अप्रैल 23, 2013

मिल के आये अभी ज़िंदगी से ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

 मिल के आये अभी ज़िंदगी से ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

मिल के आये अभी ज़िंदगी से
की मुलाक़ात इक अजनबी से ।

मांगते सब ख़ुशी की दुआएं
दूर जब हो गये हर ख़ुशी से ।

काश होते सभी लोग ऐसे 
लुत्फ़ लेते वो आवारगी से ।

बात हर इक छुपा कर रखो तुम
कह न देना नशे में किसी से ।

खूबसूरत जहां  कह रहा था
देखना सब मुझे  दूर ही से ।

दर्द कितना,मिले ज़ख्म कितने
मिल गई  दौलतें   दोस्ती से ।

क़त्ल कर लें तुझे आज "तनहा"
पूछते थे यही खुद मुझी से । 
 

 

कोई टिप्पणी नहीं: