इतिहास की गवाही ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया
ये ज़ब्र भी देखा है तारीख़ की नज़रों ने ,
लम्हों ने ख़ता की थी सदियों ने सज़ा पाई ।
। । मुज़फ़्फ़र रज़्मी । ।
इतिहास की गवाही शासकों की अदालत में कभी मंज़ूर नहीं हो सकती क्योंकि इस सत्ता की नगरी के दस्तूर निराले हैं । लिखने वालों ने जब भी शासकों को कटघरे में खड़ा किया उनको हाशिये पर खड़ा रहना तक नहीं दिया गया उनको शासकों की खींची रेखा से बाहर निकलने को विवश कर दिया गया । शाहंशाओं की ज़ुल्म की दस्तानों को मुहब्बत की निशानी बताया गया और किसी शायर की नज़्म ताजमहल को सिर्फ़ इक हादिसा समझ भुलाया गया । शासकों ने हमेशा गरीबों का उड़ाया है मज़ाक दौलत का सहारा लेकर इस बात को किस किस तरह दोहराया गया । पहले पुरानी बातों को याद करते हैं बाद में आधुनिक समय की इतिहास की बात को परखते हैं जांचते हैं तभी निर्धारित होगा कि आज जिनका अंतिम संस्कार किया जा रहा है कभी उसको क्या नहीं साबित किया गया था । शुरुआत 1979 से हुई थी देश इक अंधेरी गली से निकला ही था और पहली बार देश में सभी विपक्षी दल मिलकर जनता की सरकार बना चले ही थे कि कुछ ख़ुदग़र्ज़ लोगों को इक सादगीपसंद नैतिक आदर्शों पर अडिग खड़ा व्यक्ति अखरने लगा था उनकी राह का कांटा लगने लगा था । मोरारजी देसाई की पीठ में खंज़र नहीं घोपा जाता और लोकनायक जयप्रकाश नारायण जी के भरोसे को तोड़ने का प्रयास नहीं होता तो यकीनन इतिहास कुछ और होता और शानदार समाज की आधारशिला भविष्य की मज़बूत इमारत खड़ी करने का ख्वाब सच हो सकता था ।
जो देश की जनता आपात्काल और तानाशाही का खुलकर विरोध करने को सत्ताधारी बड़े बड़े नेताओं की चुनाव में ज़मानत तक ज़ब्त करवाने का साहस दिखा चुकी थी तीन साल बाद 1980 में फिर उसी इंदिरा गांधी को वापस सत्ता पर बिठाती है क्योंकि बड़े बड़े लोग सत्ता के लिए देश समाज से अधिक खुद अपनी महत्वांक्षाओं पर ध्यान देने लगे थे । इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी के साथ उनके खास साथी रहे नेता ने निराधार आरोप लगाकर उनको छवि को धूमिल किया जबकि आरोप कभी साबित नहीं किया जा सका । देश की राजनीति इक गलत दिशा को मोड़ ले चुकी थी जिस में झूठ को ज़ोर से बोलकर सच साबित करने का प्रयास कर सत्ता हासिल करने का रास्ता बनाया जा सकता है । बिलकुल यही 2014 में किया गया जब डॉ मनमोहन सिंह की सरकार को कोयला घोटाले टू जी घोटाले इत्यादि के आरोप बिना आधार लगाकर सत्ता हासिल की गई । सामन्य जन नहीं समझता कि घटिया राजनीति में इस तरह भी आरोप लगाए जाते हैं कि कोई व्यक्ति इक काल्पनिक बात कहता है कि अगर ऐसा खुली बोली से बेचा जाता तो कितने करोड़ का मुनाफ़ा हो सकता था , अर्थात कोई रिश्वत नहीं ली गई कोई चोरी छिपे नहीं हुआ सिर्फ इक नीति थी जो भी पहले आया उसे आंबटन किया गया क्योंकि मकसद जनता को कम दरों पर मोबाइल फोन सस्ती कॉल संभव करवाई जाए । जिस राजनेता ने घोटालों और काला धन की बातें कहकर भाषण में अच्छे दिन का सपना दिखाया वो कभी सच नहीं हुआ न ही कोई घोटाले का दोषी साबित हुआ न कोई काला धन विदेश से वापस लाया गया । बल्कि आज पहले से अधिक काला धन विदेश में जमा है और देश में जिनका भी काली कमाई का चोरी का पैसा था उसे नोटबंदी से सफेद किया गया जिस पर कोई चर्चा नहीं हुई ।
हम लोग आंखे होते हुए भी अंधे हैं जो आज़ादी के 77 साल बाद भी समझने में नमाम रहे कि हमारी देश की राजनीति और व्यवस्था कितनी अनैतिक और खोखली होती गई है । अंजाम आज कोई नहीं जानता कि देश की अर्थव्यवस्था किस तरफ अग्रसर है , जिस में 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज बांटने की बात कही जाती है । विश्व में भुखमरी में 2014 में जो देश 55 वें रैंक पर था 2024 में 105 वें रैंक पर निचले स्तर पर पहुंच गया है जिसे अच्छे नहीं बदहाल हालात की निशानी कह सकते हैं । धर्म के नाम पर अधिकांश बहुत कुछ लोग स्वीकार कर लिया करते हैं लेकिन आज आपको इक मौलिक बात बतानी है , जब भी कोई भी धार्मिक अनुष्ठान पूजा अर्चना दान पुण्य करता है तब क्या आप जानते हैं कि धार्मिक कर्म करवाने वाला पंडित उस व्यक्ति का नाम इत्यादि से संकल्प करवाता है अर्थात वो कार्य उस व्यक्ति ने सम्पन्न किया इसलिए उस पर व्यय खर्च दान उस व्यक्ति को अपनी आमदनी से करना चाहिए जबकि यहां सरकार से संघठन संस्थान सामाजिक संस्थाओं का धन उपयोग कर अनुचित किया जाता है । कभी इस पर चिंतन कर हिसाब लगाओगे तो कितने चेहरे से नकाब हटती जाएगी । ये देश भूखा गरीब है जिन लोगों की वजह से वही भाषण देते हैं और योजनाएं घोषित करते हैं जनकल्याण करने की अजब विडंबना है ।
1 टिप्पणी:
बढ़िया आलेख...सच कहा जनता महज 3 साल बाद ही सब भूल गई पिछले जुल्मों को
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