कि अपने पद लेने से पहले इक शपथ खाई थी देश के संविधान की जिस में आपने कहा था सबके साथ निष्पक्षता और समानता का व्यवहार और सभी के अधिकारों की रक्षा करने का कर्तव्य निभाना है। हम भारत के लोग खुद को संविधान देते हैं तो हम अधिकार रखते हैं जो देश के संविधान की उपेक्षा करता हो उसको पदमुक्त करने का भी। पांच साल को चुनाव करने का अर्थ पांच साल संविधान का आदर कर जनता की सेवा करने को नियुक्त किया जाना होता है न कि सदन में बहुमत होने से निरंकुश हो कर जैसे मर्ज़ी करते रहना। आपको लगता है संविधान में सत्ता से हटाने को ऐसा कोई नियम है ही नहीं मगर वास्तव में जिस दिन कोई देश की जनता और लोकलाज को दरकिनार करने लगता है उसका पद पर रहना उचित नहीं रह जाता है। आप जानते हैं आज देश की जनता क्या सोचती है और देश कोई राजनैतिक दल या निर्वाचित संसद विधायक नहीं होते हैं देश करोड़ों लोग हैं जो नासमझ नहीं हैं न ही बेबस और कमज़ोर हैं। इस देश की जनता ने निरंकुशता और सत्ता के मद में चूर राजनेताओं को कितनी बार उनकी जगह दिखाई है। हम शांति पूर्वक विरोध करने वाले और बेहद सहनशील लोग हैं मगर हमारे धैर्य की भी सीमा है। 
 
       समय आ गया है जब सत्ताधारी और विपक्षी दलों सहित सभी राजनीति करने वाले नेताओं को बता दिया जाये कि देशसेवा के नाम पर सत्ता की लूट का कार्य जितना हुआ बहुत हुआ और अब किसी को भी वही सब दोहराते जाने की इजाज़त नहीं दी जा सकती है। हम भारत के लोग जाग चुके हैं और अपने अधिकार मांगने को हाथ फ़ैलाने नहीं छीनने का साहस कर सकते हैं। राजनीति कोई कारोबार नहीं है और किसी को भी देश की जनता को बदहाल होते हुए विशेषाधिकार के नाम पर खुद शाही रहन सहन पर देश का धन खर्च करने की अनुमति नहीं हो सकती है। जिनको देश की जनता की सेवा करनी है उनको सादगी से आम नागरिक की तरह सिमित साधनों से गुज़र बसर करना होगा और जितना धन का अंबार जमा किया हुआ है सभी राजनैतिक दलों और राजनेताओं ने चंदा जमा कर उसको जनता की बुनियादी सुविधाओं पर खर्च करना होगा। हर दिन सभाओं में भाषण और आयोजन आदि पर धन की बर्बादी इक गुनाह है देश की गरीब जनता के खिलाफ। केवल उन्हीं को राजनीति में आना चाहिए जो अपना सब कुछ देश और जनता को देने को तैयार हों। 

               हम मेहनतकश इस दुनिया से जब अपना हिस्सा मांगेंगे ,

                 इक खेत नहीं इक बाग़ नहीं हम सारी दुनिया मांगेगे। 


 

 

 


 



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