अक्टूबर 01, 2024

POST- 1897 जीने की राह मिल गई ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

           जीने की राह मिल गई ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया  

शहर में हमारी कॉलोनी में उन महात्मा जी का सत्संग कुछ दिन से चल रहा था । घर से इतना थोड़ा फ़ासला है कि आवाज़ सुनाई देती रहती ऐसे में कुछ जान पहचान वाले दूर से सत्संग सुनने आते तो मिलते रहते । कोई साथ चलने की सलाह देता तो कोई कहता आपको घर बैठे आनंद मिलता है कितना सौभाग्य है आप सभी का । श्रीमतीजी की दोस्त आई और बहुत तारीफ़ की महात्मा जी की शिक्षाओं की और हमको भी मना लिया इक बार तो चल कर सुनना और महात्मा जी के दर्शन करने का पुण्य कमाना चाहिए । उन्होंने बताया लोग हरिद्वार जाते हैं आपको तो घर बैठे अवसर मिल रहा है बहुत शांति का अनुभव होगा । रविवार की शाम हम आखिर पहुंच ही गए और दो घंटे तक महात्मा जी स्वर्ग नर्क पाप पुण्य इतियादी पर प्रवचन देते रहे । लोग शायद ही ध्यानपूर्वक सुन रहे थे लेकिन वहां जगह जगह नियम बताया गया लिखा हुआ था कि बीच में से उठना अनुचित ही नहीं अक्षम्य अपराध होगा । 
 
प्रवचन के बाद पंडाल से निकलते ही पुराने दोस्त वशिष्ठ जी मिल गए , हमने पूछा यहां कब कैसे आये हैं और सामने ही घर है मिलना भी भूल गए । लेकिन उन्होंने मेरी बात का जवाब ये कहकर दिया यार आखिर तुम भी सही राह पर आखिर आये तो सही । मैंने बताया जैसा आपको लग रहा है वैसा नहीं है सामने ही है रोज़ लोग आते जाते कहते थे और आज आपकी भाभी जी की दोस्त आग्रह कर ले आई हैं । मुझे तो इनकी बातें कुछ ख़ास नहीं प्रभावित कर पाईं बस रटी रटाई पुरानी बातें कितनी बार समझाओगे कोई असर होता है क्या । वशिष्ठ जी ने बताया उनके गुरु जी हैं ये खास उनकी खातिर अपने शहर से छुट्टी लेकर आये हैं । तुम भी इनको गुरु बना गुरुभाई बन जाओ कल्याण होगा , पता चला उनकी तरक़्क़ी हुई है और बड़े अफ़्सर हैं आजकल । बात करते करते घर पहुंच गए थे कि उन्होंने स्थानीय इक अधिकारी को  फोन लगाने का अनुरोध किया मिलने पर उधर से पूछा गया कौन हैं । मैंने अपना परिचय दिया साथ बताया कि वशिष्ठ जी उनसे बात करना चाहते हैं जवाब मिला साहब स्नानघर में हैं बाद में फोन करना । अचानक कहा गया वशिष्ठ जी से बात करवाएं साहब ने अनुरोध किया है । दोनों अफ़्सर इधर उधर की बातें करते रहे और हम उनके लिए खान पान की व्यवस्था करने में लग गए । 
 
