फ़रवरी 14, 2017

POST : 604 चलना तो है ( कविता ) डॉ लोक सेतिया

चलना तो है ( कविता )   डॉ  लोक सेतिया

अकेला हूं मैं
नहीं साथ कोई
राह कठिन है
हमसफ़र कोई नहीं ।

तुम भी अगर
मेरी तरह हो अकेले
मुझे अपना बना लो
आ जाओ मेरे पास
या मुझको बुला लो ।

पर सोच लेना
क्या निभाना है साथ
हमेशा पूरी डगर साथ रहकर
वह ही ये जान कर कि
जीवन के लंबे सफर में
आराम करने को रुकने को
नहीं आती कोई मंज़िल
कभी कहीं ठहरने के लिए ।

बस चलते जाना है निरंतर
चलते ही जाना
चलना तो हर हाल ही होगा
चाहे चलो अकेले-अकेले
या साथ साथ बन हमसफ़र
साथ निभाने को ऐ साथी ।
 

 

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