जनवरी 08, 2017

POST : 583 काठ की हांडी से लेकर हाथी के दांतों तक की बात ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

   काठ की हांडी से लेकर हाथी के दांतों तक की बात  ( व्यंग्य ) 

                                         डॉ लोक सेतिया

 अभी की बात है इक रियल्टी शो में कुछ लोगों को पहले चुना गया फिर जब उनमें से आधों को आगे शो में रखना था तब उन सभी को एक साथ बाहर कर दिया गया। जब लिया था तब उनको आम भाग लेने वालों से अधिक बेहतर बताया गया क्योंकि उन सभी में कोई न कोई शारीरिक कमी थी जिसके बावजूद उनकी पतिभा हारी नहीं उनका हौसला टूटा नहीं। कुछ बातें कैमरे पर की जाती हैं कुछ सच ऑफ दि रिकॉर्ड बताई जाती हैं , ऑफ दि रिकॉर्ड सच ये है कि उनको लिया ही इक मकसद से गया था। वो मकसद पूरा हो गया एक बार दर्शकों की वाहवाही लूट कर कि कितने संवेदनशील हैं जज करने वाले लोग। ये हर टीवी शो में कभी न कभी होता है , मगरमच्छ के आंसू बहा दिखलाते हैं। कौन बनेगा करोड़पति में भी यही दर्शाया जाता था कि वो कितने गरीबों की भलाई करते हैं। लोग तो करोड़पति नहीं बने आयोजक और प्रायोजक से संचालक तक अरबपति होते गये। नेता हमेशा से गरीबों की गरीबी दूर करने की बात करते आये हैं और खुद सत्ता पाकर मालामाल होते आये हैं। आज भी जो सत्ता में है उसकी सभाओं की भीड़ और शान मुफ्त की नहीं है , हर सभा करोड़ों रूपये खर्च कर आयोजित की जाती है। क्या उनके पास कोई पेड़ है जिस पर नोट बंदी के बावजूद भी नोट उगते ही हैं , जी हां उनको चंदा बेहिसाब मिलता है। मगर चंदा देने वाले गणित में कमज़ोर नहीं होते , सब हिसाब पहले गिना करते हैं।

                    तो अब ये चुनाव सत्ताधारी दल उस बात का ज़िक्र बिना किये लड़ना चाहते हैं , जिस बात से उनको जीत मिली थी , अच्छे दिन आने वाले हैं। अब बात होने लगी है गरीबों की गरीबी की , खुदा खैर करे , गरीब डरते हैं ये सुनकर। जब जब गरीबी की बात हुई गरीब और गरीब हुए हैं। बात दरअसल हाथी के दांतों की है , गरीबी की बात दिखाने वाले दांत हैं , खाने वाले हाथी के मुंह में छुपे रहते हैं। आज तक किसी दल के किसी नेता ने ऐसा कभी नहीं कहा कि उनकी सरकार बनी तो हर नागरिक को न्यूनतम इतनी आय देने को वो परिबद्ध होगी जिस से आम नागरिक की मूलभूत ज़रूरतें पूरी हो सकें। और जिसकी इतनी आय नहीं उसको हर महीने इतने पैसे सीधे मिलते रहेंगे ताकि लोग जीवनयापन कर सकें। संविधान में सभी को समानता का अधिकार है का इतना तो अर्थ है कि सब को दो वक़्त रोटी शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा एक समान मिल सके अधिकार पूर्वक न कि सबसिडी की भीख जो केवल अपमानित करती है। मगर नेता जो खुद अपने लिये लाखों नहीं करोड़ों की सुविधायें चाहते हैं कि उनका हक है पाना , आम नागरिक को न्यूनतम भी देना ज़रूरी नहीं समझते। इनकी सारी सहानुभूति झूठी है मतलब की है , असल में ये सभी सफेद हाथी हैं जो चुप चाप देश का धन खुद अपने पर विलासिता पूर्वक रहन सहन पर उड़ाते हैं। इक बोझ हैं ये सभी , चाहे किसी भी दल के हैं।

             कभी धर्म की बात , कभी समान नागरिक सहिंता की बात , कभी किसी भी राज्य को विशेष दर्जा नहीं होने की बात , कौन करता था। सब छोड़ दिया तो इस बात को भी जीत कर निभायेंगे  कैसे यकीन करें , लगता है नेता इस बात का फायदा उठाते हैं कि हर बार कोई नई बात सुन लोग पुरानी को भूल जाते हैं। अर्थात ये किसी विचारधारा को नहीं मानते केवल अवसरवादी हैं। बार बार नया तमाशा दिखा जनता से खिलवाड़ करते हैं। कभी माना जाता था काठ की हांडी एक बार चढ़ती है। मगर यहां तो उनको हर बार काठ की हांडी चढ़ानी आती है। हर बार इक नई बात की नई हांडी बनाते हैं और चढ़ाते हैं। इस बार की हांडी पर रंग चढ़ाया हुआ है गरीबी दूर करने का। देखते हैं ये हांडी क्या पकाती है , इसी रंग की हांडी कभी पहले भी किसी ने सफलता पूर्वक चढ़ाई थी। गरीबी और गरीब दोनों आज तक पहले से भी बुरी हालत में हैं।

कोई टिप्पणी नहीं: