हिलती हुई दीवारें ( मेरी चर्चित कहानी ) भाग तीसरा
{ ऑनर किल्लिंग पर } डॉ लोक सेतिया
हिलती हुई दीवारें ( अंक तीसरा )भावना के पिता से पापा की हुई बातचीत विवेक ने फोन पर भावना को बता दी थी जिस को सुन कर भावना परेशान होकर रोने लगी थी। विवेक अब क्या होगा , रोते रोते इतना ही बोल सकी थी। विवेक ने दिलासा दिलाया था तुम घबराओ मत सब ठीक हो जायेगा , अभी शायद अचानक सुनकर उनकी ऐसी प्रतिक्रिया सामने आई है। तुम प्यार से आदर से अपनी ख़ुशी की बात कहोगी तो वो अवश्य समझेंगे बेटी की बात को। मगर भावना को किसी अनहोनी का अंदेशा होने लगा था जो विवेक को नहीं बता सकती थी क्योंकि खुद उसको नहीं मालूम था कल क्या होने वाला है। अगले दिन सुबह ही उसके पिता और दोनों भाई हॉस्टल आये थे और उसको ज़बरदस्ती घर को लेकर चल पड़े थे। किसी ने कोई बात नहीं की थी न ही कोई सवाल ही पूछा था , बस सब सामान उठा कर चल दिये थे। उन सब के चेहरों पर इक कठोरता और तनाव साफ झलक रहा था जो भावना को भीतर तक डरा रहा था। घर पहुंचते ही जैसे इक पहाड़ टूट पड़ा था , मार पीट , बुरा भला कहना जाने क्या क्या हो गया था। सभी की निगाहों में नफरत ही नफरत थी भावना के लिये जैसे उसने कोई अक्षम्य अपराध कर दिया हो , मोबाइल छीन लिया गया था , ताने मारे जा रहे थे कि तुम वहां पढ़ाई करने गई थी या परिवार की इज्ज़त से खिलवाड़ करने को। ऐसा लग रहा था जैसे इक चिड़िया के पर कटकर उसको पिंजरे में कैद कर दिया गया हो। जाने क्या बात थी जो उसको ऐसे में भी कमज़ोर नहीं होने दे रही थी बल्कि और भी मज़बूत हो गई थी अपने इरादे में। उसने सोच लिया था अपने प्यार की इस परीक्षा में उसने हर बात सहकर भी विचलित नहीं होना है , अडिग रहना है। शायद सच्चा प्रेम ही ये शक्ति प्रदान करता है।
भावना को घर में सब से ऊपर की मंज़िल पर बने इक कमरे में कैद सा कर दिया था , कोई उस से बात तक नहीं करता था। रात तक कुछ भी खाने पीने को नहीं मिला था न ही भावना ने मांगा ही था। रात को मां उसके लिये खाना लाई थी जो उसने चुप चाप खा लिया था। लाजो को बेटी के चेहरे पर इक दृढ़ संकल्प दिखाई दिया था जो किसी आने वाले तूफ़ान का ईशारा करता लगा था। भावना कहीं घर से भागने का प्रयास न करे इस डर से बलबीर ने लाजो को भावना के साथ ही सोने को कह दिया था। मां बेटी दोनों ही किसी गहरी चिंता में डूबी हुई थीं इसलिये नींद कोसों दूर थी उसकी आंखों से। लाजो ने प्रयास किया था भावना को समझाने का कि पिता ने तुम्हारे लिये इक लड़का पसंद किया है उस से चुप चाप विवाह कर लो। माना लड़का पढ़ा लिखा नहीं है फिर भी हमारी तरह ज़मींदार परिवार है धन दौलत की कोई कमी नहीं है , हर सुख सुविधा मिलेगी तुम्हें वहां जाकर। भावना ख़ामोशी से मां की बात सुनती रही थी , एक शब्द नहीं बोली थी , बस कुछ सोचती रही थी। थोड़ी देर रुक कर भावना बोली थी , " मां मेरा वादा है मैं बिना आपकी सहमति या आज्ञा के कोई कदम नहीं उठाऊंगी , आपको मेरे बेटी होने पर कभी शर्मसार नहीं होना पड़ेगा। बस एक बार सिर्फ एक बार आज मेरी बात मेरी मां बनकर सुन लो , समझ लो कि तुम्हारी बेटी की भलाई किस में है। मां मैं चाहती हूं कि अज तुम मुझे ही नहीं खुद अपने आप को भी ठीक से पहचान लो। मुझे पता है तुमने पूरी उम्र कैसे दुःख सहकर अपमानित होकर रोते हुई बिताई है। मैंने हर दिन तुम्हारे दर्द को समझा है महसूस भी किया है , और चाहती हूं किसी तरह तुम्हारे दुखों का अंत कर तुम्हें ख़ुशी भरा जीवन दे सकूं मैं , मेरी मां। मां तुम मेरा यकीन रखना तुम्हारी ये बेटी कभी भी तुम्हारे लिये कोई परेशानी नहीं खड़ी करेगी। मेरी कोई ख़ुशी कोई चाहत कोई स्वार्थ इतना मेरे लिये इतना महत्वपूर्ण नहीं हो सकता जिस की खातिर मैं तुम्हारे दुःख दर्द और बढ़ा दूं। फिर भी मेरी बात सुन कर इक बार विवेक के परिवार से मिल लोगी तो अच्छा होगा , बहुत ही सभ्य लोग हैं , इक दूजे को सम्मान देते हैं , प्यार से साथ साथ रहते हैं , सवतंत्र हैं किसी बंधन की कैद में कोई नहीं है। मां कभी सोचा है तुमने , तुम भी इक इंसान हो , तुम्हारा भी कुछ स्वाभिमान होना चाहिए , सम्मान मिलना चाहिए। क्या क्या नहीं करती तुम दिन रात घर की खातिर , कोई कभी तो समझे तुम भी महत्वपूर्ण हो। तुम्हारी अपनी भी कोई सोच समझ है , पसंद नापसंद है , सही और गलत समझने का अपना निर्णय है। कुछ कर दिखाने की काबलियत तुम में भी है। तुम कोई पशु नहीं जिसको खरीद लाये और बांध दिया है खूंटे से , बचपन से देखती रही हूं तुम्हें पिता जी की अनुचित बातें सहते भी और उनकी हर बात को मानते भी। क्या तुम कभी वास्तव में खुश रही हो , क्या हर दिन हर पल तुम इक डर इक दहशत में नहीं रहती रही हो। क्या ऐसे जीने की कभी कल्पना की थी तुमने या करोगी मेरे लिये भी।
भावना की बातें सुन लाजो को अपना बचपन याद आ गया था , जब उसकी मां लाजो को प्यार से गोदी में लिटाकर समझाती थी कितनी बातें। कैसे हर समस्या का समाधान साहस पूर्वक किया जा सकता है , कैसे प्यार से आपस में मिलकर रहना सब को अपना बनाना होता है। लाजो को लगा जैसे आज भावना उसकी मां बन गई है जबकि आज उसको ज़रूरत है मां की। तब लाजो की नम आंखों को अपने हाथों से पौंछ के भावना ने कहा था , मां अब रोना नहीं है , मुझे अपने पैरों पर खड़ा होने दो , मैं तुम्हारी सभी परेशानियों का अंत कर दूंगी। मां अब भले जो भी हो , हम कभी ऐसे मर मर कर नहीं जिएंगी। मैंने सुन लिया था शाम को छत पर जो मेरे पिता जी ने तुम्हें कहा था कि अगर मैं उनकी पसंद की जगह शादी के लिये नहीं मानी तो तुम्हें मुझे ज़हर देना होगा। मुझे मालूम है तुम ऐसा नहीं कर सकोगी , कोई भी मां नहीं कर सकती है ऐसा घिनोना कार्य। हां कुछ कायर लोग विवश करते हैं ऐसा करने को। अपने झूठे मान सम्मान की खातिर , अपने अहंकार की खातिर , महिलाओं को बलिवेदी पर चढ़ाना चाहते हैं , खुद अपनी आबरू की खातिर अपनी जान कभी नहीं लेते। मां कितने ढोंगी हैं समाज के लोग , मीरा और राधा के मंदिर बनाते हैं , उनकी पूजा करते हैं और प्यार को अपराध बता कत्ल करते हैं। अखिर कब तलक परम्पराओं के नाम पर महिलाओं पर अन्याय अत्याचार होगा उनका शोषण किया जाता रहेगा। क्या हमने पूछा है हर युग में नारी ही अग्निपरीक्षा क्यों दे , आज तुम्हें इस अग्निपरीक्षा से नहीं गुज़रना पड़ेगा। अगर तुम्हें लगेगा कि मुझे जीने का अधिकार नहीं है तो तुम ज़हर नहीं पिलाओगी , मैं खुद अपने हाथ से पी लूंगी ज़हर। आज मैं अपने प्यार का अपने जीवन का हर निर्णय तुम पर छोड़ती हूं , मगर बस इतना चाहती हूं कि वो निर्णय तुम अपने विवेक से अपनी समझ से लो न कि किसी और द्वारा थोपे हुए निर्णय को बिना सोचे स्वीकार करो। लाजो ने भावना को बाहों में भर लिया था , एक अश्रुधारा बह रही थी दोनों की आंखों से। यूं ही लेटे लेटे दोनों जाने कब सो गईं थी। लाजो की नींद खुली तो उसे खिड़की से सुबह का उगता हुआ सूरज दिखाई दे रहा था , जो शायद इक संदेशा दे रहा था , नये उजाले का , नये जीवन का।
( जारी है हिलती हुई दीवारें , अगले अंतिम अंक में )
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