मई 13, 2022

सब कुछ पास , फिर भी ख़ाली हाथ ( खरी - खरी ) डॉ लोक सेतिया

  सब कुछ पास , फिर भी ख़ाली हाथ ( खरी - खरी ) डॉ लोक सेतिया 

बहुत दिन से आजकल के दौर के हालात को देख परेशान था। 

शीर्षक लिखते ही डॉ बशीर बद्र जी की ग़ज़ल का इक शेर ज़हन में आ गया। 

" कई अमीरों की महरूमियां न पूछ कि बस , गरीब होने का एहसास अब नहीं होता। " 

                        चलो आपको पूरी ग़ज़ल ही सुनाते हैं। 

अदब की हद में हूं  , मैं बेअदब नहीं होता , 
तुम्हारा तज़्किरा अब रोज़ो-शब नहीं होता। 
 
कभी-कभी तो छलक पड़ती हैं यूं ही आंखें ,
उदास होने का कोई सबब नहीं होता। 
 
कई अमीरों की महरूमियां न पूछ कि बस ,      
गरीब होने का एहसास अब नहीं होता। 
 
मैं वाल्देन को ये बात कैसे समझाऊं ,               
मुहब्बतों में हसबो-नसब नहीं होता। 
 
वहां के लोग बड़े दिलफ़रेब होते हैं ,             
मेरा बहकना भी कोई अजब नहीं होता। 
 
मैं उस ज़मीन का दीदार करना चाहता हूं ,    
जहां कभी भी खुदा का ग़ज़ब नहीं होता। 
 
जिस बात को लिखने को कितनी किताबें कम पड़तीं शायर ने इक ग़ज़ल में सब कह दिया। शायरी समझना सबको नहीं आता है जहां आह भरनी होती है लोग वाह वाह कहते हैं और जब अश्क़ बहने चाहिएं सुनने वाले जोश से भर कर तालियां बजाते हैं। कभी कभी ग़ज़ल की मुहावरेदार शैली से बात नहीं बनती तब खरी - खरी बात कहने को व्यंग्य की भाषा उपयोग करनी पड़ती है। लोग आलीशान घरों में रहते हैं धन दौलत नाम शोहरत ऐशो-आराम सब हासिल है मगर दिल भिखारी का भिखारी है। हाथ फैलाते रहते हैं मांगने को किसी को देते नहीं कभी कुछ भी यही बदनसीबी है बड़े बड़े उद्योगपतियों कारोबारी घरानों शहंशाहों शासकों धनवान लोगों की। हसरतें अधूरी हैं दुनिया भर की ज़मीन चाहते हैं अफ़सोस आखिर दो गज़ ज़मीन भी मिलना आसान नहीं होता है। 
 
पढ़ लिख कर भी इंसानियत शराफ़त ईमानदारी विनम्रता नहीं सीखी और अहंकार करते हैं अपने बड़े ज्ञानी होने पर। अज्ञानता और छोटापन है किरदार ऊंचाई को नहीं छूता रसातल की तरफ जा रहे हैं अपनी आत्मा को बेचते हैं अमीर होने को। खुद को सबसे जानकार समझने वाले मीडिया अखबार टीवी सिनेमा के लोग पैसे को भगवान समझ झूठ की जय-जयकार करते हैं। दर्शक पाठक को सही मार्ग नहीं दिखलाते बल्कि भाषा से लेकर अभिनय तक में अशलीलता गंदगी और हिंसक बनाने का कार्य करते हैं। समाज को गलत दिशा दिखला रहे हैं अमानवीय आचरण को उचित ठहरा सबको भटका रहे हैं। साहित्य के पुजारी तक राग दरबारी सुना रेवड़ियां पाकर इतरा रहे हैं। 
 
कल डॉ हैम जीनॉट जो बचपन की मनोविज्ञान से संबंधित रहे हैं जिन्होंने विनाश के दृश्य देखे थे बचने के बाद उनकी बात पढ़कर रौंगटे खड़े हो गए। मैं यातना शिविर से बच गया लेकिन जो मैंने वहां देखा कोई भी कभी नहीं देखे। मैंने देखा शिक्षित इंजीनियर गैस चैंबर बना रहे थे मानवता को ख़त्म करने को , फिज़ीशियन ज़हर देकर जाने ले रहे थे , नर्सें छोटे छोटे बच्चों को क़त्ल कर रही थी। उच्च शिक्षित लोग महिलाओं और बेबस इंसानों को बंदूक की गोलियों से मार रहे थे। उन्होंने सलाह दी है कि बच्चों को अच्छे इंसान बनाना केवल शिक्षित मनोरोगी और राक्षस नहीं बनाना किताबी शिक्षा नहीं सामाजिक आदर्शों मूल्यों की वास्तविक समझ देना ज़रूरी है। 
 
आस पास देखते हैं लोग शानदार पहनावा लिबास वाले लेकिन उनका व्यवहार उनका आचरण असभ्य और जंगली जानवर जैसा लगता है। किसी और की कोई परवाह नहीं उनको जो करना है करते हैं और कितना भी आपत्तिजनक कार्य करते उनको कोई शर्मिंदगी नहीं होती है। सत्ता पद पैसे ताकत का दुरूपयोग कर उनको गर्व का अनुभव होता है कहने को धर्म ईश्वर की बातें करते हैं मगर अधर्म करते संकोच नहीं करते हैं। हमारे आस पास कितने रईस लोग वास्तव में बेबस लोगों गरीबों से उनकी मज़बूरी का फायदा उठाकर अमीर बन गए हैं। शासक सरकारी अधिकारी नेता लोग बोलते कुछ हैं होते कुछ और हैं शिकायत करने विरोध करने वालों पर अन्याय अत्याचार करते उनको लज्जा नहीं आती जबकि वास्तव में उनका कर्तव्य जनता की सेवा करना है शासन का रौब दिखाना नहीं। पैसा किसी भी तरीके से कमाया हुआ है कोई नहीं देखता अपराध को बढ़ावा देकर अपराधियों का साथ देकर खुद को बलवान समझते हैं जो सही मायने में भीतर से खोखले होते हैं। 
 
संक्षेप में सार की बात इतनी है कि हमने सच्चाई अच्छाई की राह को छोड़ कर जुगाड़ और छोटा रास्ता चुन लिया है जिस में अमीर बनने शोहरत ताकत हासिल करने सुख सुविधा झूठी शान दिखाने को अपना लिया है। हमारे शब्द शानदार लगते हैं जिनका अर्थ कुछ भी नहीं है बस व्यर्थ की बातों में ज़िंदगी गुज़ार ही नहीं रहे बल्कि जीने का मकसद तक बचा नहीं है। जिधर देखते हैं छल कपट वाले इश्तिहार दिखाई देते हैं मगर दावा यही किया जाता है समाज शिक्षा जनहित कल्याणकारी कार्य है कारोबार नहीं मतलब झूठ की सीमा नहीं है। किसी शायर ने कहा है " वो झूठ बोल रहा था बड़े सलीके से , मैं ऐतबार न करता तो क्या करता।

1 टिप्पणी:

Sanjaytanha ने कहा…

शानदार ग़ज़ल से होता हुआ धारदार लेख,,प्रश्न उठाता पढ़े लिखो को आइना दिखाता