अगस्त 08, 2017

जूतों का उपदेश ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

          जूतों का उपदेश ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

       अभी अभी सैर पर इक पुराने दोस्त मिले , आजकल के हालात  की बात चली तो हमेशा की तरह खुद की बढ़ाई करने लगे। फिर मुझे समझाने लगे मैं भी उन जैसा बन जाऊं , जो सालों तक नहीं बन सका न कभी बनना चाहता। अपने फोन से अपने गुरु जी का वीडियो दिखलाने लगे , गुरु जी समझा रहे थे आप रास्ते के कांटें चुनोगे तो कभी खत्म नहीं होंगे वो , अच्छा है आप खुद को बचाओ और जूते खरीद लो पहनने को। क्या ये धर्म की बात है मुझे नहीं लगता , गनीमत है उन्होंने अपने ब्रांडेड जूते पहनने की बात नहीं की। मुझे तो इक शायर की बात अच्छी लगती है , 

      " माना चमन को गुलज़ार न कर सके , कुछ खार कम तो कर गये गुज़रे जिधर से हम "।

आप सोचोगे अच्छी बात है कोई मेरा हमदर्द तो है जो मुझे समझाता है कि सच बोलकर दुश्मन मत बनाओ दुनिया को अकेले पड़ जाओगे। सच चलता ही अकेले है , झूठ को ही जाना होता है सौ साथियों के साथ लेकर। उस रात अपने बेटे को पुलिस थाने से छुड़ाने को नेता जी अकेले जाने का हौसला नहीं कर सके सौ समर्थक साथ लेकर गए , बेटे की करतूत पर पर्दा डालने को। कल इक नेता बोले आधी रात को लड़की को घर से बाहर नहीं जाना चाहिए वो भी अकेली। कितनी महान सोच है इनकी , आधी रात को अकेली लड़की इनको अवसर लगती है आवारागर्दी करने का , क्योंकि आधी रात को इनकी संताने निकलती हैं सड़क पर। 
 
          अभी आपको समझाना बाकी है उन महोदय को मेरी चिंता क्यों हुई। हमेशा से लिखता रहा यही सब , हर नेता हर सरकार जो भी सत्ता में हो उसकी आलोचना की है निडरता से। और यही लोग तारीफ के पुल बांधते रहे हैं क्या बात लिखी आपने आईना दिखा दिया उनको। मगर आजकल उस दल की सरकार है जिस के समर्थक वो हमेशा से रहे हैं , कितनी मुश्किल से अच्छे दिन आये हैं उनके। इक और शायर याद आते हैं ,
 

          " हर मोड़ पे मिल जाते हैं हमदर्द हज़ारों , लगता है मेरे शहर में अदाकार बहुत हैं। "

 
लेकिन उनको दोष नहीं देना चाहता , सब अपनी चमड़ी और दमड़ी बचाने में लगे हैं। अभी बात किसी अनजान की बेटी की है अपनी पहचान की होती तो जाकर झूठी तसल्ली देते भगवान का शुक्र है बेटी सुरक्षित है।  उनकी खुद की बेटी है ही नहीं बेटे हैं सब , किसी रिश्तेदार की बेटी होती तब भी दिखावे को साथ जाते मगर अपनी खाल बचाकर। इक लड़की को मार दिया गया था ससुराल में तब बिरादरी के पंच बनकर सौदा करवा आये थे। ऐसे लोग न्याय नहीं निपटारा करवाते हैं। अच्छा है ऐसे गुरुओं से मैं दूर ही रहा हूं।  

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