अक्तूबर 05, 2024

POST : 1902 सच नहीं दिखाता आईना ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

        सच नहीं दिखाता आईना ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया  

टीवी चैनल अख़बार सोशल मीडिया सभी खुद को सच का झंडाबरदार और समाज का दर्पण बताते हैं हक़ीक़त ये है कि ये सच से डरते हैं घबराते हैं झूठ का शोर मचाते हैं क़ातिल को मसीहा बनाते हैं । आपको इक ऐसी दुनिया दिखाते हैं कि देख कर आप खुद अपनी सूरत भूल जाते हैं उनकी बनाई भूल भुलैयां में आप जाने कहां गुम हो जाते हैं । कल्पनालोक की ऐसी दुनिया आपको नज़र आती है जिस में हर तरफ बड़े बड़े महल रंगीनियां शानदार वातावरण कारें हवाई जहाज़ आलीशान मॉल सभी सुरक्षा बढ़िया स्कूल अस्पताल बहुमंज़िला इमारतें बाज़ार की रौनक चहल पहल देख कर आप अपनी सच्चाई भूल कर ख़ुशी से झूमने गाने लगते हैं । आपको जानते भी नहीं पहचानते भी नहीं मीडिया वाले आपको अपने लगते हैं जो लोग आपके होते हैं बेगाने लगते है आपको हक़ीक़त सभी झूठे अफ़साने लगते हैं । बर्बाद बदहाल होकर भी आप सारे जहां से अच्छा गाने लगते हैं अपनी वास्तविकता से नज़रें चुराने लगते हैं । आपको कभी वास्तविक समाज की कोई खबर मिलती है पढ़ने को जिस में किसी घटना का ज़िक्र होता है कि गरीबी भूख बेबसी से तंग आकर एक वक़्त की रोटी पेट भरने को किसी ने मात्र थोड़ी हल्दी मुट्ठी भर चावल के बदले अपनी संतान को बेच दिया । हमको महत्वपूर्ण नहीं लगती ऐसी खबर हम जानकर उस को समझना क्या जानना तक नहीं चाहते और ब्रेकिंग न्यूज़ में खो जाते हैं जिस में करोड़ों रूपये की काली कमाई हिंसा लूट की खबर से किसी ज़ालिम को बड़ा दिखाया जाता है जुर्म करने को किसी का शौक साबित किया जाता है साधरण आदमी को भेड़ बकरी समझ चलाया जाता है । 
 
तथकथित इस समाज के दर्पण में वो समाज कभी दिखाई नहीं देता जो जनसंख्या का बड़ा भाग है जिसे ज़िंदा रहने की खातिर पल पल मरना पड़ता है । उसकी बात सरकार तो क्या भगवान भी सुनता नहीं कभी चाहे कितनी आहें कितने अश्क़ बहाता रहता हो उसकी प्रार्थना का कोई असर नहीं होता मगर ख़ास बड़े लोगों की कोई ईश्वर भी शीघ्र ही सुनता है और प्रशासन न्यायपालिका भी हमेशा तैयार है । कौन हैं ऐसी दुनिया का विधान बनाने वाला जिस में कोई भाई गोरा है कोई काला , अजब है जिस का घोटाला गरीबों का नहीं कहीं भी कोई रखवाला । अमीर गरीब की बढ़ती जाती है खाई इंसान को डराने लगी खुद की परछाई , कहते हैं जिनको देश से प्यार है जनता की भलाई करते हैं खुद शाहंशाह की तरह जीवन बिताते हैं जनता के पैसे से भाषण देते हैं बड़ा उपकार करते हैं । टीवी फिल्म सोशल मीडिया सभी उच्च वर्ग की बातें करते हैं अधिकांश जनता की ज़िंदगी की कहानी कोई लेखक भी आजकल नहीं लिखता है जैसे उनका वजूद उनका अस्तित्व तक दिखाई नहीं देता है । 
 
शरीफ़ नहीं ईमानदार नहीं मूर्ख और ज़ाहिल कहलाते हैं वो सभी जो वक़्त की इस दौड़ में तेज़ी से नहीं चल पाए खुद को ज़माने की तरह नहीं बदल पाए । दुत्कारते हैं धनवान और ख़ास लोग उनको जिनके जिस्म पर फ़टे पुराने कपड़े हैं भूख से जिनका बदन हड्डी का कंकाल लगता है रात दिन मेहनत कर भी जिनको बदले में उचित मज़दूरी नहीं मिलती फटकार मिलती है ले लो जितना देते हैं अधिकार भी भीख की तरह मिलते हैं । शिक्षा स्कूल कॉलेज उनके लिए नहीं हैं उनके लिए फुटपाथ तक सोने की जगह नहीं है वो किसी और दुनिया में चले जाएं लगता है मगर कहां विश्व में उनकी ज़रूरत किसी को नहीं है । करोड़ों अरबों जिनकी तिजोरियों में बंद है उनको क्या मतलब कोई जिये चाहे ख़ुदकुशी करने को विवश हो जाये इस असमानता ही से परेशान हो कर । लेकिन शोर हैं सभी देशवासी इक समान हैं कैसे कोई दाता कोई भिखारी ये बंटवारा कितना अनुचित है कभी कोई चर्चा नहीं कोई चिंतन नहीं तो बदलेगा कैसे कुछ भी । सावन के अंधे बनकर हर तरफ हरियाली ही हरियाली दिखाई दे रही है बताओ और खुद को संविधान का रक्षक कहलाओ । अपने को समाज का आईना घोषित करने वाला उसी बीस तीस प्रतिशत समाज का हिस्सा है जिसे सच नहीं दिखाने और झूठ को सच साबित करने का ईनाम मिलता है कुछ सिक्के झोली फैली हुई भरने को मिल रहे हैं । 
 
जो कभी इक रौशनी करता था उस ने अंधकार से अनुबंध कर लिया है और अंधियारी काली रात को दिन है बतला रहा है । नकली चकाचौंध से प्रभावित होकर समाज में धुंवा फैला रहा है बैसाखियों के सहारे चलता हुआ आगे बढ़ता जा रहा है खुद अपने आप को महान घोषित कर इतरा रहा है । कभी कभी उसे शायद अपराधबोध होता है तब महंगाई और गरीबी के भूख से मरने वालों के आंकड़े समझा कर सच कहने की रस्म निभा रहा है । कहते हैं जो खुद बिक गया हो वो ख़रीदार नहीं हो सकता लेकिन ग़ज़ब ढा रहा है ज़मीर बेचने वाला शान शौकत बढ़ा खुद अपना भाव ऊंचा करने को बाज़ार सजा रहा है । जिनकी आंखों में आंसू ही आंसू हैं दिखाई देता आईने में लोग मुस्कुरा रहे हैं पार्क में कुछ लोग ठहाके लगा रहे हैं ।  बात रोने की फिर भी हंसा जाता है यूं भी हालात से समझौता किया जाता है । 
 
 
Aaina Such Nahi Bolta - Hindi: आइना सच नहीं बोलता by Matrubharti Vividh |  Goodreads
 
 

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