दिसंबर 11, 2024

POST : 1926 दौर ही आज का निराला है ( हक़ीक़त ) डॉ लोक सेतिया

     दौर ही आज का निराला है ( हक़ीक़त ) डॉ लोक सेतिया  

आज का विषय महत्वपूर्ण है सामाजिक वास्तविकता हम सभी की , पहले इक ग़ज़ल पढ़ते हैं । 

जिससे अनभिज्ञ पीने वाला है 

ज़िन्दगी वो विषाक्त हाला है । 

प्यार फूलों से था जिसे बेहद 

चित्र पर उसके फूलमाला है । 

था स्वयं जो अजातशत्रु , उसे 

क्या खबर किसने मार डाला है । 

दिन दहाड़े ही लुट रहा कोई

मूकदर्शक बना उजाला है । 

मधु प्रतीकों का घोर आलोचक 

पीनेवालों का हम-पियाला है । 

बेठिकाने को मिल गई मंज़िल 

उसने फुटपाथ जा संभाला है । 

हों निराले न तौर क्यों ' महरिष '

दौर ही आज का निराला है । 

( नागफनियों ने सजाई महफिलें - ग़ज़ल संग्रह से साभार शायर : आर पी शर्मा ' महरिष ' )  

  बिना किसी भूमिका अब सीधे आज के दौर की बात करते हैं , दुनिया जहान की नहीं खुद अपनी बात करते हैं । हमारे समाज में बड़ा छोटा बीच का जो भी हो सभी को पहले इक सवाल खुद से पूछना चाहिए कि हमने क्या किया है अपने देश समाज को बेहतर बनाने की खातिर । पहले उनकी बात जो समझते हैं हम देश समाज के सेवक हैं देशभक्त हैं बड़े पदों पर बैठ लोकतंत्र संविधान की बातें करते हैं शासक प्रशासक मंत्री से सरकारी महासचिव से छोटे से पद पर आसीन कर्मचारी सभी शामिल हैं कार्यपालिका न्यायपालिका तक । इक अंदाज़ा लगाते हैं कि दस से बीस प्रतिशत जनसंख्या का भाग हैं , इनको जितना चाहिए किसी से मांगना नहीं पड़ता अपने आप निर्धारित करते हैं जब चाहे साधन सुविधाएं अधिकार विशेषाधिकार । शायद साधरण नागरिक से लाख गुणा उनको हासिल है लेकिन क्या तब भी जिस कार्य के लिए उनको नियुक्त निर्वाचित किया उस कार्य को करने में सफल हुए हैं । वास्तव में उनके रहते गरीबी भूख अन्याय शोषण नागरिकों की मूलभूत सुविधाएं मुहैया करवाना इत्यादि सभी की दशा बिगड़ती गई है अर्थात उनको जो करना था नहीं किया तब भी सबसे शानदार ज़िंदगी जीते हैं और उनको कोई खेद कभी नहीं होता कि उन्हें जैसा करना था नहीं किया है । 
 
उनके बाद आते हैं कुछ उद्योगपति कारोबारी कुछ ख़ास शिक्षा स्वास्थ्य जगत में कार्यरत सभ्य वर्ग के लोग जिनको समाज को सुंदर भविष्य और नैतिकता का मार्ग समझाना था लेकिन इतने पावन कार्य में होते हुए भी अधिकांश भटक गए धन दौलत और नाम शोहरत ऐशो-आराम की मृगतृष्णा में जिसका कोई अंत नहीं है । ऐसे सभी लोगों ने कभी उचित अनुचित की चिंता नहीं कि न ही सोचा समझा कि इंसान को कितनी ज़मीन चाहिए । इक हवस में पागल होकर उन्होंने इंसानियत को लेकर समझना छोड़ दिया । उनको सभी को मेहनत से हज़ारों गुणा अधिक मूल्य मिलता है और इस को देखने समझने वाला कोई नहीं है , पैसे को भगवान बनाया तो पैसे से खुद बिकने ही नहीं बल्कि न्याय कानून सभी कुछ खरीदने लगे । शराफ़त और नफ़ासत से तमाम लोगों को इतना लूटा कि किसी की बेबसी बदहाली पर कभी विचार नहीं किया अगर कुछ किया भी तो किसी मतलब से कुछ हासिल करने को बदले में । कितनी विडंबना है उच्च शिक्षा पाकर भी मानसिकता बेहद संकीर्ण ही रहती है । तथाकथित धार्मिक उपदेश देने वाले , कलाकार फ़िल्मकार टेलीविज़न पर अख़बार में वास्तविक तस्वीर नहीं दिखला कर दर्शकों को घटिया मनोरंजन के नाम पर इतनी गंदगी परोसने लगे हैं जिन से देश समाज को कुछ नहीं हासिल होता बल्कि पतन की राह चलने को प्रेरित करते हैं । 
 
