अगस्त 06, 2013

POST : 357 अब लगे बोलने पामाल लोग ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

अब लगे बोलने पामाल लोग ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

अब लगे बोलने पामाल लोग 
देख हैरान सब वाचाल लोग ।
 
कौन कैसे करे इस पर यकीन 
पा रहे मुफ़्त रोटी दाल लोग ।

ज़ुल्म सहते रहे अब तक गरीब 
पांव उनके थे हम फुटबाल लोग ।

मुश्किलों में फंसी सरकार अब है
जब समझने लगे हर चाल लोग ।

कब अधिकार मिलते मांगने से
छीन लेंगे मगर बदहाल लोग ।

मछलियां तो नहीं इंसान हम हैं  
रोज़ फिर हैं बिछाते जाल लोग । 

कुछ हैं बाहर मगर भीतर हैं और
रूह "तनहा" नहीं बस खाल लोग । 
 
पामाल =  दबे कुचले  
 
वाचाल = बड़बोले