सच हुए सभी सपने ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया
ये कोई राज़ की बात नहीं हैं सभी जानते हैं गरीबी दूर करने को इस से कारगर कोई उपाय नहीं हैं कि आप राजनीति में कोई रास्ता बनाकर घुस जाएं जितना आगे तक घुसते जाएंगे उतना ही रईस बनते जाएंगे । यही वो पारस है जो लोहे को सोना पत्थर को हीरे जवाहरात और आदमी को भगवान तक बनवा सकता है । मेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरे मोती सिर्फ ख़ास वर्ग के लिए है किसान अनाज उगाता है फल सब्ज़ियां उगाता है उसे बदले में पेट भरने जीवन यापन करने को फसलों की कीमत नहीं मिलती । जनता भूखी रहती है सरकारी गोदाम में अनाज सड़ता रहता है , वोटों की खातिर खैरात बंटने लगी है अधिकार नहीं मिलते भीख में जीने का अधिकार अमीर लोगों के लिए नेताओं अधिकारियों उद्योगपतियों के लिए आरक्षित है । ये इक अघोषित आरक्षण जैसा है बिना मांगे मिलता है । भोले भाले गरीब कोई गढ़ा हुआ खज़ाना मिलने का ख़्वाब देखते हैं मगर समझदार लोग जितना भी धन दौलत हासिल हो उनकी चाहत रहती है सत्ता की राजनीति का किवाड़ खुले उनको प्रवेश होने को ताकि लूट सके तो लूट की छूट मिल जाए । अपनी नौकरी कारोबार से जितनी भी आमदनी हो लगता है ये कुछ भी नहीं । मेहनत और ईमानदारी की आय से गुज़र बसर करना आजकल समझदारी नहीं कहलाती है बहती गंगा में हाथ धोना नहीं खुलकर नहाना चाहते हैं लोग ।
आधुनिक काल भिखारियों का स्वर्णिम युग है साधु सन्यासी कभी झौंपड़ी में रहते थे आजकल महलों में आधुनिक साज़ो-सामान गाड़ियां हवाई जहाज़ का उपयोग कर लाखों रूपये लेते हैं प्रवचन देने के लिए तभी आते हैं । राजनीति भी दो तरह से भिक्षा पर निर्भर है जनता से वोटों की भीख और धनवान लोगों से चंदे की भीख ज़रूरी है । भूमाफिया बिल्डर सरकारी विभागों का काम ठेके पर करने वाले निवेश करते हैं हर दल के उम्मीदवार को करोड़ों रूपये देते हैं सत्ता किसी भी दल की हो सरकार उनकी होती है । भिखारी सारी दुनिया वही है बस दाता एक राम नहीं रहा बल्कि राम भरोसे कोई सरकार कोई जनता नहीं रहती सबको मालूम है खुद ही अपना कल्याण करना पड़ता है स्वर्ग जाना है तो पहले मरना पड़ता है । राजनीति का स्वाद जिस किसी ने इक बार चखा उसको बाक़ी सब कुछ फीके लगते हैं । खिलाड़ी अभिनेता उद्योगपति कौन है जो इस मायाजाल से बचना चाहता है सभी जानते हैं इस में कितनी गंदगी है फिर भी दुर्गंध नहीं सुगंध प्रतीत होती है ।बड़े बज़ुर्ग बतलाते थे चोरी का गुड़ ज़्यादा मीठा लगता है यही सरकारी धन संसाधनों की लूट का ऐसा पर्म -आनंद है जो समझदार को भी पागल बना देता है और लोग खिंचे चले आते हैं ।
जीवन भर भिक्षा मांगने वाले राजनीति में सफल हुए तो शाहंशाह बन बैठे और कहते हैं शासक बनकर किसी ने चमड़े के सिक्के चलाए थे कहावत सुनी थी आज देख रहे हैं । चुनावी बॉण्ड या कुछ भी नाम दे सकते हैं उनकी तिजोरियां भरी रहती हैं चुनाव में पानी की तरह पैसा बहता है । अपराधी राजनेताओं का गठजोड़ अटूट है सरकार उनको मनचाहा देने को प्रतिबद्ध है सत्ता मिलते अपराधी माननीय कहलाते हैं पुलिस उनकी हर तरह से सुरक्षा सहायता करती है । साधारण नागरिक कैसे जीता मरता है लोकतंत्र में इसका कोई महत्व नहीं है शासक राजनेता को खरोंच भी आना गंभीर चिंता का विषय होता है । आम नागरिक होना दुर्भाग्य है गरीब होना अभिशाप इन से मुक्ति का एक ही उपाय है राजनीति में आकर जो भी मर्ज़ी करने का अधिकार हासिल करना । सपने देखना सभी को आता है सच करना उन्हीं को आता है जो आपको काल्पनिक ख्वाबों से बहलाकर खुद अपनी हक़ीक़त को शानदार बना लेते हैं । राजनेता सपनों के सौदागर होते हैं ।
1 टिप्पणी:
..👍👌 साधु सन्यासी महलों में...राजनीति ही वो पारस..👌👌👍👍
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