देश की राजनीति जाने कब से किसी तरह सत्ता पाने की सीढ़ी बनती गई जिस में खुद सभी कुछ अपने लिए हासिल करने को बिना कुछ सोचे समझे रेवड़ियां बांटने का चलन हो गया है । कभी किसी नाम पर कभी कोई योजना बनाकर कुछ खास लोगों को फायदा देने के लिए ताकि अपनी नाकामी को ढका जाये किया गया । अब जैसा विज्ञापन है सरकारी 80 करोड़ लोगों को खाने को मुफ़्त राशन देने का , क्या शर्म की बात नहीं है कि आज़ादी के 75 साल बाद ऐसी हालत क्यों है । लेकिन ये कोई देश की जनता की भलाई नहीं है कि सरकारें उनको भिखारी बनाकर खुद शासक बनकर राजाओं शहंशाहों की तरह रहें । इस तरह ऊपर के बीस प्रतिशत और निचले 55 वास्तव में मध्यमवर्ग के 25 प्रतिशत पर इक बोझ हैं जिनके पास कोई विकल्प नहीं है सिवा इसके कि बीच का वर्ग नीचे आते आते आधा रह गया है और शीघ्र ही उसका कोई निशान नहीं बचेगा । बड़ी चिंताजनक तस्वीर होगी जिस में कोई बगैर परिश्रम सभी कुछ पायेगा तो बाकी मेहनत करने के बावजूद भी हाथ में कटोरा लिए दिखाई देंगे , ऐसा होगा इसलिए क्योंकि सभी ने समाज देश को बेहतर बनाने को कुछ करना ज़रूरी नहीं समझा बल्कि उस को बर्बाद करने में लगे हुए हैं । 
 
ऐसा आसान तो नहीं है फिर भी कभी कोई इन सभी सरकारों से हिसाब मांगे कितने राजनेताओं को कितने लाखों हज़ारों करोड़ की खैरात मिलती है जाने किस किस नाम से । पेंशन मुफ्त आवास मुफ्त सुविधाएं उम्र भर कोई क़र्ज़ चुकाना है जनता ने इनका सांसद विधायक अथवा अन्य किसी सार्वजनिक सेवा के पद पर शोभा बढ़ा कर खूब शान से सुःख सुविधाएं उपयोग करने का उपकार करने का । यकीन करना ये 80 करोड़ को मुफ्त राशन उस के सामने राई जैसा प्रतीत होगा , ये पहाड़ जैसा बोझ देश की जनता को किस जुर्म में ढोना पड़ता है और कब तक ढोते रहना है । अर्थशास्त्री समझा सकते हैं कि अधिकांश लोग बदहाल हैं सिर्फ इन कुछ ख़ास लोगों को दी जाने वाली भीख जिस को उन्होंने अपनी विरासत बना लिया है लोकतंत्र की आड़ में इक लूट तंत्र है ।  
 
 कैक्टस फूल का पौधा: 10 प्रकार, प्रसार, देखभाल, ख़रीदना गाइड

दिसंबर 08, 2024

POST : 1925 कौन था कोई नादान था ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया

          कौन था कोई नादान था ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया 

कोई कथा कहानी नहीं है हक़ीक़त है अफ़साना नहीं कोई समझा नहीं कोई जाना नहीं कभी भी अभी तलक भी किसी ने उस दुनिया बनाने वाले को पहचाना नहीं । युग बीत गए कोई हिसाब नहीं दुनिया क्या से क्या बन गई मगर शुरुआत आखिर कभी कोई करता अवश्य है तो जिस ने इस दुनिया को था इक खिलौना खेलने को बनाया उसी आदमी ने इक दिन बनाने वाले को नादान बताया । जिसने सब कुछ बनाया दुनिया का कण कण पेड़ पौधे पक्षी हवा पानी बादल गगन से धरती पाताल तक पर्वत से खाई तक , जानवर बना बैठा इंसान बना बैठा । तब वही उसी के लिए ख़तरनाक पहेली जैसे कभी कैसे कभी कैसे अपने आचरण को बदलने लगे तो उसने खुद को अदृश्य बना की आवरण के पीछे छुपा लिया । इक दिन फिर ऐसा हुआ उसका बनाया इंसान जब इक बार आंखें होते हुए भी गहरी खाई है नहीं देख पाया भगवान ने हाथ पकड़ा उसको बचाया , आदमी ने सवाल किया कौन है कहां से इधर है आया । परिचय दिया मैं विधाता हूं तुझे इस संसार को मैंने ही है बनाया , आदमी को कभी ईश्वर का यकीन नहीं आया , साबित करो कब क्या क्योंकर बनाया क्या किसी पर कोई पहचान का चिन्ह बनाया लिखा अपना नाम पता बताया । बोला वो मेरा नाम पता ठिकाना क्या सभी में मैं हूं समाया । आदमी खुद को समझदार मानता रहा उसको नादान अनजान सिरफिरा समझा उसकी बातों में नहीं आया कहने लगा बता मुझे खाई में गिरने से क्यों बचाया । भगवान ने अपना पीछा छुड़ाने को कहा भूल हुई बनाकर दुनिया बड़ा पछताया , बस उस के बाद ईश्वर किसी को आंखों से नज़र नहीं आया सवालों से किसी के तंग आकर खुद को सामने होते दिखाई नहीं देता ऐसा बनाया । इंसान को जब वो नज़र नहीं आया तब उसने समझा मुझसे घबरा गया छुप गया डर कर छुपाया अपने को या था कोई साया । जानवर और इंसान दोनों ही भगवान से खुद को ताकतवर समझ अवसर मिलते ही बदलने लगे इतना कि कब कोई आदमी हैवान बन जाता है कब कोई जानवर भी शैतान से मेहरबान बन जाता है यही पहेली इक रहस्य रहती है । 
 
युग युगांतर के बाद दुनिया रंग बदलते बदलते आधुनिक काल तक इतना बदलाव हो चुका था कि ऊपरवाला थक कर सो चुका था इंसान इंसानियत को खो चुका था । ये भी करोड़ों वर्ष पहले की बात है आदमी को कहां मालूम खुद उसकी कोई नहीं औकात है वो तो महज़ किसी की इक ठोकर लगाई सौगात है । बस इक आदमी ने अपने आस पास जितने भी इंसान दिखाई दिए उनको यकीन दिलवाया कि जहां तक जितना नज़र आता है उसी का है जिसको जो चाहिए ले कर उपयोग कर सकता है केवल उसकी अनुमति से उसे अपना दाता और विधाता मानकर । किसी को इस में कोई परेशानी नहीं महसूस हुई और सभी ने उसकी कही बात को मानकर उसे सरदार बना लिया । धीरे धीरे सरदार की उम्र बढ़ती गई और उस ने कुछ लोगों को अपना वारिस या भावी सरदार घोषित कर दिया और दुनिया में इंसान इंसान में बड़े छोटे शासक शासित जैसे वर्ग बनते गए भेदभाव होने लगा । अचानक दुनिया बनाने वाले की नींद खुली तो उसे खबर हुई कि इंसानों ने उसकी बनाई खूबसूरत दुनिया को बर्बाद कर दिया है । अपने आवरण से निकल अदृश्य से सामने दिखाई देने का विकल्प चुना तो देखने वालों ने उसे सिरफिरा समझ लिया क्योंकि अब तक कितने अलग अलग अपने अपने ईश्वर सभी ने बना अर्थात घोषित कर लिए थे । 
 
सरकार को जब पता चला तब हर शासक ने खुद को विधाता और जाने क्या क्या घोषित करने वालों ने उसे पकड़ने और बंदी बनाकर क़ैदख़ाने में रखने का फ़रमान सुना दिया । भगवान को तहखाने में छुपाना रखना चाहा सभी हुक्मरानों ने ये सोच कर कि कभी काम आएगा तो उसे बाहर निकाल इस्तेमाल कर लिया जाएगा ।लेकिन उन सभी को क्या खबर थी कि भगवान कभी भी अदृश्य होने का विकल्प चुन वहां से छूमंतर हो जाते थे । अपनी बनाई दुनिया को हर छोर से दूसरे छोर तक पहचाना परखा तो जाना कि कुछ भी वास्तविक नहीं रहा है सभी बाहर से कुछ लगते हैं भीतर से कुछ और होते हैं खोखले हैं बाहरी आकार बढ़ता गया है बिल्कुल उसी तरह जैसे रावण का पुतला ऊंचा और फैला हुआ पलक झपकते ही राख बन जाता है । भगवान कहलाना चाहते हैं भगवान जिस ने सभी कुछ बनाकर सौंप दिया उसे कोई घर कोई पहचान देना चाहते हैं । भगवान जो खुद सबको देता है उसे दुनिया से क्या चाहिए उसको कुछ देना अर्थात खुद को भगवान से अधिक बड़ा महान और ताकतवर समझते हैं । आदमी नहीं जानता कि खुद इंसान भगवान की बनाई इक अनबुझी पहेली है जिस ने उसे भी अचंभित कर दिया है कि ये क्या चीज़ बना बैठा मैं जो अब उसी को चुनैती देने लगी है ।  
 
भगवान है भी या नहीं कहीं किसी की मनघड़ंत कहानी तो नहीं ऐसा विचार कुछ जालसाज़ झूठे फरेबी और मक्क़ार लोगों को आया तो उन्होंने सभी कुछ पर अपना आधिपत्य कायम कर खुद को शासक प्रशासक न्यायधीश सुरक्षा करने वाले अलग अलग ओहदेदार बना कर लूटना और लूट को खैरात की तरह कुछ भाग बांटना शुरू कर दिया । कोई ऊपरवाला भगवान नहीं हैं बस सिर्फ हमीं हैं मसीहाई करते हैं । लोगों ने भी उनकी सत्ता को मंज़ूर कर लिया है और उनके ज़ुल्मों को इंसाफ़ कहने लगे हैं । दुनिया बनाने वाले ने शायद बेबस होकर खुद ही अपने आप को ख़त्म कर दिया है , ख़ुदक़ुशी नहीं अंतर्ध्यान होना समझ सकते हैं । अब कोई भगवान नहीं किसी को कोई डर नहीं सभी मनमानी करते हैं यूं समझ लें की भगवान को सत्य को पराजित कर दिया गया है । बिना किसी चुनावी प्रक्रिया हटा दिया गया है ।  उस एक वास्तविक भगवान को हटवा कर कई लाखों लाख नकली भगवान बने बैठे हैं , पहचान करना कठिन नहीं है क्योंकि असली के भगवान ने कुछ भी अपने लिए या अपने पास नहीं रखा न कभी बदले में कुछ मांगा किसी से जबकि ये जितने भी खुद को भगवान समझते कहलवाते हैं उन सभी को अपने लिए जितना भी संभव हो चाहते हैं किसी भी तरह से हथिया लेते हैं । समाज देश को इनसे मिलता कुछ नहीं खोखली बातें और कभी सच नहीं होने वायदे प्रलोभन और झूठे भाषण को छोड़कर ।
 
 
 भगवान के न होने का सबूत क्या है?
 

