मार्च 10, 2014

POST : 421 पणिहारी और मुसाफिर ( हरियाणवी कहानी ) लोक कथा के लेखक अनाम होते हैं

        पणिहारी और मुसाफिर ( हरियाणवी कहानी ) 

                           ( लोक कथा के लेखक अनाम होते हैं )

         किसै गाम में एक बीरबानी रहया करै थी। वा बात बहोत जाणे थी। निरे किस्से कहाणी उसकी जीभ पै धरै रहैं थे। वा बोलण में इतनी चातर थी कि अच्छे अच्छे सयाणा की भी बोलती बंद कर देती थी।

       एक दिन दोपहर में वा पाणी भरण चली गई। कुये धोरे कै चार आदमी राह चलै जाँ थे। वे उस पणिहारी तैं बोले -ए हमनै पाणी प्या दे। वा बोली -देखो भाई मैं अणजाण माणस नै पाणी कोन्या प्याऊं। पहले न्यू बता दो अक तुम कूण सो। उन मैं तैं एक बोल्या -हम तो मुसाफिर सैं। वा बोली -झूठ। मुसाफिर तो इस जगत में दोए सैं। एक सूरज और दूसरा चाँद तम कड़े के मुसाफिर ? न्यू सुण कै दूसरा बोला -हम तो तिसाये सैं। फेर वा पणिहारी बोली -तिसाये तो दुनियां में दो ए सैं एक चातक और दूसरी धरती माँ तम कड़े के तिसाये। उसका यो जवाब सुण कै तीसरा बोल्या -ए हम तो बेबस हैं। इब की बार वा बोली -बेबस तो इस दुनियां मैं दो ए सैं एक कन्या और दूसरी गऊ। तुम कड़े के बेबस।वा उन चारां गैल्यां बात करण लाग री थी कि उसका पति खेतां कान्ही तैं चालता उसी रास्ते ओड़ी आ ग्या जड़ै कुआ था। उसने दूर तैं देख्या मेरी घर आली इन चार मलंगा गैल्यां बात घडण लाग री सै। वो तावला- तावला कुएं कान्ही चल पड़या। इतने मैं उस चौथे नै भी खिज कै कह दिया -हम तो मूर्ख सैं मूर्ख एक तूं है स्याणी सै। वा फेर बोली -मूर्ख तैं इस दुनियां मैं , वा अपणी बात पूरी ना कहण पाई इतने मैं उसका पति आ गया। वो छोह मैं थर भर कै बोल्या -मैं बहोत हाण का देखूं सूं इन चार मुस्टंडा गैल्यां के मस्ती मारै सै। घर ने हो ले। घरां जा कै वो बोल्या -तेरा चाल चलण ठीक कोन्या। वा बोली -झूठ सै। मैं तो खरी सूं खरी। चाहे जिसी परीक्षा ले ले। मैं तैयार सूं।
                        उसके पति ने राजदरबार में फरियाद कर दी। राजा ने न्यायधीश बुला कै इन दोनां की बात उसके आगै रख दी। पति की बारी आई तै वो बोल्या -जी या दोपहरी मैं कुंए पै खड़ी हो कै चार मुस्टंडा गैल्यां गिरकावै थी। बस इस नै मैं ना राखूं। मेरा पीछा छुड़या दो इस तैं। राजा ने भी उसके पति की बात साच्ची मान ली।

                                   न्यायधीश बोल्या -मैं पहल्यां इसका पक्ष बी तो सुण ल्यूं फिर पाछै फैसला करूंगा। न्यायधीश इस तांही बोल्या -इस नै तो अपणी बात कह दी। तेरे चाल चलण पर इल्ज़ाम ला दिया। इब तू अपणी सफाई मैं के कहणा चाहवै सै कह दे तनै पूरा मौका दे रह्या सूं अपना पक्ष सामणे रखण ताहीं।

                        वा बोली- ना तै मैं बदचलन सूं अर ना मैं उन चारयां गैल्यां कोए मस्ती मारूं थी। वे कुएं धौरे कै जां ये। उन्नह पाणी मांग लिया। मन्नै कह दिया -दिखै मैं अणजाण ताही पाणी कोन्या प्याऊं। तुम न्यू बता दो अक तम कूण सो। उन मैं एक बोल्या -मुसाफिर। मन्नै कहा -मुसाफिर तो इस दुनियां में बस दो ए सैं एक सूरज और दूसरा चाँद। न्यायधीश ने बूझ्या -ये क्यूकर। वा बोली -न्यूं तो सब सफर करै सैं। पर अपणे मतलब खात्यर करैं सैं मगर सूरज अर चाँद तै अपना सफर जगत की भलाई ताहीं करैं सैं। सच्चे मुसाफिर तै ये दो ए सैं ना। बता मन्नै के गलत कह दिया। न्यायधीश बोल्या -बात तो तेरी ठीक लागै सै। चल आगै बता के कहणा चाहवे सै। फिर वा बोली -उन मैं तैं दूसरा बोल्या -हम तिसाये है। मन्नै कहा -तिसाये तो दुनियां मैं बस दो ए सैं एक चातक अर दूसरी धरती माता। न्यायधीश बोल्या -अपणी बात साफ -साफ समझा कै बता। वा बोली -तिस लागै पीछै सारे प्राणी कितै न कितै तिस मिटाण का राह ढूंढ ले सैं। पर धरती माता अर चातक पंछी की प्यास तो जिब बुझै सै जिब भगवान मींह बरसावै। ना तै ये दोनों तो तिसाये ए मरते रहै सैं। ये दो ए सच्चे तिसाये सैं।

