दिसंबर 31, 2024

POST : 1934 रंग बदलती दुनिया में ( हास - परिहास ) डॉ लोक सेतिया

     रंग बदलती दुनिया में ( हास - परिहास ) डॉ लोक सेतिया   

हमारी आदत है जिन लोगों की शोहरत है नाम है उनकी ज़िंदगी की घटनाओं उनके रिश्तों उनकी पसंद सभी कुछ जानने की । लेकिन हमारी उनसे कोई जान पहचान नहीं होती जो खुद उनसे चर्चा करते सच क्या है तभी मालूम होता , मगर हम तो टीवी चैनल पर सोशल मीडिया फेसबुक व्हाट्सएप्प यूट्यूब पर कुछ भी सुनते हैं यकीन कर लेते हैं । कई बार जिनके बारे बातें होती हैं खुद उनसे भी किसी साक्षात्कार किसी टीवी अथवा यूट्यूब पर चर्चा में कुछ जानकारी उन्हीं की ज़ुबानी पता चलती है । लेकिन अधिकांश हमको याद नहीं होता जब कोई दूसरा व्यक्ति उसी बात को खुद बताता है तब बात का मतलब ही बदला हुआ होता है । वास्तव में नाम वाले लोग कभी भी किसी बात को जैसा घटा वैसा नहीं बताते हैं बल्कि उस को बदल कर उस ढंग से प्रस्तुत करते हैं जिस में उनकी भलाई दिखाई दे और कोई कमियां कभी सामने नहीं आएं । टीवी शो अथवा ऐसे संबोधन से हम प्रभावित होकर किसी को जितना महान और आदर्शवादी समझते हैं वैसे लोग होते नहीं हैं अपने वास्तविक जीवन में । कभी भी कोई अपनी कहानी उस तरह नहीं सुनाता जिस में खुद वो ख़लनायक हो , सभी अपने आप को नायक कहलाना चाहते हैं ।
 
सोशल मीडिया अख़बार टीवी चैनल पर कभी सच नहीं दिखाया जाता है , झूठ पर सच का लेबल लगाकर बेचना उनका कारोबार है कोई भी विज्ञापन खरा नहीं होता है । ये सतरंगी दुनिया अवश्य है लेकिन इसका रंग कभी इक समान नहीं रहता है पल भर में अपनी बात को बदलना उनका हुनर है । राजनेताओं की बातों पर चुटकुले बनाते हैं कभी जो कहते थे बाद में उसके उल्ट कहते हैं या आचरण करते हैं लेकिन अभिनेता खिलाड़ी और अन्य शोहरत हासिल करने वाले जो आपको समझाते हैं खुद कभी नहीं करते । झूठे और हानिकारक विज्ञापन करते हैं पैसे की खातिर अपने चाहने वालों की भलाई से उनको कोई सरोकार नहीं होता है । आजकल तो खिलाड़ी बोली पर ऊंचे दाम बिकते हैं और बिकने पर शान से अपनी कीमत बताते हैं । जब कोई इंसान बिकने लगता है तब आदमी नहीं इक सामान बन जाता है । खरीदार जैसा चाहता है उसे किसी कठपुतली की तरह उसी तरह नाचना पड़ता है । बात सिर्फ खिलाड़ियों की नहीं है राजनेता बिकते हैं और प्रशासन से न्याय तक क्या है जो बिकता नहीं है हां उनकी कीमत अलग अलग ढंग से लगाई जाती है । किसी को पदोन्नति किसी को बाद में संसद की सदस्यता किसी को मंत्री बनाया जाता है । कभी कहते थे बिकने को सभी तैयार हैं अगर कीमत उनकी पसंद की मिल जाये , लेकिन नहीं सभी बिकते नहीं थे और कुछ लोग अपनी जान भी दे देते थे सच की खातिर । अब सच को अनचाही व्यर्थ की चीज़ समझ सभी ने ज़िंदगी से निकाल किसी कूड़ेदान में फेंक दिया है , सच वास्तव में पराजित हो चुका है लेकिन विजय पताका उसी के हाथ में है ।  असली नकली की पहचान आजकल संभव नहीं क्योंकि पीतल को सोना घोषित किया जा सकता है । इस रंग बदलती दुनिया में इंसान की नीयत ठीक नहीं ,  अब तो लोग खुद ही अपने आप को बेचने लगे हैं । 
 
 
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