दिसंबर 06, 2024

POST : 1924 ' नैरंग सरहदी ' दास्तां फिर याद आ गई ( अनमोल रत्न ) डॉ लोक सेतिया

' नैरंग सरहदी ' दास्तां फिर याद आ गई ( अनमोल रत्न ) डॉ लोक सेतिया 

 कभी कभी हम समझ नहीं पाते कि इस पर गर्व का अनुभव करें या फिर खेद का जब कभी हमारे देश के किसी व्यक्ति की प्रतिभा की कदर कहीं विदेश में होती है ज़िंदा रहते । नोबेल प्राइज़ मिला कुछ लोगों को विदेश में जाकर कोई खास उपलब्धि हासिल करने पर । हरगोबिंद खुराना , अमर्त्य सेन से सुब्रहमनियम  वेंकटरमन कितने नाम हैं । लेकिन किसी शायर विद्वान के निधन के वर्षों बाद उनके अप्रकाशित लेखन का प्रकाशन और पहचान किसी विदेशी शोधकर्ता और आलोचक लेखक द्वारा हुआ हो ये कभी पहले नहीं सुना हमने , पहली बार ये अजब तमाशा देखा है । सच समझना कठिन है कि जश्न मनाएं या फिर इस पर थोड़ा अफ़सोस का अनुभव करें जैसे कभी होता है कोई भूख से मर जाता है बाद में उसके नाम पर मृत्यु भोज का आयोजन करते हैं । इक गीत है पंजाबी में जियोंदे जी कंडे देंदी ऐ मोयां ते फुल चढांदी ऐ , मुर्दे नू पूजे ऐ दुनिया जियोंदे दी कीमत कुझ वी नहीं । मुझे इक ग़ज़ल पसंद है जिस में इक शेर कुछ ऐसा ही है जिसका अर्थ है मेरी बदकिस्मती असफ़लता नाकामी का एक कारण ये भी है कि मैंने दिल से जो भी चाहा हो गया । शायर कोई अनजान है मुझे ढूंढने पर भी उनका नाम नहीं मिला पेश है दो शेर उनकी ग़ज़ल से :

बंद आंखों का तमाशा हो गया , 
खुद से मैं बिछड़ा तो तन्हा हो गया ।
 
एक सूरत ये भी महरूमी की है  ,
मैंने दिल से जो भी चाहा हो गया । 
 
  हक़ीक़त नहीं कोई अफ़साना लगता है , ज़िंदगी के बाद जैसा किसी शायर ने खुद ही कहा था अपनी ग़ज़ल में , आएगी मेरी याद मेरी ज़िन्दगी के बाद , होगी न रौशनी कभी इस रौशनी के बाद । उनकी दास्तां सुनी तो दिल दिमाग़ में हज़ारों ख़्यालात जाने किधर से कहां तक उमड़ने लगे , तमाम अन्य अजनबी अनजाने जाने पहचाने लिखने वालों की स्मृतियां फिर ताज़ा हो गई । पहले थोड़ा संक्षेप में नैरंग जी की बात बाद में बहुत कुछ विषय से जुड़ा हुआ अलग अलग व्यक्तियों को लेकर । 6 फरवरी  1912  में  पाकिस्तान में ज़िला डेरा इस्माइल खां के इक क़स्बे मंदहरा उनका जन्म और 5 फरवरी  1973 में रिवाड़ी में निधन 61 वां जन्म दिन मनाने से चौबीस घंटे पहले , उर्दू फ़ारसी के विद्वान और बाद में पंजाबी पढ़ कर पंजाबी के अध्यापक रहे शायर को मलाल ही रहा अपने लेखन का प्रकाशन नहीं होने को लेकर । कई साल बाद उनके बेटे का संपर्क इत्तेफ़ाक़ से उर्दू और फ़ारसी पर शोध कार्य एवं उन को बढ़ावा देने को प्रयासरत जनाब डॉ तक़ी आबीदी जो लेखक और आलोचक हैं से हुआ , जिन्होंने नैरंग जी की रचनाओं पर पहली बार 2020 में प्रकाशन किया । 
 