                                न्यायधीश को उसकी या बात भी माननी पड़ी। वो फेर बोल्या -आगे के होया। इब उसनै  बताया कि तीसरा बोल्या -हम तो बेबस सैं। मन्नै कह्या -बेबस तो दुनियां मैं दो ए सै कन्या अर गऊ। न्यू सुण कै न्यायधीश बोल्या -या बात भी तनै खोल समझाणी पड़ेगी। उसने जवाब दिया -देखो जी गऊ का मालिक उसका जेवडा खोल कै किसै के हाथ में पकड़ा दे वा बेचारी कुछ नहीं कर सकती। अर याहे बात कन्या पै लागू हो सै। उसके माँ बाप जिस गैल्यां उसके फेरे फेर दें वा भी उसै गैल्यां ज़िंदगी भर के लिये त्यार हो जा। दोनों बेबस तो होगी ना।

                        न्यायधीश को उसकी या बात भी सही जचगी वो बोल्या - फेर क्या होगा। वा बोली - जी चौथा बोल्या हम तो मूर्ख सैं। मन्नै कहा -मूर्ख तो इस जगत में दो ए सैं। बस इस बात का जवाब देण तै पहल्यां यो मेरा पति उड़ै आ गया और मन्नै घरां ले आया। फिर थारे दरबार में मेरी शिकायत कर दी और बदचलन कहण लागया।

                        इब न्यायधीश बोल्या - देख इतना तै हम समझगे कि तू बदचलन कोन्या। पर इस सवाल का जवाब तो दे दे कि संसार में दो मूर्ख कोण कोण सैं। वा बोली - जाण दो जी के करोगे जवाब सुण कै। बस न्याय कर दो। न्यायधीश बोल्या - ना इस सवाल का जवाब भी तन्नै देणा ए पड़ेगा। वा बोली - आप नै इब ताही मेरे सारे जवाब ठीक लागै सैं। के बेरा यो जवाब गलत हो ज्या। न्यायधीश बोल्या -तू समझदार लुगाई सै। तेरा जवाब गलत नहीं हो सकता। वा बोली - ठीक सै मैं जवाब दे तै दयूंगी मगर जै कोई बुरा मान गया तै इसकी जिम्मेदारी थारी। बोलो जै मन्ज़ूर करते हो तो मैं जवाब दयूंगी। न्यायधीश व राजा बोले मन्ज़ूर।

                  इब वह बोली -पहला मूर्ख तो वो सै जो बिना पूरी बात की सच्चाई जाणे किसी पै इल्ज़ाम लगा दे जुकर मेरे पति ने ला दिया कि मैं चार मुस्टंडा गैल्यां गिरकाऊं थी। और दूसरा मूर्ख वो हो सै जो किसी की कही ओडी बात पै बिना सोचे समझे यकीन कर ले जुकर म्हारे राजा साहब नै मेरे पति की बात मान ली और मन्नै बदचलन समझण लाग्गे। छोटा मुहं बड़ी बात कहण के लिये माफी चाहूँ सूं।
                                उसकी ये बात सुण कै राजा वा न्यायधीश की आँखे खुली की खुली रहगी। वे उसके पति ताही बोले -तू तै भागवाला सै जो इतनी समझदार बीरबानी तेरी पत्नी सै। इसकी सारी बात मान्या कर सुखी रहेगा।

           ( सूचना - ये रचना हरिगंधा पत्रिका के फरवरी मास के अंक में प्रकाशित हुई है । 
   जिस का नाम पत्रिका में दिया गया है उस लेखिका की अनुमति से ही प्रकाशित किया गया है मेरे द्वारा      अपने ब्लॉग पर । 
साभार ।  मुझे बताया गया है कि ऐसी सभी कथायें कुछ अनाम लेखकों की रचना होती हैं ) 
 

 

1 टिप्पणी:

Sanjaytanha ने कहा…

अभी तक रागनी ही सुनी थी आज कथा पढ़कर बहुत अच्छा लगा