फ़रवरी 03, 2017

सब दुखों की एक दवा है ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

     सब दुखों की एक दवा है     ( व्यंग्य )   डॉ लोक सेतिया

  बिजनेस मैनेजमेंट की क्लास में सभी विद्यार्थी अपना अपना शोध प्रस्तुत कर रहे हैं।  प्रशिक्षण पूर्ण करने के बाद  कौन क्या क्या कारोबार करेगा ये पता चल रहा है। इक होनहार छात्र बता रहा है आजकल सफल होने के लिये अपने उत्पाद के शुद्ध स्वदेशी सस्ता और असली साबित करना या ऐसा घोषित करना प्रचार द्वारा बेहद ज़रूरी है। आज हर उत्पाद पर किसी न किसी का दावा है उत्तम क्वालिटी का सस्ते दाम पर और प्रभावी होने का। मगर अभी भी ऐसी इक वस्तु है जो असली है और  प्रभावी भी ये कोई भी दावा कर बेचता नहीं है। ज़हर किसी का भी असली मिलता नहीं है उन्हें जो जीना नहीं चाहते ख़ुदकुशी करने को। ठीक होने के लिए दवा नकली खाकर लोग मर जाते हैं लेकिन नकली ज़हर से मौत भी मिलती नहीं है। आप सोचोगे सरकार भला ज़हर बनाने और बेचने देगी , जबकि सभी जानते हैं ऐसा करती है सरकार टैक्स की खातिर। आप ज़हर बनाते किसी और काम की खातिर मगर बिकता किसी और काम आने को है। आप विष का प्रचार किसी भगवान या सुकरात जैसे सच बोलने वाले का नाम जोड़ कर भी कर सकते हैं। यकीन रखें जिसका आजकल बहुत अधिक शोर है हर चीज़ असली बनाने बेचने का उसको मैं अपना ये नया विचार बताकर भी कमाई कर सकता हूं। क्योंकि उसको आता है ऐसा कारोबार कर धनपति बनना , मेरा आदर्श वही ही है। इस  देश में करोड़ों लोग हैं जो जीवन से तंग आ चुके हैं मगर ख़ुदकुशी करने को शतप्रतिशत गरंटी वाला विष मिलता नहीं है। सब दुखों की एक दवा है क्यों न आज़मा ले , स्लोगन भी मुझे उपयुक्त लगता है। 

   योग का शोर बहुत है , दावा है योग से रोगमुक्त होने का।  योग जितना बढ़ता दिखाई दे रहा है रोगी उससे भी अधिक बढ़ रहे हैं। अभिनेता विज्ञापन करते हैं बीमा करवाते तो ये हाल नहीं होता। जो बीमा करवा कर भी अदालतों में भटकते फिरते उनसे कोई पूछे। सब मिलता है बाज़ार में ईमान बिकता नहीं ईमानदारी मिलती नहीं। बीमा कंपनियां इमानदार नहीं हैं सरकार और इमानदारी का छतीस का आंकड़ा है और अधिकारी कर्तव्य ईमानदारी से निभाना सीखे नहीं कभी। लेकिन टीवी वाले खबर दिखलाते हैं लोग किसी योजना का सामान चुरा कर ले गए। छोटे चोर चोर हैं जो योजनाओं को कागज़ों पर चट कर गए उनका पता ही नहीं। ज़हर को ज़हर बताकर नहीं बेच सकते , जैसे सरकार जनता को लूटती है मगर देश सेवा और विकास की आड़ लेकर। ज़हर भी दवा का काम करते हैं ऐसा शायर भी मानते हैं। जो दवा के नाम पे ज़हर दे उसी चारागर की तलाश है। चारागर डॉक्टर को कहते हैं कभी होगा नहीं मिलते होंगें दवा के नाम पर ज़हर पिलाने वाले , अब तो तलाश करने की ज़रूरत नहीं हर गली मिलते हैं।

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