फ़रवरी 04, 2017

POST : 595 नये कीर्तिमान की योजना ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया

        नये कीर्तिमान की योजना ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

                        
    सौ साल जीने का कीर्तिमान बनाना किसी काम का नहीं होता अगर आप वास्तव में कभी जीने का लुत्फ़ ही नहीं उठा सके। ज़िंदगी का मज़ा सही या गलत तरीके पर चल कर नहीं लिया जा सकता , जिनको मज़ा लूटना वो लोग हर ढंग अपनाते हैं। बात राजनेताओं और अधिकारियों की अथवा बड़े बड़े पत्रकारों अभिनय करने वालों या उद्योगपतियों धन्नासेठों की नहीं है। अपराधी से लेकर मनमानी करने वाले वास्तव में इसी मानसिकता वाले लोग होते हैं जो खुद मज़ा लेने को सब से बड़ा काम समझते हैं। ये तो इक भूमिका थी आपको समझाने की कि कीर्तिमान किस को कहते हैं। अब उस योजना की बात जो इक नया ही नहीं नवीनतम कीर्तिमान स्थापित करेगी। फरवरी महीने में 2 8 -2 9 दिन अभी तक होते रहे हैं , इस बार 3 0 दिन का महीना जल्द ही घोषित किया जा सकता है। कब कौन कैसे मत पूछना अभी इसको गुप्त रखना है नोट बंदी की तरह। मगर योजना का मकसद क्या है उसे बताया जा सकता है , यूं भी ये योजना उसी योजना का विस्तार है। बताने की ज़रूरत नहीं है कि नोटबंदी से न काला धन समाप्त हुआ है न गरीबी ही मिट सकी है। ये पैसे वाले अमीर लोग बेहद धूर्त और काइयां तरह के चालाक अवसरवादी होते हैं , इनको सब तरीके आते हैं अपना काम निकालने के। सरकार समझ चुकी है इन से कुछ हासिल नहीं हो सकता , उनको नाराज़ भी नहीं किया जा सकता ये मज़बूरी भी सब जानते हैं।

                   मगर सरकार को आगामी चुनाव से पहले देश से गरीबी नाम का अभिशाप जो विश्व में सब से बड़े लोकतंत्र के माथे का कलंक है उसको दूर करना ही है। तरीका ढूंढ लिया गया है। आपने स्वेच्छा से सबसिडी छोड़ने की बात सुनी होगी , कुछ कुछ उसी तरह की योजना है। गरीबी का प्रमुख कारण जनसंख्या भी है , इस योजना से एक तीर से दो निशाने लगने की बात सच साबित हो जायेगी। सरकारी अथवा गैरसरकारी सर्वेक्षण से पता चला है कि करोड़ों लोग ज़िंदगी से ऊब चुके हैं और मरना चाहते हैं। उनकी समस्या है कि उनको लगता है ख़ुदकुशी करना अपराध भी है और ऐसा करने वाले को लोग कायर भी कहते हैं। सरकार पुलिस पशासन खुद बेशक लोगों का जीना दुश्वार करते रहें , जो ख़ुदकुशी करता है उसके जुर्म का दोषी कौन ये तलाश करती रहती है ताकि ख़ुदकुशी को विवश करने का इल्ज़ाम लगाया जा सके। जबकि हम विश्वास करते हैं जो तकदीर में लिखा वही होता है , जनता की तकदीर में अच्छे दिन विधाता ने अगर नहीं लिखे तो कोई सरकार कोई प्रधानमंत्री कोई राजनेता क्या कर सकता है। तकदीर का लिखा कोई नहीं मिटा सकता है। आप किसी को दोष मत दो मेहरबानी करके।  चलिए अब मुद्दे की बात की जाये , योजना क्या है आगे बताता हूं  , मगर पहले आप शपथ खाओ इस को राज़ रखोगे जब तक खुद सरकार घोषित नहीं कर देती कि ये अफवाह सच है। सच पर यकीन करें अफवाहों पर ध्यान नहीं दें।

                                तीस फरवरी को जीवन मुक्ति योजना शुरू की जानी प्रस्तावित है जिस में सब से पहले जनता को मौत का अधिकार दिया जायेगा और जो भी ज़िंदा नहीं रह सकता या नहीं रहना चाहता उसको जान देने ख़ुदकुशी करने का हक कानूनन मिल जायेगा। धनवान लोग या सनकी लोग कोई बड़ा समारोह या पार्टी भी आयोजित कर शान से मौत को गले लगा सकेंगे। मगर सरकार केवल गरीबों की सहायता हर तरह से इस काम में करेगी क्योंकि ऐसा करने से गरीबों की संख्या के साथ देश की आबादी की जनसंख्या भी कम होगी। जो गरीब भी ख़ुदकुशी करने की अर्ज़ी देगा उसको उसकी मर्ज़ी  की मौत देने का प्रबंध निशुल्क किया जायेगा और किसलिए मरना चाहते जैसा सवाल पूछकर परेशान नहीं किया जायेगा। ख़ुदकुशी के बाद उसको इक शहीद समझा जायेगा और उसके परिजनों को खूब मुआवज़ा दिया जायेगा जिस से उनकी गरीबी खत्म हो सके। ऐसा करने से बहुत लोग ख़ुदकुशी करने को आकर्षित होंगे और सरकार इसको बढ़ावा देना चाहती है। जो लोग नोटबंदी में मारे गये उनको भी इस योजना में शामिल कर सभी लाभ देगी सरकार। अच्छे शहर और खुले में शौच की तरह ही कोशिश की जायेगी गांव - गांव तक ये सुविधा पहुंचाने की। जीवन मुक्ति योजना में सुसाइड सेंटर खोलने में जो भी शामिल होंगे उनको अनुदान मिला करेगा , हर पुरानी योजना की तरह मगर इस में झूठे नाम गलत आंकड़े नहीं चलेंगे। हर मौत का पंचनामा किया जायेगा और ख़ुदकुशी के सबूत रखने होंगे , जो इस योजना में अनुचित करेगा उसकी सज़ा खुद उसी सेंटर में सूली पर टांग कर दी जाया करेगी।

           सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि कुकरमुत्ते की तरह फ़ैल रहे हैं कोचिंग सेंटर। रिहायशी इलाकों  में खोलने  पर अदालती आदेशों की पालना विभाग नहीं करते जिस से महिलाओं बज़ुर्ग लोगों और निवासियों को परेशानी होती है। अभी भी सरकार हर दिन नये नाम से ऐसे लूट के सेंटर खुलवा  रही है। हर योजना ठेकेदार या बिचोलिये असफल करते रहे हैं , उनको शिक्षा स्वास्थ्य या रोज़गार  की जानकारी होती है या नहीं कोई नहीं देखता। मगर मुझे इस योजना का सलाहकार पूरी जांच के बाद बनाया गया है। ख़ुदकुशी को लेकर मेरा चिंतन और शोध मेरे पूरे लेखन में दिखाई देता है। कहानियों कविताओं और व्यंग्य में बहुत जगह ऐसा विवरण मिलता है। मेरी ग़ज़लों में अनगिनित शेर ही इस विषय पर नहीं अपितु इक ग़ज़ल तो लिखी ही इसी को लेकर गई है।

 बाकी शेर बाद में , पहले मेरी ये पूरी ग़ज़ल पढ़ें :-

ख़ुदकुशी आज कर गया कोई ,
ज़िंदगी तुझसे डर गया कोई।

तेज़ झौंकों में रेत से घर सा ,
ग़म का मारा बिखर गया कोई।

न मिला कोई दर तो मज़बूरन ,
मौत के द्वार पर गया कोई।

खूब उजाड़ा ज़माने भर ने मगर ,
फिर से खुद ही संवर गया कोई।

"ये ज़माना बड़ा ही ज़ालिम है" ,
उस पे इल्ज़ाम धर गया कोई।

और गहराई शाम-ए-तनहाई ,
मुझ को तन्हा यूं कर गया कोई।

है कोई अपनी कब्र खुद ही "लोक" ,
जीते जी कब से मर गया कोई।


    बहुत बार पहले ऐसा भी हुआ है , किसी  की मौत पर लोग जमा हुए मोमबत्तियां जलाईं , आंदोलन किया , नारे भी लगाये। सरकार ने तब बहुत बातें कही कोई फंड भी बनाया , मगर उस फंड से किया कुछ भी नहीं गया। लेकिन इस योजना को कोई भुला नहीं सकेगा , इतिहास में लिखा जायेगा कि जब सालों तक देश  की सरकारें गरीबी नहीं मिटा सकीं तब गरीबों को मरने का हक दिया गया। और तमाम अनाम गरीबों ने देश से गरीबी का कलंक धोने को अपनी जानें कुर्बान कर दीं। ये उन्हीं गरीबों  की शहादत है की देश खुशहाल हुआ।

अंत में उन्हीं गरीबों  आत्माओं के नाम मेरी कुछ ग़ज़लों के  कुछ शेर पेश हैं :-

                    ( निर्भया के नाम चार शेर सब से पहले )

बहाने अश्क जब बिसमिल आए ,
सभी कहने लगे पागल आए।

हुई इंसाफ  की बातें फिर भी , 
ले के खाली सभी आंचल आए।

किसी  की मौत का पसरा मातम ,
वहां सब लोग खुद चल चल आए।

नहीं सरकार के आंसू निकले ,
निभाने रस्म बस दो पल आए।


                ख़ुदकुशी पर कुछ और शेर :-

मौत तो दरअसल एक सौगात है ,
पर सभी ने इसे हादिसा कह दिया।

सत्ता का खेल क्या है उनसे मिले तो जाना ,
लाशें खरीद कर जो शमशान बेचते हैं।

अब लोग खुद ही अपने दुश्मन बने हुए हैं ,
अपनी ही मौत का खुद सामान बेचते हैं।

ख़ुदकुशी का इरादा किया जब कभी ,
यूं लगा है किसी ने पुकारा हमें।

हैं  कुछ ऐसे भी इस दौर के चारागर ,
ज़हर भी जो पिलाते हैं कहकर दवा।

हो गया जीना इन्सां का मुश्किल यहां ,
इतने पैदा हुए हैं जहां में खुदा।

                              अंत में देश के रहनुमाओं से इक बात :-

                              सब को जीने के  कुछ अधिकार दे दो ,
                              मरने  की फिर सज़ा सौ बार दे दो।

माना ये दवा बेहद कड़वी है , मगर इक बार पीनी होगी और तमाम समस्याओं से निजात मिल जाएगी। अभी तलक  की सभी सरकारों  की नाकामियों और उनके अपकर्मों पर इस से पर्दा पड़ जाएगा।
सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां कहलाएगा।  

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