आया नहीं दाग़ अब तक छुपाना ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
आया नहीं दाग अब तक छुपानामैली है चादर हमें घर भी जाना ।
हम ने किया जुर्म इक उम्र सारी
बस झूठ कहना नहीं सच बताना ।
सुन लो सभी यार मुझको है कहना
की जो खताएं उन्हें भूल जाना ।
मुझ से बुरा और कोई नहीं है
मैं खुद बुरा हूं भला सब ज़माना ।
दस्तूर मेरा यही तो रहा है
जीती लड़ाई को खुद हार जाना ।
तुमने निकाला हमें जब यहां से
फिर ठौर अपना न कोई ठिकाना ।
"तनहा" जहां छोड़ जाये कभी जब
सबको सुनाना उसी का फसाना ।
2 टिप्पणियां:
Wahh👍
👍👌
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