जनवरी 24, 2017

मोक्ष की चाह है सबको ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया

      मोक्ष की चाह है सबको  ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया

ख़ास सड़कें बंद हैं तब से मरम्मत के लिये , ये हमारे वक़्त की सब से बड़ी पहचान है। दुष्यंत कुमार को तब भी पता था कुछ रस्ते आरक्षित हैं खास लोगों के लिये। मोदी जी से नासमझ लोग उम्मीद करते हैं कोई चमत्कार करेंगे , सब ठीक कर देंगे। परिवारवाद को खत्म करने , अपराधियों को राजनीति से निकाल बाहर करने की बातें क्या भाषण तक। अभी जिन राज्यों में चुनाव हैं उसकी असलियत क्या है ज़रा ध्यान देना। उम्र भर जो किसी ऐसे दल में था जिसको खुद मोदी जी इक घर की पार्टी बताते हैं , नब्बे साल की उम्र में अपने दल में शामिल कर क्या साबित करना चाहते हैं। सच तो ये है मछली जल में रहती है फिर भी बास अर्थात बदबू नहीं जाती , और ये राजनीति तो कभी का गंदा गटर बन चुकी है। आप विज्ञापनों से इश्तिहारों से उसको गंगा साबित नहीं कर सकोगे। आपके दल में तीस प्रतिशत उम्मीदवार बड़े बड़े राजनितिक परिवारों से जुड़े हैं , आपके गठबंधन में तमाम दल किसी एक नेता की जागीर हैं , आपने खुद तमाम बाहुबलियों को चुनाव में टिकट दिया है , कितने आपराधिक मुकदमें जिस पर दायर हैं उसको प्रधानमंत्री जी न केवल अपने मंच पर जगह देते हैं बल्कि उसका नाम लेते हैं सभा में आदर के साथ माननीय अमुक जी कहकर। मोदी जी जिस पर पर चलकर अभी तक सभी रसातल में जाते रहे हैं आप कैसे उसी पर चल आसमान को छू लेंगे। आपके दल में या बाकी दलों में ही जब कथनी और करनी में इतना विरोधाभास है तब होगा क्या। कितनी विडंबना की बात है कि आपने भी संविधान की भावना की कदर नहीं की , सभी नागरिक समान हों कैसे।

                     आप काला धन खत्म करना चाहते हैं ऐसा दावा करते हैं , आपकी सभाओं में अपार भीड़ है ये भी बताते हैं , मगर ये क्यों नहीं बताते कि हर सत्ताधारी की सभा में भीड़ क्यों और कैसे एकत्र की जाती है। मगर कहते हैं हवन करते हुए भी लकड़ी में जीव अगर होते हैं जल जाते हैं , हम शाकाहारी गोबर के उपले जलाते हैं मगर सोचते ही नहीं उसमें कितने जीव मर गये जलकर। हमारी पवित्रता की परिभाषा विचित्र है। ठीक उसी तरह नेताओं के मापदंड अपने लिये अलग औरों के लिये अलग होते हैं। उस दल का पापी अपने दल में आकर पुण्य आत्मा बन जाता है , आपने दल से जो दूसरे दल में चला गया वो पापी और स्वार्थी कहलाता है। कोई किताब है जो केवल नेताओं को पढ़नी आती है , जिस में अच्छा आरक्षण बुरा आरक्षण , अच्छा दलबदलू बुरा दलबदलू , और टिकट देने को अच्छा धनवान और बुरा धनवान , किसको समझते बताया हुआ है। आप जनता को झूठ से बहलायें तो देशहित और कोई और बहलाये तो दलगत स्वार्थ , शायद इसी को राजनेताओं का धर्म कहते हैं जिस में पाप ही पुण्य है और पुण्य भी पाप है। जीत वो मोक्ष है जिसकी चाहत सभी को है , मोक्ष जीते जी नहीं मिलता , जीत भी अपनी अंतरात्मा अपना ज़मीर और तमाम नैतिक मूल्यों को छोड़ कर ही मिलती है। राजनीति तभी कहते हैं वैश्या जैसी होती है , हर दिन बदलती है अपना रंग , अपना प्रेम का ढंग भी। 

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