मई 12, 2014

POST : 440 इश्क़ में रात दिन आह भरते रहे ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

 इश्क़ में रात दिन आह भरते रहे ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

इश्क़ में रात दिन आह भरते रहे
वो अभी आएंगे राह तकते रहे ।

सबकी नज़रें उधर देखती रह गईं
हम झुकी उस नज़र पर ही मरते रहे ।

चुप रहे हम नहीं कुछ भी बोले कभी
बात करते रहे खुद मुकरते रहे ।

पांव जलते गये , खार चुभते रहे
राह से इश्क़ की हम गुज़रते रहे ।

आपसे कर सके  हम न फरियाद तक
ज़ख्म खाते गये , अश्क़ झरते रहे ।

किसलिये देखते हम भला आईना
देखकर आपको हम संवरते रहे ।

तोड़ दीवार दुनिया की मिलने गये
फिर भी इल्ज़ाम "तनहा" कि डरते रहे ।