मई 03, 2019

बड़े बनकर नीचे गिरते लोग ( विडंबना ) डॉ लोक सेतिया

    बड़े बनकर नीचे गिरते लोग ( विडंबना ) डॉ लोक सेतिया 

    चाहे किसी भी तरह से किस्मत से खुशनसीबी से या  किसी भी ढंग से आप बड़े बड़े पद पर पहुंच गए हैं। मगर आपने देश की संविधान की तिरंगे की लाज रखनी है अपने कर्तव्य को निडरता निष्पक्षता ईमानदारी से निभाना है। मगर जब बड़े बड़े अधिकारी सत्ताधारी नेताओं के तलवे चाटते हैं तो खुद को ही नहीं अपने पद की गरिमा के साथ साथ देश की प्रतिष्ठा को भी बहुत नीचे गिराते हैं। सत्ताधारी दल के नौकर  नहीं हैं आप देश जनता के अधिकारों के रक्षक नियुक्त किये गए हैं। आपने अपने गौरव नहीं देश के साथ वफ़ादारी निभाने को भुलाकर खुद को अपनी और सबकी नज़र में गिरा कर साबित कर दिया है कि आप अपने पद के काबिल नहीं हैं।  शायद तीस चालीस साल पहले बी के चम जी का इक लेख पढ़ा था जो वास्तव में इक मिसाल था कि कभी ऐसे भी लोग हुआ करते थे। तीन घटनाओं की आंखों देखी बात बताई थी। पहले भी उनका विवरण दिया हुआ है आज फिर से दोहराता हूं।

                      कोई है जो अपनी ड्यूटी ईमानदारी से निभाता है ( पहली घटना )

शिमला मॉलरोड का रास्ता गाड़ियों के लिए बंद किया हुआ था और इक बैरियर बनाया गया था इक सिपाही तैनात किया गया था। कार पर इक विभाग के बड़े अधिकारी थे जो बाकयदा वर्दी में थे और सड़क से गुज़रना चाहते थे सिपाही ने बताया जनाब इधर से जाने की अनुमति नहीं है। कार चालक ने बाहर निकल का अधिकारी कौन है बताया था मगर सिपाही तब भी रास्ता खोलने को माना नहीं था। खुद को ऐसी हालत में पा कर अधिकारी खुद कार से निकल कर आये थे और सिपाही को बताया था जानते हो मैं उस विभाग का बड़ा अधिकारी हूं और कभी मुमकिन है तुम मेरे आधीन कर्मचारी बनकर नियुक्त किये जा सकते हो। सोचा है तब क्या होगा ,  सिपाही ने सैलूट किया और कहा माफ़ करना आपको इधर से नहीं जाने दे सकता यही मेरी ड्यूटी है। और कभी अगर मेरी नियुक्ति आपके विभाग में हुई तो होगा ये कि आपको पता होगा कि आपके आधीन कोई एक व्यक्ति है जो अपना कर्तव्य निडरता से और ईमानदारी से निभाता है। अधिकारी ने उस सिपाही को सैल्यूट किया था और अपनी गलती की माफ़ी मांग वापस लौट गया था। 

            उनसे कह दो उनको साक्षात्कार देने से वंचित किया गया है ( दूसरी घटना )

अपने अधिकारी दोस्त से मिलने उस शहर गया तो पता चला वो दफ्तर में साक्षात्कार ले रहे हैं। कोई रिश्वत या सिफारिश नहीं स्वीकार करते जानता था। दफ्तर पहुंच उनके सामने बैठा ही था कि किसी मंत्री जी का फोन आया और जी मंत्री जी नमस्कार से बात शुरू हुई। बात सुनी और बोले आप उसका नाम नंबर क्या है विवरण बताओ और लिखते गये किस की सिफारिश की जा रही है। उधर से शायद सवाल किया गया उस को क्या बता सकता हूं उसकी नौकरी पक्की है। अधिकारी ने कहा था आप उनको बता सकते हैं नियम है कि कोई सिफारिश या रिश्वत या अनुचित दबाव डालना किसी को साक्षात्कार से बाहर करने का आधार है अत: उनको साक्षात्कार की अनुमति नहीं है। कोई भी नेता अधिकारी का कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता अगर निष्पक्ष है और ईमानदार है। 

              आजकल की घटनाओं की बात ( तीसरी घटना अभी याद नहीं आ रही )

कोई अधिकारी नेता के पांव छूता है सभा में कोई जूते साफ करता है कोई हाज़िरी लगाने चला जाता है। अब चुनाव हैं और अधिकारी कर्मचारी चुनाव आयोग का हिस्सा बन देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था को कायम रखने को कार्य करने की ज़िम्मेदारी है। मगर उच्च अधिकारी किसी नाते किसी रिश्ते किसी संबंध को देख कर निष्पक्षता और देश भक्ति को दरकिनार कर उनको अनुचित फायदा देने का अपराध करते हुए नहीं सोचते कि ऐसा देश संविधान के साथ छल कपट करना है। कितनी शिकायत आयोग को मिलती हैं और तब तक बेशर्म लोग देश के कानून को ताक पर रखकर मनमानी करते हैं। हद तब होती है जब सत्ताधारी दल के नेताओं के असंवैधनिक आदेश को पालन करते हुए विपक्षी दल के साथ भेद भाव किया जाता है। किसी विपक्षी दल के पोस्टर आधी रात को अधिकारी फड़वाने का काम करते हैं तो अपराध नहीं देश के साथ धोखा करते हैं। लोग ऊंचाई पर पहुंच कर सजग रहते थे कोई उनकी ईमानदारी पर शक नहीं कर सके मगर आजकल बड़े बड़े अधिकारी सत्ता के दलाल की तरह लाज शर्म छोड़ खुद को अपने पद की गरिमा को नीचे गिराने का काम कर रहे हैं। 

 

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