दिसंबर 22, 2018

2019 चुनाव का सवाल है बाबा ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

    2019 चुनाव का सवाल है बाबा ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया 

         पापी पेट का सवाल नहीं है राजनीति के खेल का मामला है और चुनावी जीत में सब कुछ आज़माना पड़ता है। राम जी से बात बनेगी भरोसा नहीं पटेल जी की मूर्ति भी चमत्कार करेगी लगता नहीं। बजरंगबली की याद आई शायद वही किसी की खोई हुई पत्नी की तलाश में समुंदर पार जा सकते हैं। नेताओं का एक ही गठबंधन सत्ता की सुंदरी से हुआ होता है जिसके लिए घर परिवार क्या शराफत तक को छोड़ देते हैं। पल पल फिर भी लगता है जाने कब सत्ता की सुंदरी रूठ जाये। बजरंगबली को भी पटेल की तरह अपना बताना है और सरकार पता लगा चुकी है उनसे अधिक मंदिर किसी और देवी देवता के नहीं हैं। सड़क पर हर दस किलोमीटर पर गांव गांव गली गली हनुमान जी विराजमान हैं और हर कोई उन्हीं से सुरक्षा करने की विनती करता है। दुश्मन की नली तोड़ने से लेकर भूत आदिक से बचने को उनसे अधिक कारगर कोई नहीं है। नेताजी पर भी नेहरू जी के भूत का डर सर पर सवार रहा है जबकि नेहरू ने उनका कुछ भी बिगाड़ा नहीं है। उनकी समस्या उन जैसा कहलाने की है मगर ये नहीं सोचा फिर उनकी जगह कोई दूसरा उनकी अनावश्यक बुराई करेगा और उनको भी छोटा बना देगा। बड़ी रेखा बनाने को सब ने यही सबक सीखा है जिसकी बड़ी रेखा नज़र आती है उसको मिटा देना। मिटाना सब जानते हैं बनाना कोई कोई जानता है।   
 
            इरादा क्या है नहीं मालूम सभी देवता कतार में खड़े हैं ऊपर तक हलचल मची है। अगली बारी किस की है कोई नहीं जनता भगवान भी नहीं समझ पा रहे देवी देवता भी जातिवाद या धर्म की राजनीति के शिकार हो सकते हैं। अभी मुमकिन है डी एन ए तक की नौबत नहीं आ जाये। देश को गरीबी भूख शिक्षा स्वास्थ्य को छोड़ इस बहस में उलझा कर चाहते क्या हैं। हर देवी देवता भगवान से पूछ रहा है उसकी जाति क्या है धर्म क्या है। उलझन में पड़ गये हैं भगवान खुदा सभी धर्म वाले ईश्वर , उन्होंने ऐसा कुछ बनाया ही नहीं था इंसान बनाये थे फिर ये हिंदु मुस्लमान सिख ईसाई कैसे बन गये। अब भगवान को समझ आया इतने युग तक इन सब पर ध्यान क्यों नहीं दिया। देवी लक्ष्मी जी को किस धर्म जाति की चिंता करनी चाहिए , वीणावादिनी का कोई धर्म कैसे हो सकता है। करोड़ों देवी देवता हैं और जाति धर्म सौ दो सौ बांटने लगे तो बहुत कठिनाई होगी। जो जिस की पूजा अर्चना करे सब देवी देवता उसी को अपना समझते हैं चढ़ावा देख कर खुश होते हैं। उधर कोई मृत्युलोक से लाया गया है उस से सवाल किया आपको स्वर्ग जाना है या नर्क जाना चाहते हैं। उसने कहा जनाब मैं तो कारोबारी व्यौपारी बंदा हूं आप मुझे स्वर्ग नर्क दोनों के बीच में जगह दे देना ताकि दोनों तरफ के खरीदार मेरी दुकान से सामान खरीद सकें।

               भगवान खुश हुए इंसान इतना समझदार हो गया है जिधर कमाई उधर रहना चाहता है स्वर्ग नर्क की बात से ऊपर उठकर। राजनेता कब लोभ लालच से परे देश जनता की भलाई की बात समझेंगे। उस इंसान को समझ आ गया भगवान की चिंता की बात , बोला आप कहें तो ये मैं बता सकता हूं। बताओ फिर भगवान ने कहा आप सही जवाब दे सकते हैं तो आपका मॉल मुख्य मार्ग पर खुलवा देंगे। हंस दिया इंसान बोला भगवान आप भी लालच देने लगे कहीं आपको भी चुनाव लड़ना है। आप इन बातों को मत सोचो और अपने हिसाब से अच्छाई बुराई का निर्णय करते रहो। वास्तव में ये जो राजनेता लोग हैं इनके पास कोई सामान ही नहीं होता है किसी को कुछ भी देने को। ये केवल तस्वीर दिखाकर कीमत ले लेते हैं और बाद में सामान देने से मुकर जाते हैं। भगवान को समझ आई बात और नारदमुनि जी को बुलाया है जिन्होंने ये खबर देकर खलबली मचा दी थी। नारदमुनि जी आये तो भगवान ने कहा है जल्दी धरती पर जाकर घोषणा कर दो कि भगवान और सभी देवी देवताओं को किसी राजनीति किसी जाति किसी धर्म से कोई मतलब नहीं है और इन सबका उपयोग राजनितिक उद्देश्य से करना वंचित है। नारदमुनि जी की समस्या है घोषणा कैसे की जाये। अख़बार टीवी चैनल पर सोशल मीडिया द्वारा अथवा हर मंदिर मस्जिद गुरूद्वारे गिरिजाघर के द्वार पर लिखवा कर। बजट भी नहीं मालूम कैसे ये संभव होगा चुनावी खेल तो है नहीं कि चंदा लिया जा सके। भगवान की आज्ञा का पालन करना है कैसे उनसे पूछना आसान नहीं है। आखिर पुरानी जान पहचान के लेखक से मिलकर निदान निकला है क्योंकि यही है जो बिना कुछ भी लिए सबकी बात कहता है। आप भी इस बात को समझ कर औरों को समझा सकते हैं भगवानं आपका भला करे।  

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