हम सुनते रहे प्रशासन की सरकारी योजनाओं की दो अधिकारियों की बातें , यार नई योजना से कैसे कितना किस किस को मिलता है कुछ भी पर्दे में नहीं सब नेताओं सरकारी विभाग से बंदर बांट मिल कर राशि चट करने पर भाई भाई हैं । कोई विवाद हो तो गुरूजी हैं समझा कर समस्या सुलझाने को , सभी देशभक्त हैं जनता की सेवा करते हैं और ईमानदार कहलाते हैं । चाय पकोड़े खाते समय आपस में हाल चाल पूछा तो वशिष्ठ जी ने अपनी कोठी राजधानी में प्लॉट खूब धन वैभव से मालामाल होने की बात गर्व से ख़ुशी से बताई । मैंने पूछा आपने क्या सबक सीखा गुरूजी के उपदेश से सही राह पर चलने के उपदेश से , वशिष्ठ जी को कोई संकोच नहीं हुआ हंसते हुए कहने लगे दोस्त सुनो और समझो भी । तुमको अभी दुनिया की कोई खबर है न ही दीन ईमान का अर्थ जानते हो , दुनियादारी समझो सीख लो जीना क्या है । ज़िंदगी घुट घुट कर मरते हुए उसूलों पर चलना नहीं है जिस रंग में सभी रंगे हुए उनसे विपरीत दिखाई दोगे तो हताशा मिलेगी । जब भी अवसर मिले अपनी नैया पार लगाओ किसी को खेवनहार बनाओ । अच्छा क्या बुरा क्या है सभी अपनी सुविधा से मानते हैं ऊपरवाला कौन है लोग जानते हैं काली कमाई सफेद कमाई बताओ किस ने बनाई मेरे भाई । भगवान चढ़ावे से अपने गुणगान से खुश होते हैं तो क्या उनको अंतर पड़ता है किसकी कैसी कमाई है ।
 
 
हम सभी अच्छे बुरे कर्म करते हैं आखिर इंसान हैं , पूजा पाठ दान धर्म रोज़ मंदिर मस्जिद जाते हैं कहते हैं भगवान को भक्त बहुत भाते हैं । भोग उनको जो लगाते हैं असल में खुद खा जाते हैं ये ग़ज़ब का तमाशा है जो चमकता है दिखता है वही बिकता है । धर्म का कारोबार का एक ही आधार है जैसे उसने कमाई करवाई उसी को अर्पित किया हमने जो किया उसकी मर्ज़ी से किया जलाया सुबह शाम दिया जबकि दीपक तले सदा अंधियारा ही रहा । आप सतयुग में नहीं कलयुग में जीते हैं अमृत को छोड़ ज़हर सभी पीते हैं अमृत पान करने वाले बेमौत मरते हैं विष पीने वाले चैन से रहते हैं । अमृत भी असली नहीं मिलता ज़हर भी नकली मिलता है ये सच्चाई बड़ी मुश्किल से जान पाया हूं तभी गुरूजी से मिलने आया हूं चलो साथ चर्चा करते हैं कल सुबह उनको घर आपके बुलाते हैं जीने की सही राह वही समझाते हैं । क्या बताएं अगले दिन गुरूजी ने कैसा था सबक हमको समझाया आत्मा पावन रहती है मैली होती है काया , सूरज की धूप सताती है ढूंढना पड़ता है कोई साया । पाप पुण्य का अर्थ कुछ भी नहीं सब खेल है उसी ने रचाया ज़िंदगी का मज़ा लूटो खुद खाओ सबको खिलाओ भाईचारा आपस में बढ़ाना है तो किसी को कभी मत आईना दिखाओ सभी को शरीफ़ भलेमानस बतलाओ मगर अपनी जान समझदारी से बचाओ । जब कभी किसी से उपदेश सुनो उसको भूल जाओ जो होता है जान कर आचरण में अपनाओ । हाथी के खाने के दांत अलग दिखाने के अलग होते हैं वही आज़माओ बुराई मत छोड़ो बस अच्छे लोग कहलाओ । हाथी के दांत की कीमत समझ आएगी तभी आपकी दुनिया बदल जाएगी , कहते हुए वो दरवाज़े से बाहर निकल अपनी शानदार गाड़ी में बैठे हाथ जोड़ खड़े लोगों को आशिर्वाद देने की मुद्रा बनाए चले गए थे । 
  
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1 टिप्पणी:

Sanjaytanha ने कहा…

पाखण्डियों और उनके अनुयायियों की पोल खोलता आलेख wah