फ़रवरी 06, 2017

POST : 597 आया नहीं दाग़ अब तक छुपाना ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

  आया नहीं दाग़ अब तक छुपाना ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

आया नहीं दाग अब तक छुपाना
मैली है चादर हमें घर भी जाना ।

हम ने किया जुर्म इक उम्र सारी
बस झूठ कहना नहीं सच बताना ।

सुन लो सभी यार मुझको है कहना
की जो  खताएं उन्हें भूल जाना ।

मुझ से बुरा और कोई नहीं है
मैं खुद बुरा हूं भला सब ज़माना ।

दस्तूर मेरा यही तो  रहा है
जीती लड़ाई को खुद हार जाना ।

तुमने निकाला हमें जब यहां से
फिर ठौर अपना न कोई ठिकाना ।

"तनहा" जहां छोड़ जाये कभी जब
सबको सुनाना उसी का फसाना ।