इश्क़ में रात दिन आह भरते रहे ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
इश्क़ में रात दिन आह भरते रहेवो अभी आएंगे राह तकते रहे।
सबकी नज़रें उधर देखती रह गईं
हम झुकी उस नज़र पर ही मरते रहे।
चुप रहे हम नहीं कुछ भी बोले कभी
बात करते रहे खुद मुकरते रहे।
पांव जलते गये , खार चुभते रहे
राह से इश्क़ की हम गुज़रते रहे।
आपसे कर सके हम न फरियाद तक
ज़ख्म खाते गये , अश्क़ झरते रहे।
किसलिये देखते हम भला आईना
देखकर आपको हम संवरते रहे।
तोड़ दीवार दुनिया की मिलने गये
फिर भी इल्ज़ाम "तनहा" कि डरते रहे।