चाहत प्यार की ( कविता ) डॉ लोक सेतिया
दूर दूर तक फैली हैनफरत की रेत यहां
सब भटक रहे हैं
इक जलते हुए रेगिस्तान में
प्यार के अमृत कलश की
है सभी को तलाश ।
मिलती है हर किसी को
हर दिन हर पल नफरत
मिलता है इस जहां में
केवल तिरिस्कार ही तिरिस्कार
भाग जाना चाहता है हर कोई
इस दुनिया से किसी दूसरी दुनिया में ।
मगर नहीं मालूम किसी को भी
ऐसे किसी जहान का पता
मिल जाये जहां पर सभी को
कोई एक तो अपना उसका
जिससे कर सके प्यार और स्नेह की
पल दो पल को ही सही कुछ बातें ।
भर चुका है सभी का मन
झूठे दिखावे की रिश्ते नातों की बातों से
जी रहे हैं घुट घुट कर लोग
अपनी अपनी इस पराई दुनिया में
बिना किसी का सच्चा प्यार पाये ।
दम घुटता है
सांसें टूटती हैं
धुंधली नज़रों को नहीं आता
कुछ भी नज़र कहीं पर भी
यूं ही ढोये जा रहे हम सब
बोझ अपने अपने जीवन का
बस इक प्यार की चाहत में
तमाम उम्र ।
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