अब लगे बोलने पामाल लोग ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
अब लगे बोलने पामाल लोगदेख हैरान सब वाचाल लोग।
कौन कैसे करे इस पर यकीन
पा रहे मुफ़्त रोटी दाल लोग।
ज़ुल्म सहते रहे अब तक गरीब
पांव उनके थे हम फुटबाल लोग।
मुश्किलों में फंसी सरकार अब है
जब समझने लगे हर चाल लोग।
कब अधिकार मिलते मांगने से
छीन लेंगे मगर बदहाल लोग।
मछलियां तो नहीं इंसान हम हैं
मुश्किलों में फंसी सरकार अब है
जब समझने लगे हर चाल लोग।
कब अधिकार मिलते मांगने से
छीन लेंगे मगर बदहाल लोग।
मछलियां तो नहीं इंसान हम हैं
रोज़ फिर हैं बिछाते जाल लोग।
कुछ हैं बाहर मगर भीतर हैं और
रूह "तनहा" नहीं बस खाल लोग।
पामाल = दबे कुचले
वाचाल = बड़बोले