  भारत में 2018 में उनके शागिर्द रहे शायर विपिन सुनेजा जी ने इक पुस्तक प्रकाशित करवाई थी और कभी कभी उन को लेकर आयोजन करवाया करते थे रिवाड़ी के लेखक मित्र मिलकर । डॉ आबीदी जी ने कितने ही देशों में उनके लेखन पर आयोजन प्रचार प्रसार किया और खूब सराहना मिलती रहती हमेशा । नैरंग सरहदी जी के निधन के 51 साल बाद रेवाड़ी में  ' इंडिया कानकलेव ' में कार्यक्रम आयोजित करवा जैसे भूली बिसरी कहानी को ताज़ा ही नहीं किया बल्कि उनके बेटे नरेश नारंग जी ने अपने अनुभव सांझा कर हमारे समाज और देश राज्य में साहित्य और रचनाकारों की ही नहीं भाषा और संस्कृति की दशा पर उदासीनता क्या संस्थाओं संगठनों की लापरवाही को उजागर कर सोचने पर विवश कर दिया । किसी हिंदी भाषा की  साहित्य अकादमी ने उनकी रचनाओं की पांडुलिपि पर कोई विचार तक नहीं किया क्योंकि उनका लेखन उर्दू या फ़ारसी में लिखा हुआ था , ऐसी अन्य संस्थाओं से भी नरेश नारंग जी को निराशा से अधिक हताशा मिली और उनका साहस धैर्य ख़त्म होने को था जब डॉ तक़ी आबीदी जी से संवाद ने अपने पिता की विरासत को सुरक्षित रखने संभालने में संबल का कार्य किया जिस से पचास साल बाद इक खोया हुआ महान शायर फिर से ज़िंदा हो गया है । लेखक कवि शायर इक विचार होते हैं जो उनके जाने के बाद भी कभी ख़त्म नहीं होते मिटते नहीं हैं । 
 
    नैरंग जी को लेकर उन से बेहद करीब रहे विपिन सुनेजा जी से चर्चा की तो उनकी ज़िंदगी की किताब खुलती ही गई । शायरी में भाषा उच्चारण की शुद्धता को लेकर बहुत गंभीर रहते थे , ग़ज़ल नज़्म के साथ मुक्तक एवं कव्वाली और मसनवी भी शामिल है उनके लेखन में । आशावादी सोच वास्तविक जीवन की परेशानियों समस्याओं के बावजूद कायम थी तथा हास्य विनोद उनका स्वभाव में रहता था । इक खास बात जो उन में थी सभाओं में केवल उन्हीं लोगों को आमंत्रित करते जिन की रूचि अदब में हो बिना बात भीड़ जमा करना उन्हें पसंद नहीं था । जैसा सभी जानते हैं हर साहित्यकार इक खूबसूरत दुनिया बनाना चाहता है जबकि वास्तव में सिर्फ कलम चलाने से सब संभव नहीं और ऐसा कहते हैं लिखने से नहीं कुछ कर दिखाने से बदलाव होगा मगर ऐसा होने ही नहीं देते कुछ लोग । कभी कभी नियति भी अपना रंग दिखाती है कमाल ही करती है नैरंग जी ने उर्दू अकादमी को अपनी किताब की पांडुलिपि भेजी थी जिसे प्रकाशित करने की स्वीकृति का पत्र उनके निधन के कुछ दिन बाद मिला था परिवार को शायद चार दिन बाद की बात है , लेकिन उर्दू अकादमी ने उनकी किताब " तामीर - ए - यास " 25 साल बाद छापी 1998 में । मिर्ज़ा ग़ालिब का शेर है कि हमने माना कि तग़ाफ़ुल न करोगे लेकिन , ख़ाक़ हो जाएंगे हम तुमको ख़बर होने तक ।  
 
  लेकिन सभी का नसीब ऐसा नहीं होता है बहुत लोग ऐसे होते हैं जिनके लेखन को लेकर परिवार समाज अनभिज्ञ या उदासीन होते हैं । कितने लोग जो लिखते हैं उनकी डायरियों में रह जाता है और शायद ही कोई उनको पढ़ता समझता या सुरक्षित रखता है । मैंने अपने कुछ दोस्तों के निधन के बाद उनके वारिस बच्चों से पत्नी से पूछा तो उनको पता ही नहीं था कि दोस्तों की रचनाएं कहां खो गई अथवा धूल चाट रही होंगी या कभी दीमक खा जाएगी । सिरसा हरियाणा से प्रकाश सानी जी क्या कमाल की ग़ज़ल कहते थे अख़बार पत्रिकाओं में छपती थी लेकिन कोई किताब नहीं छपने से उनकी रचनाओं का क्या हुआ कोई नहीं जानता है । सिरसा से ही हरिभजन सिंह रेणु जी की पंजाबी की कविताएं हिंदी में अनुवाद किया गया लेकिन कभी उनको आपेक्षित पहचान और सम्मान शायद नहीं मिला । जबकि कुछ ऐसे भी लोग दिखाई देते हैं जिन्होंने किसी और की रचनाओं को कुछ बदलाव कर खुद की घोषित कर नाम शोहरत से लेकर सरकारी साहित्य अकादमियों में निदेशक पद तक हासिल कर लिया । आजकल साहित्य की किताबों को कोई पढ़ता ही नहीं है कभी कहते थे किताब खरीद कर पढ़नी चाहिए मांग कर नहीं , अब तो लिखने वाले उपहार में भेजते हैं तब भी पढ़ता कोई शायद ही है ।  

