मार्च 17, 2014

बेघर हैं इस घर के मालिक ( तरकश ) डा लोक सेतिया

      बेघर हैं इस घर के मालिक ( तरकश ) डा लोक सेतिया

     बहुत बड़ा ही ये मकान , कहते हैं ये भारत देश है। माना जाता है देश की सवा सौ करोड़ जनता खुद इसकी मालिक है , मगर उनको इसकी खबर ही नहीं कि ये देश उनका है। इस जनता में वे करोड़ों लोग भी हैं जो सड़कों -फुटपाथों को अपना ठिकाना बना ज़िंदगी बसर कर रहे हैं। इस देश रूपी भव्य मकान पर आज़ादी के बाद से कुछ राजनेताओं ने कब्ज़ा जमा रखा है। वे रात दिन जनसेवा की बात कर शासन के नाम पर इस घर को लूट रहे हैं बेरहमी से। इन नेताओं के कई गुट बने हुए है जिनको ये अपना दल कहते हैं , हर इक गुट का दावा है कि इस आलीशान मकान का कोई न कोई हिस्सा उसी का है। कोई किसी खिड़की को अपनी विरासत समझता है कोई दरवाज़े को अपनी मलकियत बताता है। किसी का अधिकार आंगन पर है , किसी ने छत को निजी जगह समझ लिया है। खिड़की को पकड़े कोई जब चाहे उसको बंद कर देता है और हवा रौशनी तक को नहीं आने देना चाहता तो कभी जब चाहे तब उसको खुला छोड़ देता है चाहे आंधी तूफान से तबाही मच जाये।कोई किवाड़ को पकड़े हुआ है जो चाहता है कि वही लोग भीतर जा सकें जो हर दम उसकी जय जयकार किया करें। किसी गुट ने मुख्य हाल पर अपना अधिपत्य जमा रखा है बाकी गुटों ने किसी न किसी कमरे को हथिया लिया है। इस मकान की हर चौखट पर , एक एक ईंट पर किसी न किसी का नाजायज़ कब्ज़ा है। सब की नज़र माल गोदाम और रसोई घर पर रहती है , हर कोई अधिक से अधिक खा जाना चाहता है। पूरे मकान में दरारें ही दरारें हैं भ्रष्टाचार की , जिधर भी नज़र जाती है प्रशासन की मनमानी कामचोरी का जाला दिखाई देता है। लगता है किसी को भी इसकी साफ सफाई की बिल्कुल भी चिंता नहीं है। अभी इक नया गुट इनमें आ मिला है जो हाथ में झाड़ू पकड़े हुए था और सफाई की बात कहने के वादे पर इस मकान में घुसा था लेकिन दो दिन में ही उसकी वास्तविकता सामने आ गई है उसको बाकी सभी से अधिक जगह पर अपना अधिपत्य चाहिये। जाने ये कैसी सफाई करना चाहते हैं कि खुद ही गंदगी को बढ़ाने का काम करने लगे हैं।

    कहते हैं कि इस मकान का सब से खूबसूरत जो कक्ष है उसी में सत्ता रूपी सुंदरी वास करती है। ये तमाम नेता उसी के दीवाने हैं , सब रंगरलियां मनाना चाहते है उस सुंदरी के साथ। नेताओं के लिये इस से बढ़कर कोई भी सुख नहीं है , स्वर्ग का सुख इस के सामने कुछ भी नहीं है उनके लिये। सत्ता रूपी सुंदरी को हासिल करने को ये नेता कुछ भी कर सकते हैं। लाज शर्म , ईमानदारी नैतिकता सब को त्याग सकते हैं सत्ता सुंदरी के लिये। एक बार उसको अपने बाहुपाश में जकड़ लेने का सपना सब नेता उम्र भर देखता है। नेताओं को किसी मोक्ष की कामना नहीं होती कभी , जान जा रही हो तब भी इनको सत्ता सुंदरी को छोड़ और कुछ याद नहीं होता। हर नेता जल बिन मछली की तरह तड़पता रहता है उसी के लिये। इस मकान में जो सभा भवन है उसको हम्माम कहते हैं जहां पर सभी नग्न होते हैं। इसलिये उस सभा में किसी को कुछ भी करते रत्ती भर भी शर्म का एहसास नहीं होता है।