लेखक सभी का दर्द समझते महसूस करते हैं लिखते हैं बस खुद अपना दुःख दर्द कभी नहीं लिखते , लिखना भी चाहें तो छापेगा कौन । अख़बार पत्रिका पुस्तक प्रकाशक लिखने वालों की रचनाएं प्रकाशित कर कहीं से कहीं पहुंच जाते हैं मगर लेखक को अधिकांश कोई मानदेय नहीं मिलता जो देते हैं वो भी बहुत थोड़ा जिस से कोई लेखक जीवन यापन नहीं कर सकता । कुछ जाने माने खास लोगों की किताबें सरकार खरीदती है या अन्य लोग किसी मकसद से खरीदते हैं हज़ारों में अलमारी में रखने को पढ़ने को नहीं । कुछ साल पहले संसद में इक कानून बनाया गया जिस पर बताया गया लेखक का भला होगा , कानून बना कि कोई लेखक अपने लिखे गीत ग़ज़ल का अधिकार नहीं बेच सकता कोई खरीदता है तो अवैध होगा । कभी किसी का अपना निर्मित सृजित कुछ बेचना भी गुनाह हो सकता है , जाने ये हाथ काटने की बात है कि हाथ मिलाने की । इक सवाल ये भी उठता है कि लिखने वाले का साहित्य प्रकाशित होना क्या अहमियत रखता है तो इसका जवाब भी है कि आप किसी काल किसी शासन किसी राज्य किसी समाज की असलियत तभी समझ सकते हैं जब उस वक़्त के कवि कथाकार ग़ज़ल कहने वाले साहित्य का सृजन करने वालों को पढ़ेंगे समझेंगे । किसी ईमारत किसी शिलालेख से भवन से सामाजिक वास्तविकता नहीं जान सकते हैं । आपने बड़े बड़े किले ऊंचे ऊंचे मीनार भव्य निर्माण देखें होंगे जिनको देख आप अभिभूत हो सकते हैं , लेकिन कोई कवि कोई शायर कोई कहानीकार आपको उजला नहीं अंधेरा पक्ष भी दिखला सकता है । शासकों का गुणगान करने वाले ज़ालिम को मसीहा बताने वाले चाटुकार नहीं लिखेंगे कि वो कितने अत्याचारी थे । कोई ताजमहल पर नज़्म लिख बादशाह को कटघरे में खड़ा कर सकता है , इक शहशांह ने बनवा के हसीं ताजमहल हम गरीबों की मुहब्बत का उड़ाया है मज़ाक । 
 
  यहां आज के आधुनिक समाज की बात करनी आवश्यक है , साहित्य कला संस्कृति सभी को फिल्म टीवी सीरियल इत्यादि ने प्रदूषित कर दिया है । समाज की वास्तविकता कहीं दिखाई नहीं देती आधुनिक टीवी सिनेमा से सोशल मीडिया में । इक खास वर्ग तक सिमित ही नहीं बल्कि सही दिशा नहीं दे कर भटकाने का कार्य कर रहे हैं खुद को दर्पण कहने वाले । पैसा इतना महत्वपूर्ण लगता है कि अभिनय से संगीत या पटकथा लेखन में नैतिकता मर्यादा का उलंघन आम है गंदगी परोसना आदत हो गई है । धन दौलत नाम शोहरत की अंधी दौड़ में फिल्म जगत और टेलीविज़न से संबंधित लोग सही मार्ग से भटक गए हैं और समाज की सही तस्वीर नहीं दिखते बल्कि झूठी और कपोल कल्पनाओं की कहानियां दिखा दर्शकों को गुमराह करने लगे हैं । इनको आप वास्तविक साहित्य का पर्याय या विकल्प समझने की भूल कभी नहीं करें । इनके मापदंड कब बदल जाते हैं कोई नहीं सोच समझ पाता है । कड़वी बात है लेकिन सच है कि हमारे देश में ईमानदारी से लिखना अपराध करने जैसा है , सज़ा देते हैं वो लोग जिनको साहित्य की परख की बात क्या समझ नहीं होती लेकिन निर्धारित करते हैं क्या शानदार लेखन है क्या बेकार है । 
 
 मैंने जनाब नैरंग सरहदी जी को लेकर यथासंभव सार्थक जानकारी खोजने की कोशिश की है , लेकिन जिस शख़्स से आप कभी मिले नहीं कोई भी संबंध कभी नहीं रहा कभी पहले पढ़ा ही नहीं उनको कितना समझ सकता है कोई भी । हां इतना अवश्य महसूस हुआ है कि कुछ लोग सही वक़्त पर सही जगह सही समाज और माहौल में नहीं पैदा होते किसी पौधे की तरह उचित वातावरण नहीं मिलने से बढ़ नहीं पाते फलते फूलते नहीं है लेकिन उनका अंकुर इतने वर्ष बाद सुरक्षित रहना और फिर से उगना किसी चमत्कार से कम नहीं है ।
 
 नैरंग जी की किताब ' ज़िन्दगी के बाद ' पढ़ रहा हूं अमृत प्रकाशन दिल्ली से 2018 में प्रकाशित हुई है ,
कुछ चुनिंदा ग़ज़ल विपिन सुनेजा की आवाज़ में ' आएगी मेरी याद '  एल्बम में से नीचे लिंक दिया गया है लुत्फ़ उठा सकते हैं । शुरुआत ही शानदार दो शेर से की गई है पढ़िए :-
 
आएगी मेरी याद मेरी ज़िन्दगी के बाद 
होगी न रौशनी कभी इस रौशनी के बाद । 
 
पसे - हयात यही शेर होंगे ऐ नैरंग 
अलावा इसके तेरी यादगार क्या होगी ।  
 
ग़ज़लों के बाद कुछ कत्ए शामिल हैं बहुत शानदार कुछ पढ़ सकते हैं :-

गुले - बेरंगो- बू- ओ - बास हूँ मैं 
ज़िन्दगी से बहुत उदास हूँ मैं 
मुझसे दुनिया को क्या ग़रज़ ' नैरंग '
शाइरे - दर्दो-ग़मो यास हूँ मैं । 

गर्के -आबे- शफ़ाफ़ रहता हूँ 
पाक दामन हूँ साफ़ रहता हूँ 
कुछ दो दुनिया ख़िलाफ़ है मेरे 
कुछ मैं अपने ख़िलाफ़ रहता हूँ । 

लुत्फ़ सुनने में कहाँ और सुनाने में कहाँ 
दाद देने में कहाँ दाद के पाने में कहाँ 
दिले - बेताब की बातें हैं ये ' नैरंग ' वरना 
कद्रदानी - ए - सुख़न आज ज़माने में कहाँ । 

कुछ नज़्में हैं , चरागां करके छोड़ेंगे , हमारा हरियाना , गुरु नानक , गुरु गोविन्द सिंह , महात्मा गांधी । 
मर्सिया पढ़ते हैं किसी की समाधि कब्र पर श्रद्धांजलि देते समय , नैरंग जी ने जिन पर मर्सिया लिखा है उन में शामिल हैं , पण्डित जवाहरलाल नेहरू , लाल बहादुर शास्त्री , अपने उस्ताद पर । 

कुछ अंग्रेजी कविताओं का अनुवाद भी शामिल है उनकी किताब ' ज़िन्दगी के बाद में '  , और आखिर में इक मसनवी भी लिखी है  ' दस्ताने- सावित्री ' कुछ साहित्य उर्दू फ़ारसी के लिखने शोध करने वालों ने अपने विचार व्यक्त किए हैं अलग अलग तरीके से कितनी जगह पर । सभी ने उनके लेखन को विश्व स्तर का और शानदार बताया है , निष्कर्ष यही निकलता है कि किसी का सही समय और सामाजिक वातावरण में होना अथवा नहीं होकर विपरीत माहौल में रहना पैदा होना प्रमुख कारण हो सकता है उचित पहचान नहीं मिल पाने का किसी का दोष नहीं नियति का भी नहीं कह सकते ऐसे जाने कितने अनमोल हीरे कहीं मिट्टी में दबे रह जाते हैं । उनका ही शेर आखिर में उनकी कहानी को ब्यान करता हुआ : -
 
 
मैं और मेरी याद खुदासाज़ बात है , वर्ना मैं वो हूं जिसको ज़माना भुला चुका । 
 
 
किसी एक पोस्ट में ऐसे महान शायर की बात पूरी होना संभव नहीं है गागर में सागर भरने की कोशिश नहीं करना चाहता बस आख़िर में विपिन सुनेजा जी की आवाज़ में उनकी ग़ज़लों के यूट्यूब वीडियो लिंक सांझा कर रहा हूं जो नैरंग जी की पुस्तक ' ज़िन्दगी के बाद ' की चुनिंदा रचनाएं हैं ।    

 
 
   


दिसंबर 04, 2024

POST : 1923 मंदिर दोस्ती का ( हसरत- ए - दिल ) डॉ लोक सेतिया

         मंदिर दोस्ती का ( हसरत- ए - दिल ) डॉ लोक सेतिया  

दोस्त दोस्ती उम्र भर इसी दायरे में ज़िंदगी घूमती रही है , कभी किसी ने लिखा था भगवान को ढूंढने निकला था फिर सोचा था कोई दोस्त साथ हो तो मिलकर तलाश करेंगे । जब दोस्त मिल गया तो भगवान को खोजने की ज़रूरत ही नहीं रही । मैंने हमेशा लिखा है कि मुझे बस इक सच्चे दोस्त की चाहत है ढूंढता रहता हूं और शुरुआत में लिखना ही उसी के लिए उसी के नाम किया जो कौन कहां कैसा नाम पता नहीं जानता । वो कहानी अलग है कोई कल्पनालोक की परियों की कथा जैसी आज उन सभी दोस्तों की बात जो मिलते रहे और बिछुड़कर भी कभी दिल से दूर नहीं हुए । बचपन से अभी तक कितने ही दोस्त मिले हैं कुछ ऐसे जो किसी इक छोर से दूजे छोर तक सफर के हमराही जैसे रोज़ ज़िंदगी के कारोबार में जान पहचान कुछ अनुभव कुछ करीब रहना इक बहाना या इत्तेफ़ाक़ होता है । लेकिन बहुत थोड़े दोस्त पता नहीं चलता क्यों कब और कैसे अपना इक हिस्सा बन गए । दोस्त वही जिन से दिल और रूह महकने लगती है जिनसे मिलते ही खुद को भूल दोस्ती की खुशबू से हर मौसम सुहाना बन जाता है । आदमी आखिर इक दिन दुनिया से रुख़्सत होते रहते हैं बस दोस्ती ही है जो मौत से भी मरती नहीं ख़त्म नहीं होती हमेशा ज़िंदा रहती है सभी दोस्तों के दिलों में । कोई यकीन करे भले नहीं करे मेरे दोस्त हमेशा मेरे दिल में ज़िंदा रहते हैं । बचपन में दोस्तों के लिए इक गीत गाता रहता था मैं हमेशा , एहसान मेरे दिल पे तुम्हारा है दोस्तो , ये दिल तुम्हारे प्यार का मारा है दोस्तो । यारों ने मेरे वास्ते क्या कुछ नहीं किया , सौ बार शुक्रिया अरे सौ बार शुक्रिया , बचपन तुम्हारे साथ गुज़ारा है दोस्तो , ये दिल तुम्हारे प्यार का मारा है दोस्तो । बनता है मेरा काम तुम्हारे ही काम से , होता है मेरा नाम तुम्हारे ही नाम से , तुम जैसे मेहरबां का सहारा है दोस्तो , ये दिल तुम्हारे प्यार का मारा है दोस्तो । जब आ पड़ा कोई भी मुश्किल का रास्ता , मैंने दिया है तुमको मुहब्बत का वास्ता , हर हाल में तुम्हीं को पुकारा है दोस्तो , ये दिल तुम्हारे प्यार का मारा है दोस्तो । गबन फ़िल्म , शायर हसरत जयपुरी , गायक मोहम्मद रफ़ी , संगीत शंकर जयकिशन ।  
 
बहुत सोचा बड़ी मुश्किल से समझ आया कि दोस्ती दुनिया का सबसे खूबसूरत रिश्ता क्यों है , बहुत ही संक्षेप में बताता हूं जो मैंने समझा है इतने गहन गंभीर विमर्श के बाद । आपको जितने भी नाते रिश्ते मिलते हैं जन्म से बड़े होने तक माता पिता भाई बहन अन्य रिश्तेदार सभी से हमेशा इक लेन देन का सिर्फ पैसे का नहीं तमाम तरह का रहता है । थोड़ा अजीब है लेकिन मुझे दिखाई दिया है हर किसी के पास इक बही खाता है जिस में आपका क़र्ज़ अथवा उधार लिखा है क्या क्या करना था नहीं किया हज़ार शिकायत शिकवे गिले सामने नहीं फिर भी नज़र आते हैं । आपने कितना किया कभी कोई जमाखाता नहीं रखता क्योंकि ऐसा तो करना आपका फ़र्ज़ था कोई एहसान नहीं किया , कभी भी किसी ने नहीं देखा कि आपकी क्या मज़बूरी रही होगी जब कुछ करना चाहते थे नहीं कर पाए । कितने दिन आये नहीं कोई संदेश नहीं बहुत कुछ रहता है नाराज़गी जैसा और उसे कोई भुलाता नहीं कितने प्रयास कर देखें । सिर्फ दोस्त भले कितने साल बाद मिलते हैं कोई ऐसा हिसाब-किताब नहीं करते ख़ुशी से बाहों में भर कर कहते हैं अभी भी वैसे ही हैं । उम्र का बदलाव दोस्ती में कोई बदलाव नहीं लाता है , दुनियादारी से अछूता रहता है ये संबंध दिल का दिल से । 
 
आपने सुना होगा पिता से पुत्र से माता से बेटी से बहन से भाभी से हमको दोस्त की तरह रहना है समझना है , क्योंकि सभी जानते हैं इस से सुंदर निःस्वार्थ रिश्ता कोई नहीं ज़माने में । लेकिन कहना आसान करना बहुत कठिन है उम्मीद पर खरा उतरना पड़ता है जबकि दोस्ती का मतलब ही है कोई इम्तिहान नहीं लिया जाता बस भरोसा दिल से होता है कि दोस्त हैं तो हैं कोई प्रमाणपत्र नहीं ज़रूरत होती । आपको शीर्षक ध्यान आया , मेरा इक ख़्वाब है दोस्ती का इक घर हो मंदिर जैसा पावन जिस में सभी दोस्त जब चाहें आएं साथ साथ रहें जब मर्ज़ी चले जाएं कोई बंधन नहीं हो । दोस्ती सभी का धर्म हो ईमान हो दोस्तों की दुनिया में किसी और दौलत की आवश्यकता नहीं होती है । आपको इक राज़ की बात बतानी है , मेरे पास अनमोल खज़ाना है दुनिया की सबसे बड़ी दौलत का तलाशी ले सकते हैं , मिलेगा प्यार और दोस्ती का अंबार । 
 

(  राजेंदर , जुगिंदर , भुपेन्दर , जैसे दोस्तों को समर्पित ये लेख जिनकी याद हमेशा रहेगी। )