                     हर पांच वर्ष बाद और कभी उससे पहले भी चुनाव रूपी इक मेला लगता है। लोकतंत्र नाम का इक खेल खेला जाता है। नेता एक दूसरे पर कीचड़ उछालते हैं , इक दूजे पर कालिख पोत कर होली खेलने का मज़ा लेते हैं। तब थोड़े दिन तक सड़क - फुटपाथ पर रहने वाली जनता को खुश करने , उसको मूर्ख बना फिर से अपने अपने जाल में फसाने के प्रयास सभी गुट के नेता करते हैं। इस समय नेता गुट को भी त्याग देते हैं जब उनको लगता है कि सत्ता सुंदरी विरोधी गुट में शामिल होने से उसको वरमाला पहना सकती है। जनता को हर बार नये नये सपने दिखाये जाते हैं , रोटी कपड़ा घर , विकास की बातें , उसको जीते जी स्वर्ग दिखलाने तक का दावा या वादा किया जाता है। हर बार जनता इनकी बातों के जाल में फंस जाती है वोट दे देती है इनको विश्वास करके। सत्ता के सिंहासन पर बैठते ही नेता सारे वादे सारी कसमें भूल जाते हैं और कुर्सी मिलते ही जनता रूपी द्रोपदी का चीर हरण होता है भरे दरबार में। वहां तब सब धृतराष्ट्र बन जाते हैं। और ऐसे में कोई कृष्ण भी नहीं आता है उसकी लाज बचाने को। जनता की चीख पुकार इस मकान की दीवारों में दब कर रह जाती है।

              देश की आज़ादी के बाद से यही होता आया है , नेता इस देश रूपी जिस मकान में रहते हैं उसी की नींव को खोखला करने का काम करने को देश सेवा बता रहे हैं। ये नेता और प्रशासन के लोग जिस डाल पर बैठे हैं उसी को ही काटने का कार्य कर रहे हैं। तब भी खुद को बहुत अकलमंद समझते है ये सब। इसी मकान में तमाम जयचंद , मीर जाफर , विभीषण जैसे लोग भी रहते हैं जो बाहर वालों से मिलकर घर की ईंट से ईंट बजाने को व्याकुल हैं। कायदे कानून , जनता के हक़ सब इनकी मर्ज़ी पर हैं , जनता के हित पूरे करने में कोई काम नहीं आता और नेताओं का हित साधने में सब तत्पर रहते हैं। देखा जाये तो देश का कानून भी मकान के असली मालिक का कोई अधिकार नहीं समझता है , सारे कायदे कानून उनके हितों की रक्षा के लिये हैं जिनका कब्ज़ा होता है मकान पर। बस एक बार किरायेदार बन कर घुस गये तो फिर निकलने का नाम ही नहीं लेते। मालिक को किराया तक देना ज़रूरी नहीं है , केवल झूठा वादा करते हैं कि चुनाव के बाद पूरा किराया भी देते रहेंगे और मकान की देखभाल भी बराबर करेंगे। लेकिन चुनाव बीत जाने के बाद न वो याद रहता है जो कर्ज़ चुकाना है देश की मालिक जनता का न ही उसकी हालत को सुधारने का कोई प्रयास ही किया जाता है। हर बार हालत और भी खराब हो जाती है।
  

1 टिप्पणी:

Sanjaytanha ने कहा…

दल-गुट..👌👍 अधिक से अधिक खा जाना चाहता है👌👍 अच्छे अच्छे प्रतीक लिए हैं बहुत बढ़िया